1. {#1प्रथम उपज भेंट } [PS]इसके बाद, यह होगा कि जब तुम उस देश में प्रवेश करोगे, जो याहवेह तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें मीरास-स्वरूप प्रदान कर रहे हैं, तुम उसका अधिग्रहण करोगे और उसमें बस जाओगे,
2. तब तुम उस स्थान पर, जिसे याहवेह तुम्हारे परमेश्वर अपनी प्रतिष्ठा के लिए चुनेंगे, उस देश की सारी प्रथम उपज का एक अंश एक टोकरी में लेकर जाओगे.
3. तुम उस समय पदासीन पुरोहित की उपस्थिति में जाकर कहोगे, “याहवेह, मेरे परमेश्वर के सामने आज मैं यह घोषित कर रहा हूं, कि मैंने उस देश में प्रवेश कर लिया है, जिसे प्रदान करने की प्रतिज्ञा याहवेह ने मेरे पूर्वजों से की थी.”
4. तब वह पुरोहित तुम्हारे हाथ से वह टोकरी लेकर याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर की वेदी के सामने रख देगा.
5. तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के सामने उत्तर में कहोगे: “मेरे पूर्वज अस्थिरवासी अरामी जाति के थे. वे मिस्र देश में प्रवासी रहे, वहां अल्प संख्यक थे, मगर वहां विशाल, मजबूत और असंख्यक राष्ट्र हो गए.
6. लेकिन मिस्रवासियों ने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया और अत्याचार पूरा हो गया. हम पर कठोर श्रम लाद दिया गया.
7. तब हमने अपने पूर्वजों के परमेश्वर याहवेह की दोहाई दी, और याहवेह ने हमारी सुन ली. उन्होंने हमारे अत्याचार और श्रम पीड़ा पर दृष्टि की.
8. तब याहवेह ने हमें मिस्र देश से अपनी मजबूत, बढ़ाई हुई भुजा, भयंकर आतंक, चिन्ह और चमत्कारों के द्वारा निर्गत किया.
9. वह हमें इस स्थान पर ले आए हैं, हमें यह देश प्रदान कर दिया है, ऐसा देश, जिसमें दूध और शहद की बहुतायत है;
10. अब देखिए, याहवेह, आपके द्वारा दी इस भूमि की पहली उपज मैं यहां ले आया हूं.” तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के सामने यह प्रस्तुत कर दोगे और तुम याहवेह, अपने परमेश्वर का स्तवन करोगे.
11. तुम, वह लेवीगोत्रज और वह परदेशी, जो तुम्हारे बीच रह रहा है, याहवेह तुम्हारे परमेश्वर द्वारा दी सारी उत्तम वस्तुओं के लिए अपने परिवार के साथ उल्लास मनाओगे. [PE]
12. [PS]जब तृतीय साल में, जो दसवें अंश का साल है, तुम अपना समग्र दसवां अंश दे चुको, तब तुम यह उस लेवी को, उस प्रवासी को, अनाथ, और विधवा को दे दोगे, जिससे वे तुम्हारे साथ नगर में इसका उपभोग करते हुए संतुष्ट रह सकें.
13. याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर की उपस्थिति में तुम्हारे वचन ऐसे हों: “मैंने आपके आदेश के अनुरूप अपने घर में से पवित्र अंश लेकर मुझे दिए गए आपके आदेश के अनुसार लेवियों, यहां प्रवास कर रहे विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को दे दिया है. न तो मैंने आपके आदेशों की आज्ञा टाली है, न ही उन्हें भुलाया है
14. मैंने इसका उपभोग न तो विलाप की स्थिति में किया है, न मैंने अशुद्धता की अवस्था में इसको छुआ है, और न मैंने इसमें से कुछ किसी मरे हुए को समर्पित किया है. मैंने शब्दश; याहवेह अपने परमेश्वर के आदेश का पालन किया है.
15. अपने पवित्र निवास स्थान स्वर्ग से दृष्टि कीजिए और अपनी प्रजा इस्राएल को और उस भूमि को, जो आपने हमारे पूर्वजों को अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रदान की है, जिसमें दूध और शहद की बहुतायत है, समृद्धि प्रदान कीजिए.” [PE]
16. {#1परमेश्वर के नियमों का पालन } [PS]आज याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें यह आदेश दे रहे हैं कि तुम इन नियमों और आदेशों का पालन करो; तब तुम्हें पूरे हृदय और पूरे प्राणों से इनके पालन करने के विषय में सावधानी रखनी ही होगी.
17. आज तुमने यह घोषणा कर दी है कि याहवेह ही तुम्हारे परमेश्वर हैं और यह भी कि तुम उनके द्वारा दी गई नीतियों का पालन करोगे; उनकी आज्ञाओं, उनके आदेशों और उनके नियमों का पालन करोगे और उन्हीं की सुनोगे.
18. आज याहवेह ने तुम्हें अपनी प्रजा, अपना कीमती धन घोषित कर दिया है, तुमसे की गई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार और यह कि ज़रूरी है कि तुम उसके सारे आदेशों का पालन करो.
19. और यह कि वह तुम्हें उन सभी जनताओं से, जो उनके द्वारा स्थापित किए गए हैं, उच्चतर बनाए रखेंगे, स्तुति के लिए कीर्ति के लिए और सम्मान के लिए और तुम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के लिए पवित्र प्रजा हो जाओगे; जैसा खुद उन्होंने कहा है. [PE]