2. मेरा प्राण यहोवा के आँगनों की अभिलाषा करते-करते मूर्छित हो चला;
मेरा तन मन दोनों* जीविते परमेश्वर को पुकार रहे। |
3. हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियों में गौरैया ने अपना बसेरा
और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिसमें वह अपने बच्चे रखे। |
6. वे रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतों का स्थान बनाते हैं;
फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। |
10. क्योंकि तेरे आँगनों में एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है।
दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। |
11. क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है;
यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा*। |