2. इससे पहले कि पहाड़ उत्पन्न हुए,
या तूने पृथ्वी और जगत की रचना की, वरन् अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्वर है। |
4. क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं,
जैसा कल का दिन जो बीत गया, या रात का एक पहर। (2 पत. 3:8) |
5. तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है;
वे स्वप्न से ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। |
8. तूने हमारे अधर्म के कामों को अपने सम्मुख,
और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है*। |
10. हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं,
और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ, तो भी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। |
15. जितने दिन तू हमें दुःख देता आया,
और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे। |
17. हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो,
तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर। PE |