1. [PS]प्राचीन की ओर से, [PE][PBR] [PS]चुनी हुई महिला और उसकी संतान को, जिनसे मुझे वास्तव में प्रेम है—न केवल मुझे परंतु उन सबको भी जिन्होंने सच को जान लिया है.
2. यह उस सच के लिए है, जिसका हमारे भीतर वास है तथा जो हमेशा हमारे साथ रहेगा. [PE][PBR]
3. [PS]परमेश्वर पिता और मसीह येशु की ओर से, जो पिता के पुत्र हैं, अनुग्रह, कृपा और शांति हमारे साथ सच तथा प्रेम में बनी रहेगी. [PE][PBR] [PBR]
4. [PS]इसे देखना मेरे लिए बहुत ही खुशी का विषय है कि सच्चाई में तुम्हारी संतानों में अनेक चलते हैं. यह ठीक वैसा ही है जैसा हमारे लिए पिता की आज्ञा है.
5. हे स्त्री, मेरी तुमसे विनती है: हममें आपस में प्रेम हो. यह मैं तुम्हें किसी नई आज्ञा के रूप में नहीं लिख रहा हूं परंतु यह वही आज्ञा है, जो हमें प्रारंभ ही से दी गई है.
6. प्रेम यही है कि हम उनकी आज्ञा के अनुसार स्वभाव करें. यह वही आज्ञा है, जो तुमने प्रारंभ से सुनी है, ज़रूरी है कि तुम उसका पालन करो. [PE]
7. [PS]संसार में अनेक धूर्त निकल पड़े हैं, जो मसीह येशु के शरीर धारण करने को नकारते हैं. ऐसा व्यक्ति धूर्त है और मसीह विरोधी भी.
8. अपने प्रति सावधान रहो, कहीं तुम हमारी उपलब्धियों को खो न बैठो, परंतु तुम्हें सारे पुरस्कार प्राप्त हों.
9. हर एक, जो भटक कर दूर निकल जाता है और मसीह की शिक्षा में स्थिर नहीं रहता, उसमें परमेश्वर नहीं; तथा जो शिक्षा में स्थिर रहता है, उसने पिता तथा पुत्र दोनों ही को प्राप्त कर लिया है.
10. यदि कोई तुम्हारे पास आकर यह शिक्षा नहीं देता, तुम न तो उसका अतिथि-सत्कार करो, न ही उसको नमस्कार करो;
11. क्योंकि जो उसको नमस्कार करता है, वह उसकी बुराई में भागीदार हो जाता है. [PE][PBR] [PBR]
12. [PS]हालांकि लिखने योग्य अनेक विषय हैं किंतु मैं स्याही व लेखन-पत्रक इस्तेमाल नहीं करना चाहता; परंतु मेरी आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा तथा आमने-सामने तुमसे बातचीत करूंगा कि हमारा आनंद पूरा हो जाए. [PE][PBR]
13. [PS]तुम्हारी चुनी हुई बहन की संतान तुम्हें नमस्कार करती है. [PE]