1. {उत्पीड़कों से राहत के लिए प्रार्थना} PS हे परमेश्वर, तूने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है?
तेरी कोपाग्नि का धुआँ तेरी चराई की भेड़ों के विरुद्ध क्यों उठ रहा है? |
2. अपनी मण्डली को जिसे तूने प्राचीनकाल में मोल लिया था*,
और अपने निज भाग का गोत्र होने के लिये छुड़ा लिया था, और इस सिय्योन पर्वत को भी, जिस पर तूने वास किया था, स्मरण कर! (व्य. 32:9, यिर्म. 10;16, प्रेरि. 20:28) |
3. अपने डग अनन्त खण्डहरों की ओर बढ़ा;
अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्रु ने पवित्रस्थान में की हैं। |
4. तेरे द्रोही तेरे पवित्रस्थान के बीच गर्जते रहे हैं;
उन्होंने अपनी ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। |
7. उन्होंने तेरे पवित्रस्थान को आग में झोंक दिया है,
और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। |
8. उन्होंने मन में कहा है, “हम इनको एकदम दबा दें।”
उन्होंने इस देश में परमेश्वर के सब सभास्थानों को फूँक दिया है। |
9. हमको अब परमेश्वर के कोई अद्भुत चिन्ह दिखाई नहीं देते;
अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी। |
21. पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पड़े;
दीन और दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएँ। (भज. 103:6) |
22. हे परमेश्वर, उठ, अपना मुकद्दमा आप ही लड़;
तेरी जो नामधराई मूर्ख द्वारा दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर। |