1. {बुद्धि और क्षमा के लिये प्रार्थना} PS मैंने कहा, “मैं अपनी चालचलन में चौकसी करूँगा,
ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे सामने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।” (याकू. 1:26) |
4. “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त
मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि कैसा अनित्य हूँ! |
5. देख, तूने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है,
और मेरा जीवनकाल तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्यों न हों तो भी व्यर्थ ठहरे हैं। (सेला) |
6. सचमुच मनुष्य छाया सा चलता-फिरता है;
सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा! |
10. तूने जो विपत्ति मुझ पर डाली है
उसे मुझसे दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तेरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूँ। |
11. जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण
डाँट-डपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सामर्थ्य को पतंगे के समान नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं। |
12. “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दुहाई पर कान लगा;
मेरा रोना सुनकर शान्त न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ, और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूँ। (इब्रा. 11:13) |
13. आह! इससे पहले कि मैं यहाँ से चला जाऊँ
और न रह जाऊँ, मुझे बचा ले जिससे मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूँ!” PE |