2. मैं बड़े दलदल में धँसा जाता हूँ, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते;
मैं गहरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूँ। |
3. मैं पुकारते-पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है;
अपने परमेश्वर की बाट जोहते-जोहते, मेरी आँखें धुँधली पड़ गई हैं। |
4. जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालों से अधिक हैं;
मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, इसलिए जो मैंने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा। (यूह. 15:25, भजन 35:19) |
6. हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, वे मेरे कारण लज्जित न हो;
हे इस्राएल के परमेश्वर, जो तुझे ढूँढ़ते हैं, वह मेरे कारण अपमानित न हो। |
9. क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते-जलते भस्म हुआ,
और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। (यूह. 2:17, रोम. 15:3, इब्रा. 11:26) |
12. फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं,
और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। |
13. परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है;
हे परमेश्वर अपनी करुणा की बहुतायात से, और बचाने की अपनी सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। |
16. हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करुणा उत्तम है;
अपनी दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। |
20. मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूँ।
मैंने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, परन्तु किसी को न पाया, और शान्ति देनेवाले ढूँढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। |
21. लोगों ने मेरे खाने के लिये विष दिया,
और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया*। (मर. 15:23,36, लूका 23:36, यूह. 19:28-29) |
23. उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए, ताकि वे देख न सके;
और तू उनकी कटि को निरन्तर कँपाता रह। (रोम. 11:9-10) |
26. क्योंकि जिसको तूने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं,
और जिनको तूने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। (यह. 53:4) |
28. उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए,
और धर्मियों के संग लिखा न जाए। (लूका 10:20, प्रका. 3:5, प्रका. 20:12,15, प्रका. 21:27) |
29. परन्तु मैं तो दुःखी और पीड़ित हूँ,
इसलिए हे परमेश्वर, तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊँचे स्थान पर बैठा। |
35. क्योंकि परमेश्वर सिय्योन का उद्धार करेगा,
और यहूदा के नगरों को फिर बसाएगा; और लोग फिर वहाँ बसकर उसके अधिकारी हो जाएँगे। |