1. {दाऊद का मुक्तिगान} [PS] हे यहोवा, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूँ। [QBR]
2. यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; [QBR] मेरा परमेश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूँ, [QBR] वह मेरी ढाल और मेरी उद्धार का सींग, [QBR] और मेरा ऊँचा गढ़ है। (इब्रा. 2:13) [QBR]
3. मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूँगा; [QBR] इस प्रकार मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा। [QBR]
4. मृत्यु की रस्सियों से मैं चारों ओर से घिर गया हूँ*, [QBR] और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; (भजन 116:3) [QBR]
5. अधोलोक की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं, [QBR] और मृत्यु के फंदे मुझ पर आए थे। [QBR]
6. अपने संकट में मैंने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; [QBR] मैंने अपने परमेश्वर की दुहाई दी। [QBR] और उसने अपने मन्दिर* में से मेरी वाणी सुनी। [QBR] और मेरी दुहाई उसके पास पहुँचकर उसके कानों में पड़ी। [QBR]
7. तब पृथ्वी हिल गई, और काँप उठी [QBR] और पहाड़ों की नींव कँपित होकर हिल गई [QBR] क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। [QBR]
8. उसके नथनों से धुआँ निकला, [QBR] और उसके मुँह से आग निकलकर भस्म करने लगी; [QBR] जिससे कोएले दहक उठे। [QBR]
9. वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; [QBR] और उसके पाँवों तले घोर अंधकार था। [QBR]
10. और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, [QBR] वरन् पवन के पंखों पर सवारी करके वेग से उड़ा। [QBR]
11. उसने अंधियारे को अपने छिपने का स्थान [QBR] और अपने चारों ओर आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। [QBR]
12. उसके आगे बिजली से, [QBR] ओले और अंगारे गिर पड़े। [QBR]
13. तब यहोवा आकाश में गरजा, [QBR] परमप्रधान ने अपनी वाणी सुनाई और ओले और अंगारों को भेजा। [QBR]
14. उसने अपने तीर चला-चलाकर शत्रुओं को तितर-बितर किया; [QBR] वरन् बिजलियाँ गिरा-गिराकर उनको परास्त किया। [QBR]
15. तब जल के नाले देख पड़े, और जगत की नींव प्रगट हुई, [QBR] यह तो यहोवा तेरी डाँट से*, [QBR] और तेरे नथनों की साँस की झोंक से हुआ। [QBR]
16. उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, [QBR] और गहरे जल में से खींच लिया। [QBR]
17. उसने मेरे बलवन्त शत्रु से, [QBR] और उनसे जो मुझसे घृणा करते थे, [QBR] मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। [QBR]
18. मेरे संकट के दिन वे मेरे विरुद्ध आए [QBR] परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। [QBR]
19. और उसने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुँचाया, [QBR] उसने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझसे प्रसन्न था। [QBR]
20. यहोवा ने मुझसे मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; [QBR] और मेरे हाथों की शुद्धता के अनुसार उसने [QBR] मुझे बदला दिया। [QBR]
21. क्योंकि मैं यहोवा के मार्गों पर चलता रहा, [QBR] और दुष्टता के कारण अपने परमेश्वर से दूर न हुआ। [QBR]
22. क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे [QBR] और मैंने उसकी विधियों को न त्यागा। [QBR]
23. और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, [QBR] और अधर्म से अपने को बचाए रहा। [QBR]
24. यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, [QBR] और मेरे हाथों की उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था। [QBR]
25. विश्वासयोग्य के साथ तू अपने को विश्वासयोग्य दिखाता; [QBR] और खरे पुरुष के साथ तू अपने को खरा दिखाता है। [QBR]
26. शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता, [QBR] और टेढ़े के साथ तू तिरछा बनता है। [QBR]
27. क्योंकि तू दीन लोगों को तो बचाता है; [QBR] परन्तु घमण्ड भरी आँखों को नीची करता है। [QBR]
28. हाँ, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; [QBR] मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अंधियारे को [QBR] उजियाला कर देता है। [QBR]
29. क्योंकि तेरी सहायता से मैं सेना पर धावा करता हूँ; [QBR] और अपने परमेश्वर की सहायता से शहरपनाह को लाँघ जाता हूँ। [QBR]
30. परमेश्वर का मार्ग सिद्ध है; [QBR] यहोवा का वचन ताया हुआ है; [QBR] वह अपने सब शरणागतों की ढाल है। [QBR]
31. यहोवा को छोड़ क्या कोई परमेश्वर है? [QBR] हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? [QBR]
32. यह वही परमेश्वर है, जो सामर्थ्य से मेरा कटिबन्ध बाँधता है, [QBR] और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। [QBR]
33. वही मेरे पैरों को हिरनी के पैरों के समान बनाता है, [QBR] और मुझे ऊँचे स्थानों पर खड़ा करता है। [QBR]
34. वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, [QBR] इसलिए मेरी बाहों से पीतल का धनुष झुक जाता है। [QBR]
35. तूने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है, [QBR] तू अपने दाहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, [QBR] और तेरी नम्रता ने मुझे महान बनाया है। [QBR]
36. तूने मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा कर दिया*, [QBR] और मेरे पैर नहीं फिसले। [QBR]
37. मैं अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूँगा; [QBR] और जब तब उनका अन्त न करूँ तब तक न लौटूँगा। [QBR]
38. मैं उन्हें ऐसा बेधूँगा कि वे उठ न सकेंगे; [QBR] वे मेरे पाँवों के नीचे गिर जायेंगे। [QBR]
39. क्योंकि तूने युद्ध के लिये मेरी कमर में [QBR] शक्ति का पटुका बाँधा है; [QBR] और मेरे विरोधियों को मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। [QBR]
40. तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी; [QBR] ताकि मैं उनको काट डालूँ जो मुझसे द्वेष रखते हैं। [QBR]
41. उन्होंने दुहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई बचानेवाला न मिला, [QBR] उन्होंने यहोवा की भी दुहाई दी, [QBR] परन्तु उसने भी उनको उत्तर न दिया। [QBR]
42. तब मैंने उनको कूट-कूटकर पवन से उड़ाई [QBR] हुई धूल के समान कर दिया; [QBR] मैंने उनको मार्ग के कीचड़ के समान निकाल फेंका। [QBR]
43. तूने मुझे प्रजा के झगड़ों से भी छुड़ाया; [QBR] तूने मुझे अन्यजातियों का प्रधान बनाया है; [QBR] जिन लोगों को मैं जानता भी न था वे मेरी [QBR] सेवा करते है। [QBR]
44. मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; [QBR] परदेशी मेरे वश में हो जाएँगे। [QBR]
45. परदेशी मुर्झा जाएँगे, [QBR] और अपने किलों में से थरथराते हुए निकलेंगे। [QBR]
46. यहोवा परमेश्वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; [QBR] और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो। [QBR]
47. धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला परमेश्वर! [QBR] जिसने देश-देश के लोगों को मेरे वश में कर दिया है; [QBR]
48. और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; [QBR] तू मुझ को मेरे विरोधियों से ऊँचा करता, [QBR] और उपद्रवी पुरुष से बचाता है। [QBR]
49. इस कारण मैं जाति-जाति के सामने तेरा धन्यवाद करूँगा, [QBR] और तेरे नाम का भजन गाऊँगा। [QBR]
50. वह अपने ठहराए हुए राजा को महान विजय देता है, [QBR] वह अपने अभिषिक्त दाऊद पर [QBR] और उसके वंश पर युगानुयुग करुणा करता रहेगा। [PE]