1. {आगूर का ज्ञान} [PS] याके के पुत्र आगूर के प्रभावशाली वचन। [QBR] उस पुरुष ने ईतीएल और उक्काल से यह कहा: [QBR]
2. निश्चय मैं पशु सरीखा हूँ, वरन् मनुष्य कहलाने के योग्य भी नहीं; [QBR] और मनुष्य की समझ मुझ में नहीं है। [QBR]
3. न मैंने बुद्धि प्राप्त की है, [QBR] और न परमपवित्र का ज्ञान मुझे मिला है। [QBR]
4. कौन स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर आया? [QBR] किस ने वायु को अपनी मुट्ठी में बटोर रखा है? [QBR] किस ने महासागर को अपने वस्त्र में बाँध लिया है? [QBR] किस ने पृथ्वी की सीमाओं को ठहराया है? उसका नाम क्या है? [QBR] और उसके पुत्र का नाम क्या है? यदि तू जानता हो तो बता! (यूह. 3:13) [QBR]
5. परमेश्वर का एक-एक वचन ताया हुआ है; [QBR] वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है। [QBR]
6. उसके वचनों में कुछ मत बढ़ा, [QBR] ऐसा न हो कि वह तुझे डाँटे और तू झूठा ठहरे। [QBR]
7. मैंने तुझ से दो वर माँगे हैं, [QBR] इसलिए मेरे मरने से पहले उन्हें मुझे देने से मुँह न मोड़ [QBR]
8. अर्थात् व्यर्थ और झूठी बात मुझसे दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना; [QBR] प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर। (1 तीमु. 6:8) [QBR]
9. ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूँ कि यहोवा कौन है? [QBR] या निर्धन होकर चोरी करूँ, [QBR] और परमेश्वर के नाम का अनादर करूँ। [QBR]
10. किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना*, [QBR] ऐसा न हो कि वह तुझे श्राप दे, और तू दोषी ठहराया जाए। [QBR]
11. ऐसे लोग हैं, जो अपने पिता को श्राप देते [QBR] और अपनी माता को धन्य नहीं कहते। [QBR]
12. वे ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं, [QBR] परन्तु उनका मैल धोया नहीं गया। [QBR]
13. एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है, [QBR] और उनकी आँखें कैसी चढ़ी हुई रहती हैं। [QBR]
14. एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं, जिनके दाँत तलवार और उनकी दाढ़ें छुरियाँ हैं, [QBR] जिनसे वे दीन लोगों को पृथ्वी पर से, और दरिद्रों को मनुष्यों में से मिटा डालें। [QBR]
15. जैसे जोंक की दो बेटियाँ होती हैं, जो कहती हैं, “दे, दे,” [QBR] वैसे ही तीन वस्तुएँ हैं, जो तृप्त नहीं होतीं; वरन् चार हैं, [QBR] जो कभी नहीं कहती, “बस।” [QBR]
16. अधोलोक और बाँझ की कोख, [QBR] भूमि जो जल पी पीकर तृप्त नहीं होती, [QBR] और आग जो कभी नहीं कहती, 'बस।' [QBR]
17. जिस आँख से कोई अपने पिता पर अनादर की दृष्टि करे, [QBR] और अपमान के साथ अपनी माता की आज्ञा न माने, [QBR] उस आँख को तराई के कौवे खोद खोदकर निकालेंगे, [QBR] और उकाब के बच्चे खा डालेंगे। [QBR]
18. तीन बातें मेरे लिये अधिक कठिन है, [QBR] वरन् चार हैं, जो मेरी समझ से परे हैं [QBR]
19. आकाश में उकाब पक्षी का मार्ग, [QBR] चट्टान पर सर्प की चाल, समुद्र में जहाज की चाल, [QBR] और कन्या के संग पुरुष की चाल*। [QBR]
20. व्यभिचारिणी की चाल भी वैसी ही है; [QBR] वह भोजन करके मुँह पोंछती, [QBR] और कहती है, मैंने कोई अनर्थ काम नहीं किया। [QBR]
21. तीन बातों के कारण पृथ्वी काँपती है; वरन् चार हैं, [QBR] जो उससे सही नहीं जातीं [QBR]
22. दास का राजा हो जाना, [QBR] मूर्ख का पेट भरना [QBR]
23. घिनौनी स्त्री का ब्याहा जाना, [QBR] और दासी का अपनी स्वामिन की वारिस होना। [QBR]
24. पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं, [QBR] जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं [QBR]
25. चींटियाँ निर्बल जाति तो हैं, [QBR] परन्तु धूपकाल में अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं; [QBR]
26. चट्टानी बिज्जू बलवन्त जाति नहीं, [QBR] तो भी उनकी मान्दें पहाड़ों पर होती हैं; [QBR]
27. टिड्डियों के राजा तो नहीं होता, [QBR] तो भी वे सब की सब दल बाँध बाँधकर चलती हैं; [QBR]
28. और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है, [QBR] तो भी राजभवनों में रहती है। [QBR]
29. तीन सुन्दर चलनेवाले प्राणी हैं; [QBR] वरन् चार हैं, जिनकी चाल सुन्दर है: [QBR]
30. सिंह जो सब पशुओं में पराक्रमी है, [QBR] और किसी के डर से नहीं हटता; [QBR]
31. शिकारी कुत्ता और बकरा, [QBR] और अपनी सेना समेत राजा। [QBR]
32. यदि तूने अपनी बढ़ाई करने की मूर्खता की, [QBR] या कोई बुरी युक्ति बाँधी हो, तो अपने मुँह पर हाथ रख। [QBR]
33. क्योंकि जैसे दूध के मथने से मक्खन [QBR] और नाक के मरोड़ने से लहू निकलता है, [QBR] वैसे ही क्रोध के भड़काने से झगड़ा उत्पन्न होता है। [PE]