1. सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेश्वर की ओर मन लगाए हूँ [QBR] मेरा उद्धार उसी से होता है। [QBR]
2. सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, [QBR] वह मेरा गढ़ है मैं अधिक न डिगूँगा। [QBR]
3. तुम कब तक एक पुरुष पर धावा करते रहोगे, [QBR] कि सब मिलकर उसका घात करो? [QBR] वह तो झुकी हुई दीवार या गिरते हुए बाड़े के समान है। [QBR]
4. सचमुच वे उसको, उसके ऊँचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; [QBR] वे झूठ से प्रसन्न रहते हैं। [QBR] मुँह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं। (सेला) [QBR]
5. हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह, [QBR] क्योंकि मेरी आशा उसी से है। [QBR]
6. सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, [QBR] वह मेरा गढ़ है; इसलिए मैं न डिगूँगा। [QBR]
7. मेरे उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; [QBR] मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है। [QBR]
8. हे लोगों, हर समय उस पर भरोसा रखो; [QBR] उससे अपने-अपने मन की बातें खोलकर कहो*; [QBR] परमेश्वर हमारा शरणस्थान है। (सेला) [QBR]
9. सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; [QBR] तौल में वे हलके निकलते हैं; [QBR] वे सब के सब साँस से भी हलके हैं। [QBR]
10. अत्याचार करने पर भरोसा मत रखो, [QBR] और लूट पाट करने पर मत फूलो; [QBR] चाहे धन सम्पत्ति बढ़े, तो भी उस पर मन न लगाना। (मत्ती 19:21-22, 1 तीमु. 6:17) [QBR]
11. परमेश्वर ने एक बार कहा है; [QBR] और दो बार मैंने यह सुना है: [QBR] कि सामर्थ्य परमेश्वर का है* [QBR]
12. और हे प्रभु, करुणा भी तेरी है। [QBR] क्योंकि तू एक-एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है। (दानि. 9:9, मत्ती 16:27, रोम. 2:6, प्रका. 22:12) [PE]