1. {धर्मीजन की पीड़ा और आशीर्वाद} [PS] क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! [QBR] विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। [QBR]
2. यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, [QBR] और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। [QBR] तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़। [QBR]
3. जब वह व्याधि के मारे शय्या पर पड़ा हो*, [QBR] तब यहोवा उसे सम्भालेगा; [QBR] तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा। [QBR]
4. मैंने कहा, “हे यहोवा, मुझ पर दया कर; [QBR] मुझ को चंगा कर, [QBR] क्योंकि मैंने तो तेरे विरुद्ध पाप किया है!” [QBR]
5. मेरे शत्रु यह कहकर मेरी बुराई करते हैं [QBR] “वह कब मरेगा, और उसका नाम कब मिटेगा?” [QBR]
6. और जब वह मुझसे मिलने को आता है, [QBR] तब वह व्यर्थ बातें बकता है, [QBR] जब कि उसका मन अपने अन्दर अधर्म की बातें संचय करता है; [QBR] और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है। [QBR]
7. मेरे सब बैरी मिलकर मेरे विरुद्ध कानाफूसी करते हैं; [QBR] वे मेरे विरुद्ध होकर मेरी हानि की कल्पना करते हैं। [QBR]
8. वे कहते हैं कि इसे तो कोई बुरा रोग लग गया है; [QBR] अब जो यह पड़ा है, तो फिर कभी उठने का नहीं*। [QBR]
9. मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था, [QBR] जो मेरी रोटी खाता था, [QBR] उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है। (2 शमू. 15:12, यूह. 13:18, प्रेरि. 1:16) [QBR]
10. परन्तु हे यहोवा, तू मुझ पर दया करके [QBR] मुझ को उठा ले कि मैं उनको बदला दूँ। [QBR]
11. मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, [QBR] इससे मैंने जान लिया है कि तू मुझसे प्रसन्न है। [QBR]
12. और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, [QBR] और सर्वदा के लिये अपने सम्मुख स्थिर करता है। [QBR]
13. इस्राएल का परमेश्वर यहोवा [QBR] आदि से अनन्तकाल तक धन्य है [QBR] आमीन, फिर आमीन। (लूका 1:68, भजन 106:48) [PE]