4. एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्वर के नगर में अर्थात् परमप्रधान के पवित्रा निवास भवन में आनन्द होता है।
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9. वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!
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10. चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान् हूं, मैं पृथ्वी भर में महान् हूं!
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