पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. हे परमेश्‍वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; [QBR] और तेरे लिये मन्नतें पूरी की जाएँगी*। [QBR]
2. हे प्रार्थना के सुननेवाले! [QBR] सब प्राणी तेरे ही पास आएँगे। (प्रेरि. 10:34-35, यह 66:23) [QBR]
3. अधर्म के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; [QBR] हमारे अपराधों को तू क्षमा करेगा। [QBR]
4. क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, [QBR] कि वह तेरे आँगनों में वास करे! [QBR] हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम-उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे। [QBR]
5. हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, [QBR] हे पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, [QBR] तू धार्मिकता से किए हुए अद्भुत कार्यों द्वारा हमें उत्तर देगा; [QBR]
6. तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, [QBR] अपनी सामर्थ्य के पर्वतों को स्थिर करता है; [QBR]
7. तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द, [QBR] और देश-देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है*; (मत्ती 8:26, यह. 17:12-13) [QBR]
8. इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; [QBR] तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है। [QBR]
9. तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है, [QBR] तू उसको बहुत फलदायक करता है; [QBR] परमेश्‍वर की नदी जल से भरी रहती है; [QBR] तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है। [QBR]
10. तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है, [QBR] और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, [QBR] तू भूमि को मेंह से नरम करता है, [QBR] और उसकी उपज पर आशीष देता है। [QBR]
11. तेरी भलाइयों से, तू वर्ष को मुकुट पहनता है; [QBR] तेरे मार्गों में उत्तम-उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। [QBR]
12. वे जंगल की चराइयों में हरियाली फूट पड़ती हैं; [QBR] और पहाड़ियाँ हर्ष का फेंटा बाँधे हुए है। [QBR]
13. चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं; [QBR] और तराइयाँ अन्न से ढँपी हुई हैं, [QBR] वे जयजयकार करती और गाती भी हैं। [PE]

Notes

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भजन संहिता 65:102
1 हे परमेश्‍वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिये मन्नतें पूरी की जाएँगी*। 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएँगे। (प्रेरि. 10:34-35, यह 66:23) 3 अधर्म के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; हमारे अपराधों को तू क्षमा करेगा। 4 क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आँगनों में वास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम-उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे। 5 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, हे पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, तू धार्मिकता से किए हुए अद्भुत कार्यों द्वारा हमें उत्तर देगा; 6 तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपनी सामर्थ्य के पर्वतों को स्थिर करता है; 7 तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द, और देश-देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है*; (मत्ती 8:26, यह. 17:12-13) 8 इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है। 9 तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है, तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्‍वर की नदी जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है। 10 तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है, और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है। 11 तेरी भलाइयों से, तू वर्ष को मुकुट पहनता है; तेरे मार्गों में उत्तम-उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। 12 वे जंगल की चराइयों में हरियाली फूट पड़ती हैं; और पहाड़ियाँ हर्ष का फेंटा बाँधे हुए है। 13 चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं; और तराइयाँ अन्न से ढँपी हुई हैं, वे जयजयकार करती और गाती भी हैं।
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