2. उसने मुझे सत्यानाश के गड्ढे
और दलदल की कीच में से उबारा*, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरों को दृढ़ किया है। |
3. उसने मुझे एक नया गीत सिखाया
जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है। बहुत लोग यह देखेंगे और उसकी महिमा करेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे। (प्रका. 5:9, प्रका. 14:3, भज. 52:6) |
4. क्या ही धन्य है वह पुरुष,
जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियों और मिथ्या की ओर मुड़नेवालों की ओर मुँह न फेरता हो। |
5. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तूने बहुत से काम किए हैं!
जो आश्चर्यकर्मों और विचार तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूँ कि खोलकर उनकी चर्चा करूँ, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती। |
6. मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्न नहीं होता
तूने मेरे कान खोदकर खोले हैं। होमबलि और पापबलि तूने नहीं चाहा*। |
8. हे मेरे परमेश्वर,
मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्तःकरण में बसी है।” (इब्रा. 10:5-7) |
9. मैंने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है;
देख, मैंने अपना मुँह बन्द नहीं किया हे यहोवा, तू इसे जानता है। |
10. मैंने तेरा धर्म मन ही में नहीं रखा;
मैंने तेरी सच्चाई और तेरे किए हुए उद्धार की चर्चा की है; मैंने तेरी करुणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी। |
11. हे यहोवा, तू भी अपनी बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले,
तेरी करुणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे! |
12. क्योंकि मैं अनगिनत बुराइयों से घिरा हुआ हूँ;
मेरे अधर्म के कामों ने मुझे आ पकड़ा और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता; वे गिनती में मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं; इसलिए मेरा हृदय टूट गया। |
14. जो मेरे प्राण की खोज में हैं,
वे सब लज्जित हों; और उनके मुँह काले हों और वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएँ जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं। |
16. परन्तु जितने तुझे ढूँढ़ते हैं,
वह सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों; जो तेरा किया हुआ उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, “यहोवा की बड़ाई हो!” |
17. मैं तो दीन और दरिद्र हूँ,
तो भी प्रभु मेरी चिन्ता करता है। तू मेरा सहायक और छुड़ानेवाला है; हे मेरे परमेश्वर विलम्ब न कर। PE |