1. हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर,
तूने मुझे क्यों छोड़ दिया? तू मेरी पुकार से और मेरी सहायता करने से क्यों दूर रहता है? मेरा उद्धार कहाँ है? |
2. हे मेरे परमेश्वर, मैं दिन को पुकारता हूँ
परन्तु तू उत्तर नहीं देता; और रात को भी मैं चुप नहीं रहता। |
6. परन्तु मैं तो कीड़ा हूँ, मनुष्य नहीं;
मनुष्यों में मेरी नामधराई है, और लोगों में मेरा अपमान होता है। |
7. वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं,
और होंठ बिचकाते और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, (मत्ती 27:39, मर. 15:29) |
8. वे कहते है “वह यहोवा पर भरोसा करता है,
यहोवा उसको छुड़ाए, वह उसको उबारे क्योंकि वह उससे प्रसन्न है।” (भज. 91:14) |
9. परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला*;
जब मैं दूध-पीता बच्चा था, तब ही से तूने मुझे भरोसा रखना सिखाया। |
14. मैं जल के समान बह गया*,
और मेरी सब हड्डियों के जोड़ उखड़ गए: मेरा हृदय मोम हो गया, वह मेरी देह के भीतर पिघल गया। |
15. मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया;
और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। (नीति. 17:22) |
16. क्योंकि कुत्तों ने मुझे घेर लिया है;
कुकर्मियों की मण्डली मेरे चारों ओर मुझे घेरे हुए है; वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं। (मत्ती 27:35 मर. 15:29 लूका 23:33) |
18. वे मेरे वस्त्र आपस में बाँटते हैं,
और मेरे पहरावे पर चिट्ठी डालते हैं। (मत्ती 27:35, लूका 23:34, यहू. 19:24-25) |
22. मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का प्रचार करूँगा;
सभा के बीच तेरी प्रशंसा करूँगा। (इब्रा. 2:12) |
23. हे यहोवा के डरवैयों, उसकी स्तुति करो!
हे याकूब के वंश, तुम सब उसकी महिमा करो! हे इस्राएल के वंश, तुम उसका भय मानो! (भज. 135:19-20) |
24. क्योंकि उसने दुःखी को तुच्छ नहीं जाना
और न उससे घृणा करता है, यहोवा ने उससे अपना मुख नहीं छिपाया; पर जब उसने उसकी दुहाई दी, तब उसकी सुन ली। |
25. बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है;
मैं अपनी मन्नतों को उसके भय रखनेवालों के सामने पूरा करूँगा। |
26. नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे;
जो यहोवा के खोजी हैं, वे उसकी स्तुति करेंगे। तुम्हारे प्राण सर्वदा जीवित रहें! |
27. पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के लोग उसको स्मरण करेंगे
और उसकी ओर फिरेंगे; और जाति-जाति के सब कुल तेरे सामने दण्डवत् करेंगे। |
29. पृथ्वी के सब हष्टपुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे;
वे सब जितने मिट्टी में मिल जाते हैं और अपना-अपना प्राण नहीं बचा सकते, वे सब उसी के सामने घुटने टेकेंगे। |
31. वे आएँगे और उसके धर्म के कामों को एक
वंश पर जो उत्पन्न होगा यह कहकर प्रगट करेंगे कि उसने ऐसे-ऐसे अद्भुत काम किए। PE |