1. {#1युवाओं के लिए मार्गदर्शन } [QS]हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; [QE][QS]अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; [QE]
2. [QS]क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, [QE][QS]और तू अधिक कुशल से रहेगा। [QE]
3. [QS]कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ; [QE][QS]वरन् उनको अपने गले का हार बनाना, [QE][QS]और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना। (2 कुरिन्थियों. 3:3) [QE]
4. [QS]तब तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, [QE][QS]तू अति प्रतिष्ठित होगा। (लूका 2:52, रोम. 12:17, 2 कुरिन्थियों. 8:21) [QE]
5. [QS]तू अपनी समझ का सहारा न लेना, [QE][QS]वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना*। [QE]
6. [QS]उसी को स्मरण करके सब काम करना, [QE][QS]तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। [QE]
7. [QS]अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; [QE][QS]यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। (रोम. 12:16) [QE]
8. [QS]ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, [QE][QS]और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी। [QE]
9. [QS]अपनी सम्पत्ति के द्वारा [QE][QS]और अपनी भूमि की सारी पहली उपज देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना; [QE]
10. [QS]इस प्रकार तेरे खत्ते भरे [QE][QS]और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा। [QE]
11. [QS]हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुँह न मोड़ना, [QE][QS]और जब वह तुझे डाँटे, तब तू बुरा न मानना, [QE]
12. [QS]जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को डाँटता है, [QE][QS]वैसे ही यहोवा जिससे प्रेम रखता है उसको डाँटता है। (इफिसियों. 6:4, इब्रानियों. 12:5-7) [QE]
13. [QS]क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, [QE]
14. [QS]जो उपलब्धि बुद्धि से प्राप्त होती है, वह चाँदी की प्राप्ति से बड़ी, [QE][QS]और उसका लाभ शुद्ध सोने के लाभ से भी उत्तम है। [QE]
15. [QS]वह बहुमूल्य रत्नों से अधिक मूल्यवान है, [QE][QS]और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उनमें से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। [QE]
16. [QS]उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु, [QE][QS]और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं। [QE]
17. [QS]उसके मार्ग आनन्ददायक हैं, [QE][QS]और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। [QE]
18. [QS]जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, [QE][QS]उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं। [QE]
19. [QS]यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली; [QE][QS]और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया। [QE]
20. [QS]उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले, [QE][QS]और आकाशमण्डल से ओस टपकती है। [QE]
21. [QS]हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि [QE][QS]और विवेक* की रक्षा कर, [QE]
22. [QS]तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा, [QE][QS]और ये तेरे गले का हार बनेंगे। [QE]
23. [QS]तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा, [QE][QS]और तेरे पाँव में ठेस न लगेगी। [QE]
24. [QS]जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, [QE][QS]जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी। [QE]
25. [QS]अचानक आनेवाले भय से न डरना, [QE][QS]और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े, [QE][QS]तब न घबराना; [QE]
26. [QS]क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, [QE][QS]और तेरे पाँव को फंदे में फँसने न देगा। [QE]
27. [QS]जो भलाई के योग्य है उनका भला अवश्य करना, [QE][QS]यदि ऐसा करना तेरी शक्ति में है। [QE]
28. [QS]यदि तेरे पास देने को कुछ हो, [QE][QS]तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूँगा। (2 कुरिन्थियों. 8:12) [QE]
29. [QS]जब तेरा पड़ोसी तेरे पास निश्चिन्त रहता है, [QE][QS]तब उसके विरुद्ध बुरी युक्ति न बाँधना। [QE]
30. [QS]जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो, [QE][QS]उससे अकारण मुकद्दमा खड़ा न करना। [QE]
31. [QS]उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना, [QE][QS]न उसकी सी चाल चलना; [QE]
32. [QS]क्योंकि यहोवा कुटिल मनुष्य से घृणा करता है, [QE][QS]परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर प्रकट करता है। [QE]
33. [QS]दुष्ट के घर पर यहोवा का श्राप [QE][QS]और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है। [QE]
34. [QS]ठट्ठा करनेवालों का वह निश्चय ठट्ठा करता है; [QE][QS]परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है। (याकूब. 4:6, 1 पतरस. 5:5) [QE]
35. [QS]बुद्धिमान महिमा को पाएँगे, [QE][QS]परन्तु मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी। [QE]