पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिये धाम बना है। [QBR]
2. इससे पहले कि पहाड़ उत्‍पन्‍न हुए, [QBR] या तूने पृथ्वी और जगत की रचना की, [QBR] वरन् अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्‍वर है। [QBR]
3. तू मनुष्य को लौटाकर मिट्टी में ले जाता है, [QBR] और कहता है, “हे आदमियों, लौट आओ!” [QBR]
4. क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, [QBR] जैसा कल का दिन जो बीत गया, [QBR] या रात का एक पहर। (2 पत. 3:8) [QBR]
5. तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; [QBR] वे स्वप्न से ठहरते हैं, [QBR] वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। [QBR]
6. वह भोर को फूलती और बढ़ती है, [QBR] और सांझ तक कटकर मुर्झा जाती है। [QBR]
7. क्योंकि हम तेरे क्रोध से भस्म हुए हैं; [QBR] और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं। [QBR]
8. तूने हमारे अधर्म के कामों को अपने सम्मुख, [QBR] और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है*। [QBR]
9. क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, [QBR] हम अपने वर्ष शब्द के समान बिताते हैं। [QBR]
10. हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, [QBR] और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ, [QBR] तो भी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; [QBR] क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। [QBR]
11. तेरे क्रोध की शक्ति को [QBR] और तेरे भय के योग्य तेरे रोष को कौन समझता है? [QBR]
12. हमको अपने दिन गिनने की समझ दे* कि हम बुद्धिमान हो जाएँ। [QBR]
13. हे यहोवा, लौट आ! कब तक? [QBR] और अपने दासों पर तरस खा! [QBR]
14. भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर, [QBR] कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें। [QBR]
15. जितने दिन तू हमें दुःख देता आया, [QBR] और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं [QBR] उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे। [QBR]
16. तेरा काम तेरे दासों को, [QBR] और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो। [QBR]
17. हमारे परमेश्‍वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, [QBR] तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, [QBR] हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर। [PE]

Notes

No Verse Added

Total 150 Chapters, Current Chapter 90 of Total Chapters 150
भजन संहिता 90:107
1. हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिये धाम बना है।
2. इससे पहले कि पहाड़ उत्‍पन्‍न हुए,
या तूने पृथ्वी और जगत की रचना की,
वरन् अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्‍वर है।
3. तू मनुष्य को लौटाकर मिट्टी में ले जाता है,
और कहता है, “हे आदमियों, लौट आओ!”
4. क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं,
जैसा कल का दिन जो बीत गया,
या रात का एक पहर। (2 पत. 3:8)
5. तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है;
वे स्वप्न से ठहरते हैं,
वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं।
6. वह भोर को फूलती और बढ़ती है,
और सांझ तक कटकर मुर्झा जाती है।
7. क्योंकि हम तेरे क्रोध से भस्म हुए हैं;
और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं।
8. तूने हमारे अधर्म के कामों को अपने सम्मुख,
और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है*।
9. क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं,
हम अपने वर्ष शब्द के समान बिताते हैं।
10. हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं,
और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ,
तो भी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है;
क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।
11. तेरे क्रोध की शक्ति को
और तेरे भय के योग्य तेरे रोष को कौन समझता है?
12. हमको अपने दिन गिनने की समझ दे* कि हम बुद्धिमान हो जाएँ।
13. हे यहोवा, लौट आ! कब तक?
और अपने दासों पर तरस खा!
14. भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर,
कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें।
15. जितने दिन तू हमें दुःख देता आया,
और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं
उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे।
16. तेरा काम तेरे दासों को,
और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो।
17. हमारे परमेश्‍वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो,
तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर,
हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर। PE
Total 150 Chapters, Current Chapter 90 of Total Chapters 150
×

Alert

×

hindi Letters Keypad References