4. क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है,
कि वह तेरे आँगनों में वास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम-उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे। |
5. हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर,
हे पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, तू धार्मिकता से किए हुए अद्भुत कार्यों द्वारा हमें उत्तर देगा; |
7. तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द,
और देश-देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है*; (मत्ती 8:26, यह. 17:12-13) |
8. इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं;
तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है। |
9. तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है,
तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्वर की नदी जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है। |
10. तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है,
और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है। |
13. चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं;
और तराइयाँ अन्न से ढँपी हुई हैं, वे जयजयकार करती और गाती भी हैं। PE |