1. कल के दिन के विषय में डींग मत मार, [QBR] क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर में क्या होगा। (याकू. 4:13-14) [QBR]
2. तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना; [QBR] दूसरा तुझे सराहे तो सराहे, परन्तु तू अपनी सराहना न करना। [QBR]
3. पत्थर तो भारी है और रेत में बोझ है, [QBR] परन्तु मूर्ख का क्रोध, उन दोनों से भी भारी है। [QBR]
4. क्रोध की क्रूरता और प्रकोप की बाढ़, [QBR] परन्तु ईर्ष्या के सामने कौन ठहर सकता है? [QBR]
5. खुली हुई डाँट गुप्त प्रेम से उत्तम है। [QBR]
6. जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं [QBR] परन्तु बैरी अधिक चुम्बन करता है। [QBR]
7. सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, [QBR] परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएँ भी मीठी जान पड़ती हैं। [QBR]
8. स्थान छोड़कर घूमनेवाला मनुष्य उस चिड़िया के समान है, [QBR] जो घोंसला छोड़कर उड़ती फिरती है। [QBR]
9. जैसे तेल और सुगन्ध से, [QBR] वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है। [QBR]
10. जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे न छोड़ना; [QBR] और अपनी विपत्ति के दिन, अपने भाई के घर न जाना। [QBR] प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है*। [QBR]
11. हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर* मेरा मन आनन्दित कर, [QBR] तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा। [QBR]
12. बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आती देखकर छिप जाता है; [QBR] परन्तु भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते हैं। [QBR]
13. जो पराए का उत्तरदायी हो उसका कपड़ा, [QBR] और जो अनजान का उत्तरदायी हो उससे बन्धक की वस्तु ले-ले। [QBR]
14. जो भोर को उठकर अपने पड़ोसी को ऊँचे शब्द से आशीर्वाद देता है, [QBR] उसके लिये यह श्राप गिना जाता है। [QBR]
15. झड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, [QBR] और झगड़ालू पत्नी दोनों एक से हैं; [QBR]
16. जो उसको रोक रखे, वह वायु को भी रोक रखेगा और दाहिने हाथ से वह तेल पकड़ेगा। [QBR]
17. जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, [QBR] वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है। [QBR]
18. जो अंजीर के पेड़ की रक्षा करता है वह उसका फल खाता है, [QBR] इसी रीति से जो अपने स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है। [QBR]
19. जैसे जल में मुख की परछाई मुख को प्रगट करती है, [QBR] वैसे ही मनुष्य का मन मनुष्य को प्रगट करती है। [QBR]
20. जैसे अधोलोक और विनाशलोक, [QBR] वैसे ही मनुष्य की आँखें भी तृप्त नहीं होती। [QBR]
21. जैसे चाँदी के लिये कुठाली और सोने के लिये भट्ठी हैं, [QBR] वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है। [QBR]
22. चाहे तू मूर्ख को अनाज के बीच ओखली में डालकर मूसल से कूटे, [QBR] तो भी उसकी मूर्खता नहीं जाने की। [QBR]
23. अपनी भेड़-बकरियों की दशा भली-भाँति मन लगाकर जान ले, [QBR] और अपने सब पशुओं के झुण्डों की देख-भाल उचित रीति से कर; [QBR]
24. क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती; [QBR] और क्या राजमुकुट पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहता है? [QBR]
25. कटी हुई घास उठा ली जाती और नई घास दिखाई देती है [QBR] और पहाड़ों की हरियाली काटकर इकट्ठी की जाती है; [QBR]
26. तब भेड़ों के बच्चे तेरे वस्त्र के लिये होंगे, [QBR] और बकरों के द्वारा खेत का मूल्य दिया जाएगा; [QBR]
27. और बकरियों का इतना दूध होगा कि तू अपने घराने समेत पेट भरके पिया करेगा, [QBR] और तेरी दासियों का भी जीवन निर्वाह होता रहेगा। [PE]