3. जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी*,
तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फंदा लगाया। |
4. मैंने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता।
मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है। |
6. मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन,
क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उनसे मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझसे अधिक सामर्थी हैं। |
7. मुझ को बन्दीगृह से निकाल* कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँ!
धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएँगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा। PE |