1. {विश्वासघाती के विनाश के लिये प्रार्थना} [PS] हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; [QBR] और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुँह न मोड़! [QBR]
2. मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; [QBR] विपत्तियों के कारण मैं व्याकुल होता हूँ। [QBR]
3. क्योंकि शत्रु कोलाहल [QBR] और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; [QBR] वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, [QBR] और क्रोध में आकर सताते हैं। [QBR]
4. मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है*, [QBR] और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। [QBR]
5. भय और कंपन ने मुझे पकड़ लिया है, [QBR] और भय ने मुझे जकड़ लिया है। [QBR]
6. तब मैंने कहा, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते [QBR] तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! [QBR]
7. देखो, फिर तो मैं उड़ते-उड़ते दूर निकल जाता [QBR] और जंगल में बसेरा लेता, (सेला) [QBR]
8. मैं प्रचण्ड बयार और आँधी के झोंके से [QBR] बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता।” [QBR]
9. हे प्रभु, उनका सत्यानाश कर, [QBR] और उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे; [QBR] क्योंकि मैंने नगर में उपद्रव और झगड़ा देखा है। [QBR]
10. रात-दिन वे उसकी शहरपनाह पर चढ़कर चारों ओर घूमते हैं; [QBR] और उसके भीतर दुष्टता और उत्पात होता है। [QBR]
11. उसके भीतर दुष्टता ने बसेरा डाला है; [QBR] और अत्याचार और छल उसके चौक से दूर नहीं होते। [QBR]
12. जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, [QBR] नहीं तो मैं उसको सह लेता; [QBR] जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, [QBR] नहीं तो मैं उससे छिप जाता। [QBR]
13. परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य [QBR] मेरा परम मित्र और मेरी जान-पहचान का था। [QBR]
14. हम दोनों आपस में कैसी मीठी-मीठी बातें करते थे; [QBR] हम भीड़ के साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे। [QBR]
15. उनको मृत्यु अचानक आ दबाए; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएँ; [QBR] क्योंकि उनके घर और मन दोनों में बुराइयाँ और उत्पात भरा है*। [QBR]
16. परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूँगा; [QBR] और यहोवा मुझे बचा लेगा। [QBR]
17. सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर [QBR] मैं दुहाई दूँगा और कराहता रहूँगा [QBR] और वह मेरा शब्द सुन लेगा। [QBR]
18. जो लड़ाई मेरे विरुद्ध मची थी उससे उसने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। [QBR] उन्होंने तो बहुतों को संग लेकर मेरा सामना किया था। [QBR]
19. परमेश्वर जो आदि से विराजमान है यह सुनकर उनको उत्तर देगा। (सेला) [QBR] ये वे है जिनमें कोई परिवर्तन नहीं, और उनमें परमेश्वर का भय है ही नहीं। [QBR]
20. उसने अपने मेल रखनेवालों पर भी हाथ उठाया है, [QBR] उसने अपनी वाचा को तोड़ दिया है। [QBR]
21. उसके मुँह की बातें तो मक्खन सी चिकनी थी [QBR] परन्तु उसके मन में लड़ाई की बातें थीं; [QBR] उसके वचन तेल से अधिक नरम तो थे [QBR] परन्तु नंगी तलवारें थीं। [QBR]
22. अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; [QBR] वह धर्मी को कभी टलने न देगा। (1 पत. 5:7, भज. 37:24) [QBR]
23. परन्तु हे परमेश्वर, तू उन लोगों को विनाश के गड्ढे में गिरा देगा; [QBR] हत्यारे और छली मनुष्य अपनी आधी आयु तक भी जीवित न रहेंगे। [QBR] परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखे रहूँगा। [PE]