1. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को नाश करे जिनका देश वह तुझे देता है, और तू उनके देश का अधिकारी हो के उनके नगरों और घरों में रहने लगे,
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2. तब अपने देश के बीच जिसका अधिकारी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे कर देता है तीन नगर अपने लिये अलग कर देना।
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3. और तू अपने लिये मार्ग भी तैयार करना, और अपने देश के जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे सौंप देता है तीन भाग करना, ताकि हर एक खूनी वहीं भाग जाए।
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4. और जो खूनी वहां भाग कर अपने प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्थात वह किसी से बिना पहिले बैर रखे वा उसको बिना जाने बूझे मार डाला हो
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5. जैसे कोई किसी के संग लकड़ी काटने को जंगल में जाए, और वृक्ष काटने को कुल्हाड़ी हाथ से उठाए, और कुल्हाड़ी बेंट से निकल कर उस भाई को ऐसी लगे कि वह मर जाए तो वह उस नगरों में से किसी में भाग कर जीवित रहे;
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6. ऐसा न हो कि मार्ग की लम्बाई के कारण खून का पलटा लेने वाला अपने क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा कर के उसको जा पकड़े, और मार डाले, यद्यपि वह प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि उस से बैर नहीं रखता था।
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8. और यदि तेरा परमेश्वर यहोवा उस शपथ के अनुसार जो उसने तेरे पूर्वजों से खाई थी तेरे सिवानों को बढ़ाकर वह सारा देश तुझे दे, जिसके देने का वचन उसने तेरे पूर्वजों को दिया था
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9. यदि तू इन सब आज्ञाओं के मानने में जिन्हें मैं आज तुझ को सुनाता हूं चौकसी करे, और अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखे और सदा उसके मार्गों पर चलता रहे तो इन तीन नगरों से अधिक और भी तीन नगर अलग कर देना,
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10. इसलिये कि तेरे उस देश में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके देता है किसी निर्दोष का खून न बहाया जाए, और उसका दोष तुझ पर न लगे।
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11. परन्तु यदि कोई किसी से बैर रखकर उसकी घात में लगे, और उस पर लपककर उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए, और फिर उन नगरों में से किसी में भाग जाए,
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12. तो उसके नगर के पुरनिये किसी को भेज कर उसको वहां से मंगाकर खून के पलटा लेने वाले के हाथ में सौंप दे, कि वह मार डाला जाए।
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14. जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है, उसका जो भाग तुझे मिलेगा, उस में किसी का सिवाना जिसे अगले लोगों ने ठहराया हो न हटाना॥
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15. किसी मनुष्य के विरुद्ध किसी प्रकार के अधर्म वा पाप के विषय में, चाहे उसका पाप कैसा ही क्यों न हो, एक ही जन की साक्षी न सुनना, परन्तु दो वा तीन साक्षीयों के कहने से बात पक्की ठहरे।
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17. तो वे दोनों मनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुकद्दमा उठा हो, यहोवा के सम्मुख, अर्थात उन दिनों के याजकों और न्यायियों के साम्हने खड़े किए जाएं;
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18. तब न्यायी भली भांति पूछपाछ करें, और यदि यह निर्णय पाए कि वह झूठा साक्षी है, और अपने भाई के विरुद्ध झूठी साक्षी दी है
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19. तो अपने भाई की जैसी भी हानि करवाने की युक्ति उसने की हो वैसी ही तुम भी उसकी करना; इसी रीति से अपने बीच में से ऐसी बुराई को दूर करना।
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21. और तू बिलकुल तरस न खाना; प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना॥
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