1. [QS]चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है, [QE][QS]जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उसमें झगड़े रगड़े हों। [QE]
2. [QS]बुद्धि से चलनेवाला दास अपने स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, [QE][QS]और उस पुत्र के भाइयों के बीच भागी होगा। [QE]
3. [QS]चाँदी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी हाती है*, [QE][QS]परन्तु मनों को यहोवा जाँचता है। (1 पतरस. 1:17) [QE]
4. [QS]कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है, [QE][QS]और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है। [QE]
5. [QS]जो निर्धन को उपहास में उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; [QE][QS]और जो किसी की विपत्ति पर हँसता है, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा। [QE]
6. [QS]बूढ़ों की शोभा उनके नाती पोते हैं; [QE][QS]और बाल-बच्चों की शोभा उनके माता-पिता हैं। [QE]
7. [QS]मूर्ख के मुख से उत्तम बात फबती नहीं, [QE][QS]और इससे अधिक प्रधान के मुख से झूठी बात नहीं फबती। [QE]
8. [QS]घूस देनेवाला व्यक्ति घूस को मोह लेनेवाला मणि समझता है; [QE][QS]ऐसा पुरुष जिधर फिरता, उधर उसका काम सफल होता है। [QE]
9. [QS]जो दूसरे के अपराध को ढाँप देता* है, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, [QE][QS]परन्तु जो बात की चर्चा बार-बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है। [QE]
10. [QS]एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, [QE][QS]उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता। [QE]
11. [QS]बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, [QE][QS]इसलिए उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा। [QE]
12. [QS]बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना, [QE][QS]मूर्खता में डूबे हुए मूर्ख से मिलने से बेहतर है। [QE]
13. [QS]जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, [QE][QS]उसके घर से बुराई दूर न होगी। [QE]
14. [QS]झगड़े का आरम्भ बाँध के छेद के समान है, [QE][QS]झगड़ा बढ़ने से पहले उसको छोड़ देना उचित है। [QE]
15. [QS]जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, [QE][QS]उन दोनों से यहोवा घृणा करता है। [QE]
16. [QS]बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिए है? [QE][QS]वह उसे चाहता ही नहीं। [QE]
17. [QS]मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, [QE][QS]और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है। [QE]
18. [QS]निर्बुद्धि मनुष्य बाध्यकारी वायदे करता है, [QE][QS]और अपने पड़ोसी के कर्ज का उत्तरदायी होता है। [QE]
19. [QS]जो झगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराध करने से भी प्रीति रखता है, [QE][QS]और जो अपने फाटक को बड़ा करता*, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है। [QE]
20. [QS]जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, [QE][QS]और उलट-फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है। [QE]
21. [QS]जो मूर्ख को जन्म देता है वह उससे दुःख ही पाता है; [QE][QS]और मूर्ख के पिता को आनन्द नहीं होता। [QE]
22. [QS]मन का आनन्द अच्छी औषधि है, [QE][QS]परन्तु मन के टूटने से हड्डियाँ सूख जाती हैं। [QE]
23. [QS]दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिये, [QE][QS]अपनी गाँठ से घूस निकालता है। [QE]
24. [QS]बुद्धि समझनेवाले के सामने ही रहती है, [QE][QS]परन्तु मूर्ख की आँखें पृथ्वी के दूर-दूर देशों में लगी रहती हैं। [QE]
25. [QS]मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है, [QE][QS]और उसकी जननी को शोक होता है। [QE]
26. [QS]धर्मी को दण्ड देना, [QE][QS]और प्रधानों को खराई के कारण पिटवाना, दोनों काम अच्छे नहीं हैं। [QE]
27. [QS]जो संभलकर बोलता है, वह ज्ञानी ठहरता है; [QE][QS]और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, वही समझवाला पुरुष ठहरता है। [QE]
28. [QS]मूर्ख भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; [QE][QS]और जो अपना मुँह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है। [QE]