1. [QS]जैसा धूपकाल में हिम का, या कटनी के समय वर्षा होना, [QE][QS]वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। [QE]
2. [QS]जैसे गौरैया घूमते-घूमते और शूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती, [QE][QS]वैसे ही व्यर्थ श्राप नहीं पड़ता। [QE]
3. [QS]घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये लगाम, [QE][QS]और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है। [QE]
4. [QS]मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। [QE]
5. [QS]मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर देना, [QE][QS]ऐसा न हो कि वह अपनी दृष्टि में बुद्धिमान ठहरे। [QE]
6. [QS]जो मूर्ख के हाथ से संदेशा भेजता है, [QE][QS]वह मानो अपने पाँव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। [QE]
7. [QS]जैसे लँगड़े के पाँव लड़खड़ाते हैं, [QE][QS]वैसे ही मूर्खों के मुँह में नीतिवचन होता है। [QE]
8. [QS]जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली, [QE][QS]वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। [QE]
9. [QS]जैसे मतवाले के हाथ में काँटा गड़ता है, [QE][QS]वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दुःखदाई होता है। [QE]
10. [QS]जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, [QE][QS]वैसा ही मूर्खों या राहगीरों का मजदूरी में लगानेवाला भी होता है। [QE]
11. [QS]जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है, [QE][QS]वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दोहराता है। (2 पतरस. 2:20-22) [QE]
12. [QS]यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, [QE][QS]तो उससे अधिक आशा मूर्ख ही से है। [QE]
13. [QS]आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है, [QE][QS]चौक में सिंह है!” [QE]
14. [QS]जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, [QE][QS]वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है। [QE]
15. [QS]आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है, [QE][QS]परन्तु आलस्य के कारण कौर मुँह तक नहीं उठाता। [QE]
16. [QS]आलसी अपने को ठीक उत्तर देनेवाले [QE][QS]सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है। [QE]
17. [QS]जो मार्ग पर चलते हुए पराये झगड़े में विघ्न डालता है, [QE][QS]वह उसके समान है, जो कुत्ते को कानों से पकड़ता है। [QE]
18. [QS]जैसा एक पागल जो जहरीले तीर मारता है, [QE]
19. [QS]वैसा ही वह भी होता है जो अपने पड़ोसी को धोखा देकर कहता है, [QE][QS]“मैं तो मजाक कर रहा था।” [QE]
20. [QS]जैसे लकड़ी न होने से आग बुझती है, [QE][QS]उसी प्रकार जहाँ कानाफूसी करनेवाला नहीं, वहाँ झगड़ा मिट जाता है। [QE]
21. [QS]जैसा अंगारों में कोयला और आग में लकड़ी होती है, [QE][QS]वैसा ही झगड़ा बढ़ाने के लिये झगड़ालू होता है। [QE]
22. [QS]कानाफूसी करनेवाले के वचन, [QE][QS]स्वादिष्ट भोजन के समान भीतर उतर जाते हैं। [QE]
23. [QS]जैसा कोई चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ मिट्टी का बर्तन हो, [QE][QS]वैसा ही बुरे मनवाले के प्रेम भरे वचन* होते हैं। [QE]
24. [QS]जो बैरी बात से तो अपने को भोला बनाता है, [QE][QS]परन्तु अपने भीतर छल रखता है, [QE]
25. [QS]उसकी मीठी-मीठी बात पर विश्वास न करना, [QE][QS]क्योंकि उसके मन में सात घिनौनी वस्तुएँ रहती हैं; [QE]
26. [QS]चाहे उसका बैर छल के कारण छिप भी जाए, [QE][QS]तो भी उसकी बुराई सभा के बीच प्रगट हो जाएगी*। [QE]
27. [QS]जो गड्ढा खोदे, वही उसी में गिरेगा, और जो पत्थर लुढ़काए, [QE][QS]वह उलटकर उसी पर लुढ़क आएगा। [QE]
28. [QS]जिस ने किसी को झूठी बातों से घायल किया हो वह उससे बैर रखता है, [QE][QS]और चिकनी चुपड़ी बात बोलनेवाला विनाश का कारण होता है। [QE]