2. प्रत्येक मनुष्य अपने पड़ोसी से झूठी बातें कहता है;
वे चापलूसी के होंठों से दो रंगी बातें करते हैं। |
4. वे कहते हैं, “हम अपनी जीभ ही से जीतेंगे,
हमारे होंठ हमारे ही वश में हैं; हम पर कौन शासन कर सकेगा?” |
5. दीन लोगों के लुट जाने, और दरिद्रों के कराहने के कारण,
यहोवा कहता है, “अब मैं उठूँगा, जिस पर वे फुँकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूँगा।” |
6. यहोवा का वचन पवित्र है,
उस चाँदी के समान जो भट्ठी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार निर्मल की गई हो*। |