पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. दुष्ट जन का अपराध उसके हृदय के भीतर कहता है; [QBR] परमेश्‍वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। (रोम. 3:18) [QBR]
2. वह अपने अधर्म के प्रगट होने [QBR] और घृणित ठहरने के विषय [QBR] अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। [QBR]
3. उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; [QBR] उसने बुद्धि और भलाई के काम करने से [QBR] हाथ उठाया है। [QBR]
4. वह अपने बिछौने पर पड़े-पड़े [QBR] अनर्थ की कल्पना करता है*; [QBR] वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; [QBR] बुराई से वह हाथ नहीं उठाता। [QBR]
5. हे यहोवा, तेरी करुणा स्वर्ग में है, [QBR] तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुँची है। [QBR]
6. तेरा धर्म ऊँचे पर्वतों के समान है, [QBR] तेरा न्याय अथाह सागर के समान हैं; [QBR] हे यहोवा, तू मनुष्य और पशु दोनों की [QBR] रक्षा करता है। [QBR]
7. हे परमेश्‍वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है! [QBR] मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। [QBR]
8. वे तेरे भवन के भोजन की [QBR] बहुतायत से तृप्त होंगे, [QBR] और तू अपनी सुख की नदी [QBR] में से उन्हें पिलाएगा। [QBR]
9. क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है*; [QBR] तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे। (यहू. 4:10, 14, प्रका. 21:6) [QBR]
10. अपने जाननेवालों पर करुणा करता रह, [QBR] और अपने धर्म के काम सीधे [QBR] मनवालों में करता रह! [QBR]
11. अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, [QBR] और न दुष्ट अपने हाथ के [QBR] बल से मुझे भगाने पाए। [QBR]
12. वहाँ अनर्थकारी गिर पड़े हैं; [QBR] वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे। [PE]

Notes

No Verse Added

Total 150 Chapters, Current Chapter 36 of Total Chapters 150
भजन संहिता 36:9
1. दुष्ट जन का अपराध उसके हृदय के भीतर कहता है;
परमेश्‍वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। (रोम. 3:18)
2. वह अपने अधर्म के प्रगट होने
और घृणित ठहरने के विषय
अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है।
3. उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं;
उसने बुद्धि और भलाई के काम करने से
हाथ उठाया है।
4. वह अपने बिछौने पर पड़े-पड़े
अनर्थ की कल्पना करता है*;
वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है;
बुराई से वह हाथ नहीं उठाता।
5. हे यहोवा, तेरी करुणा स्वर्ग में है,
तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुँची है।
6. तेरा धर्म ऊँचे पर्वतों के समान है,
तेरा न्याय अथाह सागर के समान हैं;
हे यहोवा, तू मनुष्य और पशु दोनों की
रक्षा करता है।
7. हे परमेश्‍वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है!
मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं।
8. वे तेरे भवन के भोजन की
बहुतायत से तृप्त होंगे,
और तू अपनी सुख की नदी
में से उन्हें पिलाएगा।
9. क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है*;
तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे। (यहू. 4:10, 14, प्रका. 21:6)
10. अपने जाननेवालों पर करुणा करता रह,
और अपने धर्म के काम सीधे
मनवालों में करता रह!
11. अहंकारी मुझ पर लात उठाने पाए,
और दुष्ट अपने हाथ के
बल से मुझे भगाने पाए।
12. वहाँ अनर्थकारी गिर पड़े हैं;
वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ सकेंगे। PE
Total 150 Chapters, Current Chapter 36 of Total Chapters 150
×

Alert

×

hindi Letters Keypad References