1. {धर्मी की विरासत और दुष्टों का अन्त} [PS] कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, [QBR] कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर! [QBR]
2. क्योंकि वे घास के समान झट कट जाएँगे, [QBR] और हरी घास के समान मुर्झा जाएँगे। [QBR]
3. यहोवा पर भरोसा रख, [QBR] और भला कर; देश में बसा रह, [QBR] और सच्चाई में मन लगाए रह। [QBR]
4. यहोवा को अपने सुख का मूल जान, [QBR] और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। (मत्ती 6:33) [QBR]
5. अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़*; [QBR] और उस पर भरोसा रख, [QBR] वही पूरा करेगा। [QBR]
6. और वह तेरा धर्म ज्योति के समान, [QBR] और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले के [QBR] समान प्रगट करेगा। [QBR]
7. यहोवा के सामने चुपचाप रह, [QBR] और धीरज से उसकी प्रतिक्षा कर; [QBR] उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सफल होते हैं, [QBR] और वह बुरी युक्तियों को निकालता है! [QBR]
8. क्रोध से परे रह, [QBR] और जलजलाहट को छोड़ दे! [QBR] मत कुढ़, उससे बुराई ही निकलेगी। [QBR]
9. क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएँगे; [QBR] और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, [QBR] वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। [QBR]
10. थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; [QBR] और तू उसके स्थान को भलीं [QBR] भाँति देखने पर भी उसको न पाएगा। [QBR]
11. परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, [QBR] और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएँगे। (मत्ती 5:5) [QBR]
12. दुष्ट धर्मी के विरुद्ध बुरी युक्ति निकालता है, [QBR] और उस पर दाँत पीसता है; [QBR]
13. परन्तु प्रभु उस पर हँसेगा, [QBR] क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है। [QBR]
14. दुष्ट लोग तलवार खींचे [QBR] और धनुष बढ़ाए हुए हैं, [QBR] ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, [QBR] और सीधी चाल चलनेवालों को वध करें। [QBR]
15. उनकी तलवारों से उन्हीं के हृदय छिदेंगे, [QBR] और उनके धनुष तोड़े जाएँगे। [QBR]
16. धर्मी का थोड़ा सा धन दुष्टों के [QBR] बहुत से धन से उत्तम है। [QBR]
17. क्योंकि दुष्टों की भुजाएँ तो तोड़ी जाएँगी; [QBR] परन्तु यहोवा धर्मियों को सम्भालता है। [QBR]
18. यहोवा खरे लोगों की आयु की सुधि रखता है, [QBR] और उनका भाग सदैव बना रहेगा। [QBR]
19. विपत्ति के समय, वे लज्जित न होंगे, [QBR] और अकाल के दिनों में वे तृप्त रहेंगे। [QBR]
20. दुष्ट लोग नाश हो जाएँगे; [QBR] और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास [QBR] के समान नाश होंगे, [QBR] वे धुएँ के समान लुप्त हो जाएँगे। [QBR]
21. दुष्ट ऋण लेता है, [QBR] और भरता नहीं परन्तु धर्मी [QBR] अनुग्रह करके दान देता है; [QBR]
22. क्योंकि जो उससे आशीष पाते हैं [QBR] वे तो पृथ्वी के अधिकारी होंगे, [QBR] परन्तु जो उससे श्रापित होते हैं, [QBR] वे नाश हो जाएँगे। [QBR]
23. मनुष्य की गति यहोवा की [QBR] ओर से दृढ़ होती है*, [QBR] और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है; [QBR]
24. चाहे वह गिरे तो भी पड़ा न रह जाएगा, [QBR] क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है। [QBR]
25. मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे [QBR] तक देखता आया हूँ; [QBR] परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, [QBR] और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है। [QBR]
26. वह तो दिन भर अनुग्रह कर-करके ऋण देता है, [QBR] और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है। [QBR]
27. बुराई को छोड़ भलाई कर; [QBR] और तू सर्वदा बना रहेगा। [QBR]
28. क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; [QBR] और अपने भक्तों को न तजेगा। [QBR] उनकी तो रक्षा सदा होती है, [QBR] परन्तु दुष्टों का वंश काट डाला जाएगा। [QBR]
29. धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, [QBR] और उसमें सदा बसे रहेंगे। [QBR]
30. धर्मी अपने मुँह से बुद्धि की बातें करता, [QBR] और न्याय का वचन कहता है। [QBR]
31. उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके [QBR] हृदय में बनी रहती है, [QBR] उसके पैर नहीं फिसलते। [QBR]
32. दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। [QBR] और उसके मार डालने का यत्न करता है। [QBR]
33. यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, [QBR] और जब उसका विचार किया जाए [QBR] तब वह उसे दोषी न ठहराएगा। [QBR]
34. यहोवा की बाट जोहता रह, [QBR] और उसके मार्ग पर बना रह, [QBR] और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; [QBR] जब दुष्ट काट डाले जाएँगे, तब तू देखेगा। [QBR]
35. मैंने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी [QBR] और ऐसा फैलता हुए देखा, [QBR] जैसा कोई हरा पेड़* [QBR] अपने निज भूमि में फैलता है। [QBR]
36. परन्तु जब कोई उधर से गया तो [QBR] देखा कि वह वहाँ है ही नहीं; [QBR] और मैंने भी उसे ढूँढ़ा, [QBR] परन्तु कहीं न पाया। (भज. 37:10) [QBR]
37. खरे मनुष्य पर दृष्टि कर [QBR] और धर्मी को देख, [QBR] क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरुष का [QBR] अन्तफल अच्छा है। (यशा. 32:17) [QBR]
38. परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएँगे; [QBR] दुष्टों का अन्तफल सर्वनाश है। [QBR]
39. धर्मियों की मुक्ति यहोवा की [QBR] ओर से होती है; [QBR] संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है। [QBR]
40. यहोवा उनकी सहायता करके उनको बचाता है; [QBR] वह उनको दुष्टों से छुड़ाकर उनका उद्धार करता है, [QBR] इसलिए कि उन्होंने उसमें अपनी शरण ली है। [PE]