6. और उस ने बालात को और सुलैमान के जितने भणडार नगर थे और उसके रथों और सवारों के जितने नगर थे उनको, और जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपने राज्य के सब देश में बनाना चाहा, उन सब को बनाया।
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8. उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और जिनका इस्राएलियों ने अन्त न किया था, उन में से तो कितनों को सुलैमान ने बेगार में रखा और आज तक उनकी वही दशा है।
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9. परन्तु इस्राएलियों में से सुलैमान ने अपने काम के लिये किसी को दास न बनाया, वे तो योठ्ठा और उसके हाकिम, उसके सरदार और उसके रथें और सवारों के प्रधान हुए।
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11. फिर सुलैमान फ़िरौन की बेटी को दाऊदपुर में से उस भवन में ले आया जो उस ने उसके लिये बनाया था, क्योंकि उस ने कहा, कि जिस जिस स्थान में यहोवा का सन्दूक आया है, वह पवित्रा है, इसलिये मेरी रानी इस्राएल के राजा दाऊद के भवन में न रहने पाएगी।
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13. वह मूसा की आज्ञा के और दिन दिन के प्रयोजन के अनुसार, अर्थात् विश्राम और नये चांद और प्रति वर्ष तीन बार ठहराए हुए पव अर्थात् अखमीरी रोटी के परर्व, और अठवारों के परर्व, और झोपड़ियों के परर्व में बलि चढ़ाया करता था।
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14. और उस ने अपने पिता दाऊद के नियम के अनुसार याजकों की सेवकाई के लिये उनके दल ठहराए, और लेवियों को उनके कामों पर ठहराया, कि हर एक दिन के प्रयोजन के अनुसार वे यहोवा की स्तुति और याजकों के साम्हने सेवा- टहल किया करें, और एक एक फाटक के पास द्वारपालों को दल दल करके ठहरा दिया; क्योंकि परमेश्वर के भक्त दाऊद ने ऐसी आज्ञा दी थी।
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15. और राजा ने भणडारों या किसी और बात में याजकों और लेवियों के लिये जो जो आज्ञा दी थी, उन्होंने न टाला।
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16. और सुलैमान का सब काम जो उस ने यहोवा के भ्वन की नेव डालने से लेकर उसके पूरा करने तक किया वह ठीक हुआ। निदान यहोवा का भवन पूरा हुआ।
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18. और हूराम ने उसके पास अपने जहाजियों के द्वारा जहाज और समुद्र के जानकार मल्लाह भेज दिए, और उन्हों ने सुलैमान के जहाजियों के संग ओपीर को जाकर वहां से साढ़े चार सौ किक्कार सोना राजा सुलैमान को ला दिया।
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