2. जीविते परमेश्वर, हाँ परमेश्वर, का मैं प्यासा हूँ,
मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुँह दिखाऊँगा? (भज. 63:1, प्रका. 22:4) |
3. मेरे आँसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं;
और लोग दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है? |
4. मैं कैसे भीड़ के संग जाया करता था,
मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन* को धीरे-धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। |
5. हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है?
और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा। (मत्ती 26:38, मर. 14:34, यूह. 12:27) |
6. हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है,
इसलिए मैं यरदन के पास के देश से और हेर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूँ। |
7. तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल,
जल को पुकारता है*; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूँ। |
8. तो भी दिन को यहोवा अपनी शक्ति
और करुणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊँगा, और अपने जीवनदाता परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा। |
9. मैं परमेश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा,
“तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अत्याचार के मारे क्यों शोक का पहरावा पहने हुए चलता-फिरता हूँ?” |
10. मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं,
मानो उससे मेरी हड्डियाँ चूर-चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है? |
11. हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है?
परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। (भज. 43:5, मर. 14:34, यूह. 12:27) PE |