1. हे यहोवा, मैं तुझ में शरण लेता हूँ;
मुझे कभी लज्जित होना न पड़े; तू अपने धर्मी होने के कारण मुझे छुड़ा ले! |
3. क्योंकि तू मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है;
इसलिए अपने नाम के निमित्त मेरी अगुआई कर, और मुझे आगे ले चल। |
5. मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूँ;
हे यहोवा, हे विश्वासयोग्य परमेश्वर, तूने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है। (लूका 23:46, प्रेरि. 7:59, 1 पत. 4:19) |
6. जो व्यर्थ मूर्तियों पर मन लगाते हैं,
उनसे मैं घृणा करता हूँ; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। (भज. 24:4) |
7. मैं तेरी करुणा से मगन और आनन्दित हूँ,
क्योंकि तूने मेरे दुःख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तूने मेरी सुधि ली है, |
9. हे यहोवा, मुझ पर दया कर क्योंकि मैं संकट में हूँ;
मेरी आँखें वरन् मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। |
10. मेरा जीवन शोक के मारे
और मेरी आयु कराहते-कराहते घट चली है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रहा, ओर मेरी हड्डियाँ घुल गई। |
11. अपने सब विरोधियों के कारण मेरे पड़ोसियों
में मेरी नामधराई हुई है, अपने जान-पहचानवालों के लिये डर का कारण हूँ; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझसे दूर भाग जाते हैं। |
13. मैंने बहुतों के मुँह से अपनी निन्दा सुनी,
चारों ओर भय ही भय है! जब उन्होंने मेरे विरुद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की। |
17. हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे
क्योंकि मैंने तुझको पुकारा है; दुष्ट लज्जित हों और वे पाताल में चुपचाप पड़े रहें। |
18. जो अहंकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं,
उनके झूठ बोलनेवाले मुँह बन्द किए जाएँ। (भज. 94:4, भज. 120:2) |
19. आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है
जो तूने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है, और अपने शरणागतों के लिये मनुष्यों के सामने प्रगट भी की है। |
20. तू उन्हें दर्शन देने के गुप्त स्थान में* मनुष्यों की
बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उनको अपने मण्डप में झगड़े-रगड़े से छिपा रखेगा। |
22. मैंने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की
दृष्टि से दूर हो गया। तो भी जब मैंने तेरी दुहाई दी, तब तूने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया। |
23. हे यहोवा के सब भक्तों, उससे प्रेम रखो!
यहोवा विश्वासयोग्य लोगों की तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भाँति बदला देता है*। (भज. 97:10) |