1. {#1दो गवाह } [PS]फिर मुझे नापने के लिये एक सरकण्डा* दिया गया, और किसी ने कहा, “उठ, परमेश्वर के मन्दिर और वेदी, और उसमें भजन करनेवालों को नाप ले। (जक. 2:1)
2. पर मन्दिर के बाहर का आँगन छोड़ दे; उसे मत नाप क्योंकि वह अन्यजातियों को दिया गया है, और वे पवित्र नगर को बयालीस महीने तक रौंदेंगी।
3. “और मैं अपने दो गवाहों को यह अधिकार दूँगा कि टाट ओढ़े हुए एक हजार दो सौ साठ दिन तक भविष्यद्वाणी करें।”
4. ये वे ही जैतून के दो पेड़ और दो दीवट हैं जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं*। (जक. 4:3)
5. और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहता है, तो उनके मुँह से आग निकलकर उनके बैरियों को भस्म करती है, और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहेगा, तो अवश्य इसी रीति से मार डाला जाएगा। (यिर्म. 5:14)
6. उन्हें अधिकार है कि आकाश को बन्द करें, कि उनकी भविष्यद्वाणी के दिनों में मेंह न बरसे, और उन्हें सब पानी पर अधिकार है, कि उसे लहू बनाएँ, और जब-जब चाहें तब-तब पृथ्वी पर हर प्रकार की विपत्ति लाएँ।
7. जब वे अपनी गवाही दे चुकेंगे, तो वह पशु जो अथाह कुण्ड में से निकलेगा, उनसे लड़कर उन्हें जीतेगा और उन्हें मार डालेगा। (प्रका. 13:7)
8. और उनके शव उस बड़े नगर के चौक में पड़े रहेंगे, जो आत्मिक रीति से सदोम और मिस्र कहलाता है, जहाँ उनका प्रभु भी क्रूस पर चढ़ाया गया था।
9. और सब लोगों, कुलों, भाषाओं, और जातियों में से लोग उनके शवों को साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उनके शवों को कब्र में रखने न देंगे।
10. और पृथ्वी के रहनेवाले उनके मरने से आनन्दित और मगन होंगे, और एक दूसरे के पास भेंट भेजेंगे, क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने पृथ्वी के रहनेवालों को सताया था।
11. परन्तु साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्वर की ओर से जीवन का श्वास उनमें पैंठ गया; और वे अपने पाँवों के बल खड़े हो गए, और उनके देखनेवालों पर बड़ा भय छा गया।
12. और उन्हें स्वर्ग से एक बड़ा शब्द सुनाई दिया, “यहाँ ऊपर आओ!” यह सुन वे बादल पर सवार होकर अपने बैरियों के देखते-देखते स्वर्ग पर चढ़ गए।
13. फिर उसी घड़ी एक बड़ा भूकम्प हुआ, और नगर का दसवाँ भाग गिर पड़ा; और उस भूकम्प से सात हजार मनुष्य मर गए और शेष डर गए, और स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा की। (प्रका. 14:7)
14. दूसरी विपत्ति बीत चुकी; तब, तीसरी विपत्ति शीघ्र आनेवाली है। [PE]
15. {#1सातवीं तुरही } [PS]जब सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े-बड़े शब्द होने लगे: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (दानि. 7:27, जक. 14:9)
16. और चौबीसों प्राचीन जो परमेश्वर के सामने अपने-अपने सिंहासन पर बैठे थे, मुँह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत् करके,
17. यह कहने लगे, [PE][QS]“हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था*, [QE][QS]हम तेरा धन्यवाद करते हैं कि [QE][QS]तूने अपनी बड़ी सामर्थ्य को काम में लाकर राज्य किया है। (प्रका. 1:8) [QE]
18. [QS]अन्यजातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा [QE][QS]और वह समय आ पहुँचा है कि मरे हुओं का न्याय किया जाए, [QE][QS]और तेरे दास भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों को [QE][QS]और उन छोटे-बड़ों को जो तेरे नाम से डरते हैं, बदला दिया जाए, [QE][QS]और पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएँ।” (प्रका. 19:5) [QE]
19. [PS]और परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उसकी वाचा का सन्दूक दिखाई दिया, बिजलियाँ, शब्द, गर्जन और भूकम्प हुए, और बड़े ओले पड़े। (प्रका. 15:5) [QE]