1. {#1दुष्ट का अन्त और धर्मी की शान्ति }[PS]*प्रधान बजानेवाले के लिये मश्कील पर दाऊद का भजन जब दोएग एदोमी ने शाऊल को बताया कि दाऊद अहीमेलेक के घर गया था *[PE][PS]हे वीर, तू बुराई करने पर क्यों घमण्ड करता है? [PE][QS]परमेश्वर की करुणा तो अनन्त है। [QE]
2. [QS]तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है*; [QE][QS]सान धरे हुए उस्तरे के समान वह छल [QE][QS]का काम करती है। [QE]
3. [QS]तू भलाई से बढ़कर बुराई में, [QE][QS]और धर्म की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है। (सेला) [QE]
4. [QS]हे छली जीभ, [QE][QS]तू सब विनाश करनेवाली बातों से प्रसन्न रहती है। [QE]
5. [QS]निश्चय परमेश्वर तुझे सदा के लिये नाश कर देगा; [QE][QS]वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; [QE][QS]और जीवितों के लोक से तुझे उखाड़ डालेगा। (सेला) [QE]
6. [QS]तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएँगे, [QE][QS]और यह कहकर उस पर हँसेंगे, [QE]
7. [QS]“देखो, यह वही पुरुष है जिसने परमेश्वर को [QE][QS]अपनी शरण नहीं माना, [QE][QS]परन्तु अपने धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, [QE][QS]और अपने को दुष्टता में दृढ़ करता रहा!” [QE]
8. [QS]परन्तु मैं तो परमेश्वर के भवन में हरे जैतून के [QE][QS]वृक्ष के समान हूँ*। [QE][QS]मैंने परमेश्वर की करुणा पर सदा सर्वदा के [QE][QS]लिये भरोसा रखा है। [QE]
9. [QS]मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूँगा, क्योंकि [QE][QS]तू ही ने यह काम किया है। [QE][QS]मैं तेरे नाम पर आशा रखता हूँ, क्योंकि [QE][QS]यह तेरे पवित्र भक्तों के सामने उत्तम है। [QE]