2. अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लागे धारा की नाई उसकी ओर चलेंगें।
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3. और बहुत देशों के लागे आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिरयोन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।
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4. वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरूद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।।
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6. तू ने अपनी प्रजा याकूब के घराने को त्याग दिया है, क्योंकि वे पूर्वियों के व्यवहार पर तन मन से चलते और पलिश्तियों की नाई टोना करते हैं, और परदेशियों के साथ हाथ मिलाते हैं।
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8. उनका देश मूरतों से भरा है; वे अपने हाथों की बनाई हुई वस्तुओं को जिन्हें उनहों ने अपनी उंगलियों से संवारा है, दण्डवत् करते हैं।
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11. क्योंकि आदमियों की घमण्ड भरी आंखें नीची की जाएंगी और मनुष्यों का घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।।
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12. क्योंकि सेनाओं के यहोवा का दिन सब घमण्डियों और ऊंची गर्दनवालों पर और उन्नति से फूलनेवालोंपर आएगा; और वे झुकाए जाएंगे;
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17. और मनुष्य का गर्व मिटाया जाएगा, और मनुष्यों का घमण्ड नीचा किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।
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19. और जब यहोवा पृथ्वी के कम्पित करने के लिये उठेगा, तब उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे लोग चट्टानों की गुुफाओं और भूमि के बिलों में जा घुसेंगे।।
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20. उस दिन लोग अपनी चान्दी- सोने की मूरतों को जिन्हें उन्हों ने दण्डवत् करने के लिये बनाया था, छछून्दरों और चमगीदड़ों के आगे फेंकेंगे,
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21. और जब यहोवा पृथ्वी को कम्पित करने के लिये उठेगा तब वे उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टानों की दरारों ओर पहाड़ियों के छेदों में घुसेंगे।
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