1. {परमेश्वर और उसके लोग } [QS][PS]*आसाप का मश्कील *[PE][PBR]हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो; [QE][QS]मेरे वचनों की ओर कान लगाओ! [QE]
2. [QS]मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा*; [QE][QS]मैं प्राचीनकाल की गुप्त बातें कहूँगा, (मत्ती 13:35) [QE]
3. [QS]जिन बातों को हमने सुना, और जान लिया, [QE][QS]और हमारे बाप दादों ने हम से वर्णन किया है। [QE]
4. [QS]उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे, [QE][QS]परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, [QE][QS]यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ्य [QE][QS]और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगे। (व्य. 4:9, यहो. 4:6-7, इफि. 6:4) [QE]
5. [QS]उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, [QE][QS]और इस्राएल में एक व्यवस्था चलाई, [QE][QS]जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, [QE][QS]कि तुम इन्हें अपने-अपने बाल-बच्चों को बताना; [QE]
6. [QS]कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हें जानें; [QE][QS]और अपने-अपने बाल-बच्चों से इनका बखान करने में उद्यत हों, [QE]
7. [QS]जिससे वे परमेश्वर का भरोसा रखें, परमेश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ, [QE][QS]परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें; [QE]
8. [QS]और अपने पितरों के समान न हों, [QE][QS]क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, [QE][QS]और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, [QE][QS]और न उनकी आत्मा परमेश्वर की ओर सच्ची रही। (2 राजा. 17:14-15) [QE]
9. [QS]एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी, [QE][QS]युद्ध के समय पीठ दिखा दी। [QE]
10. [QS]उन्होंने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, [QE][QS]और उसकी व्यवस्था पर चलने से इन्कार किया। [QE]
11. [QS]उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे, [QE][QS]उनको भुला दिया। [QE]
12. [QS]उसने तो उनके बाप-दादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे। [QE]
13. [QS]उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया, [QE][QS]और जल को ढेर के समान खड़ा कर दिया। [QE]
14. [QS]उसने दिन को बादल के खम्भे से [QE][QS]और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की। [QE]
15. [QS]वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, [QE][QS]उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11, 1 कुरि. 10:4) [QE]
16. [QS]उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं [QE][QS]और नदियों का सा जल बहाया। [QE]
17. [QS]तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, [QE][QS]और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे। [QE]
18. [QS]और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा की*। [QE]
19. [QS]वे परमेश्वर के विरुद्ध बोले, [QE][QS]और कहने लगे, “क्या परमेश्वर जंगल में मेज लगा सकता है? [QE]
20. [QS]उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, [QE][QS]और धाराएँ उमण्ड चली, [QE][QS]परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? [QE][QS]क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?” [QE]
21. [QS]यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, [QE][QS]तब याकूब के विरुद्ध उसकी आग भड़क उठी, [QE][QS]और इस्राएल के विरुद्ध क्रोध भड़का; [QE]
22. [QS]इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, [QE][QS]न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया। [QE]
23. [QS]तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी, [QE][QS]और स्वर्ग के द्वारों को खोला; [QE]
24. [QS]और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, [QE][QS]और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया। (निर्ग. 16:4, यूह. 6:31) [QE]
25. [QS]मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; [QE][QS]उसने उनको मनमाना भोजन दिया। [QE]
26. [QS]उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, [QE][QS]और अपनी शक्ति से दक्षिणी बहाई; [QE]
27. [QS]और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया, [QE][QS]और समुद्र के रेत के समान अनगिनत पक्षी भेजे; [QE]
28. [QS]और उनकी छावनी के बीच में, [QE][QS]उनके निवासों के चारों ओर गिराए। [QE]
29. [QS]और वे खाकर अति तृप्त हुए, [QE][QS]और उसने उनकी कामना पूरी की। [QE]
30. [QS]उनकी कामना बनी ही रही, [QE][QS]उनका भोजन उनके मुँह ही में था, [QE]
31. [QS]कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, [QE][QS]और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, [QE][QS]और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5) [QE]
32. [QS]इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; [QE][QS]और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया। [QE]
33. [QS]तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, [QE][QS]और उनके वर्षों को घबराहट में कटवाया। [QE]
34. [QS]जब वह उन्हें घात करने लगता*, तब वे उसको पूछते थे; [QE][QS]और फिरकर परमेश्वर को यत्न से खोजते थे। [QE]
35. [QS]उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, [QE][QS]और परमप्रधान परमेश्वर हमारा छुड़ानेवाला है। [QE]
36. [QS]तो भी उन्होंने उसकी चापलूसी की; [QE][QS]वे उससे झूठ बोले। [QE]
37. [QS]क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; [QE][QS]न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। (प्रेरि. 8:21) [QE]
38. [QS]परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता; [QE][QS]वह बार-बार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, [QE][QS]और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता। [QE]
39. [QS]उसको स्मरण हुआ कि ये नाशवान हैं, [QE][QS]ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती। [QE]
40. [QS]उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, [QE][QS]और निर्जल देश में उसको उदास किया! [QE]
41. [QS]वे बार-बार परमेश्वर की परीक्षा करते थे, [QE][QS]और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे। [QE]
42. [QS]उन्होंने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, [QE][QS]न वह दिन जब उसने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; [QE]
43. [QS]कि उसने कैसे अपने चिन्ह मिस्र में, [QE][QS]और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे। [QE]
44. [QS]उसने तो मिस्रियों की नदियों को लहू बना डाला, [QE][QS]और वे अपनी नदियों का जल पी न सके। (प्रका. 16:4) [QE]
45. [QS]उसने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हें काट खाया, [QE][QS]और मेंढ़क भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया। [QE]
46. [QS]उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, [QE][QS]और उनकी खेतीबारी टिड्डियों को खिला दी थी। [QE]
47. [QS]उसने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, [QE][QS]और उनके गूलर के पेड़ों को ओले बरसाकर नाश किया। [QE]
48. [QS]उसने उनके पशुओं को ओलों से, [QE][QS]और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया। [QE]
49. [QS]उसने उनके ऊपर अपना प्रचण्ड क्रोध और रोष भड़काया, [QE][QS]और उन्हें संकट में डाला, [QE][QS]और दुःखदाई दूतों का दल भेजा। [QE]
50. [QS]उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला, [QE][QS]और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, [QE][QS]परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया। [QE]
51. [QS]उसने मिस्र के सब पहलौठों को मारा, [QE][QS]जो हाम के डेरों में पौरूष के पहले फल थे; [QE]
52. [QS]परन्तु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया, [QE][QS]और जंगल में उनकी अगुआई पशुओं के झुण्ड की सी की। [QE]
53. [QS]तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, [QE][QS]परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए। [QE]
54. [QS]और उसने उनको अपने पवित्र देश की सीमा तक, [QE][QS]इसी पहाड़ी देश में पहुँचाया, जो उसने अपने दाहिने हाथ से प्राप्त किया था। [QE]
55. [QS]उसने उनके सामने से अन्यजातियों को भगा दिया; [QE][QS]और उनकी भूमि को डोरी से माप-मापकर बाँट दिया; [QE][QS]और इस्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया। [QE]
56. [QS]तो भी उन्होंने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उससे बलवा किया, [QE][QS]और उसकी चितौनियों को न माना, [QE]
57. [QS]और मुड़कर अपने पुरखाओं के समान विश्वासघात किया; [QE][QS]उन्होंने निकम्मे धनुष के समान धोखा दिया। [QE]
58. [QS]क्योंकि उन्होंने ऊँचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, [QE][QS]और खुदी हुई मूर्तियों के द्वारा उसमें से जलन उपजाई। [QE]
59. [QS]परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, [QE][QS]और उसने इस्राएल को बिल्कुल तज दिया। [QE]
60. [QS]उसने शीलो के निवास, [QE][QS]अर्थात् उस तम्बू को जो उसने मनुष्यों के बीच खडा किया था, त्याग दिया, [QE]
61. [QS]और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया, [QE][QS]और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया। [QE]
62. [QS]उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, [QE][QS]और अपने निज भाग के विरुद्ध रोष से भर गया। [QE]
63. [QS]उनके जवान आग से भस्म हुए, [QE][QS]और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाएँ गए। [QE]
64. [QS]उनके याजक तलवार से मारे गए, [QE][QS]और उनकी विधवाएँ रोने न पाई। [QE]
65. [QS]तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा*, [QE][QS]और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो। [QE]
66. [QS]उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; [QE][QS]और उनकी सदा की नामधराई कराई। [QE]
67. [QS]फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया; [QE][QS]और एप्रैम के गोत्र को न चुना; [QE]
68. [QS]परन्तु यहूदा ही के गोत्र को, [QE][QS]और अपने प्रिय सिय्योन पर्वत को चुन लिया। [QE]
69. [QS]उसने अपने पवित्रस्थान को बहुत ऊँचा बना दिया, [QE][QS]और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नींव उसने सदा के लिये डाली है। [QE]
70. [QS]फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया; [QE]
71. [QS]वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे-पीछे फिरने से ले आया [QE][QS]कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात् उसके निज भाग इस्राएल की चरवाही करे। [QE]
72. [QS]तब उसने खरे मन से उनकी चरवाही की, [QE][QS]और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुआई की। [QE]