4. जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरूद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरूद्ध सिर हिला सकता।
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8. और उस ने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरूद्ध साक्षी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरूद्ध खड़ा होकर मेरे साम्हने साक्षी देता है।
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9. उस ने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरूद्ध दांत पीसता; और मेरा वैरी मुझ को आंखें दिखाता है।
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10. अब लोग मुझ पर मुंह पसारते हैं, और मेरी नामधराई करके मेरे गाल पर थपेड़ा मारते, और मेरे विरूद्ध भीड़ लगाते हैं।
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12. मैं सुख से रहता था, और उस ने मुझे चूर चूर कर डाला; उस ने मेरी गर्दन पकड़कर मुझे टुकड़े टुकड़े कर दिया; फिर उस ने पुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है।
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13. उसके तीर मेरे चारों ओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय होकर मेरे गुद को बेधता है, और मेरा मित्त भूमि पर बहाता है।
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