1. मैं यहोवा में शरण लेता हूँ;
तुम क्यों मेरे प्राण से कहते हो ''पक्षी के समान अपने पहाड़ पर उड़ जा''*; |
2. क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं,
और अपने तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालों पर अंधियारे में तीर चलाएँ। |
4. यहोवा अपने पवित्र भवन में है;
यहोवा का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आँखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं। |
5. यहोवा धर्मी और दुष्ट दोनों को परखता है,
परन्तु जो उपद्रव से प्रीति रखते हैं उनसे वह घृणा करता है। |