1. हे यहोवा जो मेरे साथ मुक मा लड़ते हैं, उनके साथ तू भी मुक मा लड़; जो मुझ से युद्व करते हैं, उन से तू युद्व कर।
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3. बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालों के साम्हने आकर उनको रोक; और मुझ से कह, कि मैं तेरा उद्वार हूं।।
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4. जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हाति की कल्पना करते हैं, वह पीछे हटाए जाएं और उनका मुंह काला हो!
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7. क्योंकि अकारण उन्हों ने मेरे लिये अपना जाल गड़हे में बिछाया; अकारण ही उन्हों ने मेरा प्राण लेने के लिये गड़हा खोदा है।
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8. अचानक उन पर विपत्ति आ पड़े! और जो जाल उन्हों ने बिछाया है उसी में वे आप ही फंसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पड़ें!
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10. मेरी हड्डी हड्डी कहेंगी, हे यहोवा तेरे तुल्य कौन है, जो दी को बड़े बड़े बलवन्तों से बचाता है, और लुटेरों से दीन दरिद्र लोगों की रक्षा करता है?
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13. जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दु:ख उठाता रहा; और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया।
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14. मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिये विलाप करता हो, वैसा ही मैं ने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया।।
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15. परन्तु जब मैं लंगड़ाने लगा तब वे लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरूद्व इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे;
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17. हे प्रभु तू कब तक देखता रहेगा? इस विपत्ति से, जिस में उन्हों ने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिहों से मेरे प्राण को बचा ले!
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19. मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरूद्व आनन्द न करने पाएं, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में नैन से सैन न करने पांए।
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20. क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरूद्व छल की कल्पनाएं करते हैं।
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24. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपने धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; ओश्र उन्हें मेरे विरूद्व आनन्द करने न दे!
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26. जो मेरी हाति से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरूद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं!
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27. जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास के कुशल से प्रसन्न होता है!
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