पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; [QBR] और उसकी करुणा सदा की है! [QBR]
2. यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, [QBR] जिन्हें उसने शत्रु के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, [QBR]
3. और उन्हें देश-देश से, [QBR] पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से इकट्ठा किया है। (भज. 106:47) [QBR]
4. वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, [QBR] और कोई बसा हुआ नगर न पाया; [QBR]
5. भूख और प्यास के मारे, [QBR] वे विकल हो गए। [QBR]
6. तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, [QBR] और उसने उनको सकेती से छुड़ाया; [QBR]
7. और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, [QBR] ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुँचे। [QBR]
8. लोग यहोवा की करुणा के कारण, [QBR] और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! [QBR]
9. क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, [QBR] और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है। (लूका 1:53, यिर्म. 31:25) [QBR]
10. जो अंधियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, [QBR] और दुःख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे, [QBR]
11. इसलिए कि वे परमेश्‍वर के वचनों के विरुद्ध चले*, [QBR] और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। [QBR]
12. तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; [QBR] वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला। [QBR]
13. तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, [QBR] और उसने सकेती से उनका उद्धार किया; [QBR]
14. उसने उनको अंधियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; [QBR] और उनके बन्धनों को तोड़ डाला। [QBR]
15. लोग यहोवा की करुणा के कारण, [QBR] और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, [QBR] उसका धन्यवाद करें! [QBR]
16. क्योंकि उसने पीतल के फाटकों को तोड़ा, [QBR] और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े किया। [QBR]
17. मूर्ख अपनी कुचाल, [QBR] और अधर्म के कामों के कारण अति दुःखित होते हैं। [QBR]
18. उनका जी सब भाँति के भोजन से मिचलाता है, [QBR] और वे मृत्यु के फाटक तक पहुँचते हैं। [QBR]
19. तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, [QBR] और वह सकेती से उनका उद्धार करता है; [QBR]
20. वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता* [QBR] और जिस गड्ढे में वे पड़े हैं, उससे निकालता है। (भज. 147:15) [QBR]
21. लोग यहोवा की करुणा के कारण [QBR] और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! [QBR]
22. और वे धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ, [QBR] और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें। [QBR]
23. जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, [QBR] और महासागर पर होकर व्यापार करते हैं; [QBR]
24. वे यहोवा के कामों को, [QBR] और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहरे समुद्र में करता है, देखते हैं। [QBR]
25. क्योंकि वह आज्ञा देता है, तब प्रचण्ड वायु उठकर तरंगों को उठाती है। [QBR]
26. वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; [QBR] और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; [QBR]
27. वे चक्कर खाते, और मतवालों की भाँति लड़खड़ाते हैं, [QBR] और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। [QBR]
28. तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, [QBR] और वह उनको सकेती से निकालता है। [QBR]
29. वह आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। [QBR]
30. तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, [QBR] और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है। [QBR]
31. लोग यहोवा की करुणा के कारण, [QBR] और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, [QBR] उसका धन्यवाद करें। [QBR]
32. और सभा में उसको सराहें, [QBR] और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें। [QBR]
33. वह नदियों को जंगल बना डालता है, [QBR] और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है। [QBR]
34. वह फलवन्त भूमि को बंजर बनाता है, [QBR] यह वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है। [QBR]
35. वह जंगल को जल का ताल, [QBR] और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। [QBR]
36. और वहाँ वह भूखों को बसाता है, [QBR] कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें; [QBR]
37. और खेती करें, और दाख की बारियाँ लगाएँ, [QBR] और भाँति-भाँति के फल उपजा लें। [QBR]
38. और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, [QBR] और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता। [QBR]
39. फिर विपत्ति और शोक के कारण, [QBR] वे घटते और दब जाते हैं*। [QBR]
40. और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; [QBR]
41. वह दरिद्रों को दुःख से छुड़ाकर ऊँचे पर रखता है, [QBR] और उनको भेड़ों के झुण्ड के समान परिवार देता है। [QBR]
42. सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; [QBR] और सब कुटिल लोग अपने मुँह बन्द करते हैं। [QBR]
43. जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; [QBR] और यहोवा की करुणा के कामों पर ध्यान करेगा। [PE]

Notes

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भजन संहिता 107:30
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा की है! 2 यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उसने शत्रु के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, 3 और उन्हें देश-देश से, पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से इकट्ठा किया है। (भज. 106:47) 4 वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया; 5 भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए। 6 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने उनको सकेती से छुड़ाया; 7 और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुँचे। 8 लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 9 क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है। (लूका 1:53, यिर्म. 31:25) 10 जो अंधियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, और दुःख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे, 11 इसलिए कि वे परमेश्‍वर के वचनों के विरुद्ध चले*, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। 12 तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला। 13 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने सकेती से उनका उद्धार किया; 14 उसने उनको अंधियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनों को तोड़ डाला। 15 लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 16 क्योंकि उसने पीतल के फाटकों को तोड़ा, और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े किया। 17 मूर्ख अपनी कुचाल, और अधर्म के कामों के कारण अति दुःखित होते हैं। 18 उनका जी सब भाँति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुँचते हैं। 19 तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह सकेती से उनका उद्धार करता है; 20 वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता* और जिस गड्ढे में वे पड़े हैं, उससे निकालता है। (भज. 147:15) 21 लोग यहोवा की करुणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 22 और वे धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ, और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें। 23 जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्यापार करते हैं; 24 वे यहोवा के कामों को, और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहरे समुद्र में करता है, देखते हैं। 25 क्योंकि वह आज्ञा देता है, तब प्रचण्ड वायु उठकर तरंगों को उठाती है। 26 वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; 27 वे चक्कर खाते, और मतवालों की भाँति लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। 28 तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है। 29 वह आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। 30 तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है। 31 लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें। 32 और सभा में उसको सराहें, और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें। 33 वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है। 34 वह फलवन्त भूमि को बंजर बनाता है, यह वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है। 35 वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। 36 और वहाँ वह भूखों को बसाता है, कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें; 37 और खेती करें, और दाख की बारियाँ लगाएँ, और भाँति-भाँति के फल उपजा लें। 38 और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता। 39 फिर विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं*। 40 और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; 41 वह दरिद्रों को दुःख से छुड़ाकर ऊँचे पर रखता है, और उनको भेड़ों के झुण्ड के समान परिवार देता है। 42 सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपने मुँह बन्द करते हैं। 43 जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; और यहोवा की करुणा के कामों पर ध्यान करेगा।
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