1. {विजय के लिये प्रार्थना} PS हे यहोवा, जो मेरे साथ मुकद्दमा लड़ते हैं,
उनके साथ तू भी मुकद्दमा लड़; जो मुझसे युद्ध करते हैं, उनसे तू युद्ध कर। |
4. जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं
वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हानि की कल्पना करते हैं, वे पीछे हटाए जाएँ और उनका मुँह काला हो! |
7. क्योंकि अकारण उन्होंने मेरे लिये अपना
जाल गड्ढे में बिछाया; अकारण ही उन्होंने मेरा प्राण लेने के लिये गड्ढा खोदा है। |
8. अचानक उन पर विपत्ति आ पड़े!
और जो जाल उन्होंने बिछाया है उसी में वे आप ही फँसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पड़ें! (रोम. 11:9,10, 1 थिस्स. 5:3) |
10. मेरी हड्डी-हड्डी कहेंगी,
“हे यहोवा, तेरे तुल्य कौन है, जो दीन को बड़े-बड़े बलवन्तों से बचाता है, और लुटेरों से दीन दरिद्र लोगों की रक्षा करता है?” |
13. जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहने रहा*,
और उपवास कर-करके दुःख उठाता रहा; मुझे मेरी प्रार्थना का उत्तर नहीं मिला। (अय्यू. 30:25, रोम. 12:15) |
14. मैं ऐसी भावना रखता था कि मानो वे मेरे
संगी या भाई हैं; जैसा कोई माता के लिये विलाप करता हो, वैसा ही मैंने शोक का पहरावा पहने हुए सिर झुकाकर शोक किया। |
15. परन्तु जब मैं लँगड़ाने लगा तब वे
लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरुद्ध इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे; |
17. हे प्रभु, तू कब तक देखता रहेगा?
इस विपत्ति से, जिसमें उन्होंने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिंहों से मेरे प्राण को बचा ले! |
19. मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरुद्ध
आनन्द न करने पाएँ, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में आँखों से इशारा न करने पाएँ। (यूह. 15:25, भज. 69:4) |
20. क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते,
परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरुद्ध छल की कल्पनाएँ करते हैं। |
24. हे मेरे परमेश्वर यहोवा,
तू अपने धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; और उन्हें मेरे विरुद्ध आनन्द करने न दे! |
26. जो मेरी हानि से आनन्दित होते हैं
उनके मुँह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारते हैं* वह लज्जा और अनादर से ढँप जाएँ! |
27. जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं,
वे जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास के कुशल से प्रसन्न होता है! |