पवित्र बाइबिल

समकालीन संस्करण खोलें (OCV)
अय्यूब
1. {#1ज्ञान की खोज दुष्कर होती है } [QS]इसमें कोई संदेह नहीं, कि वहां चांदी की खान है [QE][QS2]तथा एक ऐसा स्थान, जहां वे स्वर्ण को शुद्ध करते हैं. [QE]
2. [QS]धूल में से लौह को अलग किया जाता है, [QE][QS2]तथा चट्टान में से तांबा धातु पिघलाया जाता है. [QE]
3. [QS]मनुष्य इसकी खोज में अंधकार भरे स्थल में दूर-दूर तक जाता है; [QE][QS2]चाहे वह अंधकार में छिपी कोई चट्टान है [QE][QS2]अथवा कोई घोर अंधकार भरे स्थल. [QE]
4. [QS]मनुष्य के घर से दूर वह गहरी खान खोदते हैं, [QE][QS2]रेगिस्तान स्थान में से दुर्गम स्थलों में जा पहुंचते हैं; [QE][QS2]तथा गहराई में लटके रहते हैं. [QE]
5. [QS]पृथ्वी-पृथ्वी ही है, जो हमें भोजन प्रदान करती है, [QE][QS2]किंतु नीचे भूगर्भ अग्निमय है. [QE]
6. [QS]पृथ्वी में चट्टानें नीलमणि का स्रोत हैं, [QE][QS2]पृथ्वी की धूल में ही स्वर्ण मिलता है. [QE]
7. [QS]यह मार्ग हिंसक पक्षियों को मालूम नहीं है, [QE][QS2]और न इस पर बाज की दृष्टि ही कभी पड़ी है. [QE]
8. [QS]इस मार्ग पर निश्चिंत, हृष्ट-पुष्ट पशु कभी नहीं चले हैं, [QE][QS2]और न हिंसक सिंह इस मार्ग से कभी गया है. [QE]
9. [QS]मनुष्य चकमक के पत्थर को स्पर्श करता है, [QE][QS2]पर्वतों को तो वह आधार से ही पलटा देता है. [QE]
10. [QS]वह चट्टानों में से मार्ग निकाल लेते हैं तथा उनकी दृष्टि वहीं पड़ती है, [QE][QS2]जहां कुछ अमूल्य होता है; [QE]
11. [QS]जल प्रवाह रोक कर वह बांध खड़े कर देते हैं [QE][QS2]तथा वह जो अदृश्य था, उसे प्रकाशित कर देते हैं. [QE][PBR]
12. [QS]प्रश्न यही उठता है कि कहां मिल सकती है बुद्धि? [QE][QS2]कहां है वह स्थान जहां समझ की जड़ है? [QE]
13. [QS]मनुष्य इसका मूल्य नहीं जानता वस्तुतः [QE][QS2]जीवितों के लोक में यह पाई ही नहीं जाती. [QE]
14. [QS]सागर की गहराई की घोषणा है, “मुझमें नहीं है यह”; [QE][QS2]महासागर स्पष्ट करता है, “मैंने इसे नहीं छिपाया.” [QE]
15. [QS]स्वर्ण से इसको मोल नहीं लिया जा सकता, [QE][QS2]वैसे ही चांदी माप कर इसका मूल्य निर्धारण संभव नहीं है. [QE]
16. [QS]ओफीर का स्वर्ण भी इसे खरीद नहीं सकता, [QE][QS2]न ही गोमेद अथवा नीलमणि इसके लिए पर्याप्‍त होंगे. [QE]
17. [QS]स्वर्ण एवं स्फटिक इसके स्तर पर नहीं पहुंच सकते, [QE][QS2]और वैसे ही कुन्दन के आभूषण से इसका विनिमय संभव नहीं है. [QE]
18. [QS]मूंगा तथा स्फटिक मणियों का यहां उल्लेख करना व्यर्थ है; [QE][QS2]ज्ञान की उपलब्धि मोतियों से कहीं अधिक ऊपर है. [QE]
19. [QS]कूश देश का पुखराज इसके बराबर नहीं हो सकता; [QE][QS2]कुन्दन से इसका मूल्यांकन संभव नहीं है. [QE][PBR]
20. [QS]तब, कहां है विवेक का उद्गम? [QE][QS2]कहां है समझ का निवास? [QE]
21. [QS]तब यह स्पष्ट है कि यह मनुष्यों की दृष्टि से छिपी है, [QE][QS2]हां, पक्षियों की दृष्टि से भी इसे नहीं देख पाते है. [QE]
22. [QS]नाश एवं मृत्यु स्पष्ट कहते हैं [QE][QS2]“अपने कानों से तो हमने बस, इसका उल्लेख सुना है.” [QE]
23. [QS]मात्र परमेश्वर को इस तक पहुंचने का मार्ग मालूम है, [QE][QS2]उन्हें ही मालूम है इसका स्थान. [QE]
24. [QS]क्योंकि वे पृथ्वी के छोर तक दृष्टि करते हैं [QE][QS2]तथा आकाश के नीचे की हर एक वस्तु उनकी दृष्टि में होती है. [QE]
25. [QS]जब उन्होंने वायु को बोझ प्रदान किया [QE][QS2]तथा जल को आयतन से मापा, [QE]
26. [QS]जब उन्होंने वृष्टि की सीमा तय कर दी [QE][QS2]तथा गर्जन और बिजली की दिशा निर्धारित कर दी, [QE]
27. [QS]तभी उन्होंने इसे देखा तथा इसकी घोषणा की [QE][QS2]उन्होंने इसे संस्थापित किया तथा इसे खोज भी निकाला. [QE]
28. [QS]तब उन्होंने मनुष्य पर यह प्रकाशित किया, [QE][QS2]“इसे समझ लो प्रभु के प्रति भय, यही है बुद्धि, [QE][QS2]तथा बुराइयों से दूरी बनाए रखना ही समझदारी है.” [QE]
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ज्ञान की खोज दुष्कर होती है 1 इसमें कोई संदेह नहीं, कि वहां चांदी की खान है तथा एक ऐसा स्थान, जहां वे स्वर्ण को शुद्ध करते हैं. 2 धूल में से लौह को अलग किया जाता है, तथा चट्टान में से तांबा धातु पिघलाया जाता है. 3 मनुष्य इसकी खोज में अंधकार भरे स्थल में दूर-दूर तक जाता है; चाहे वह अंधकार में छिपी कोई चट्टान है अथवा कोई घोर अंधकार भरे स्थल. 4 मनुष्य के घर से दूर वह गहरी खान खोदते हैं, रेगिस्तान स्थान में से दुर्गम स्थलों में जा पहुंचते हैं; तथा गहराई में लटके रहते हैं. 5 पृथ्वी-पृथ्वी ही है, जो हमें भोजन प्रदान करती है, किंतु नीचे भूगर्भ अग्निमय है. 6 पृथ्वी में चट्टानें नीलमणि का स्रोत हैं, पृथ्वी की धूल में ही स्वर्ण मिलता है. 7 यह मार्ग हिंसक पक्षियों को मालूम नहीं है, और न इस पर बाज की दृष्टि ही कभी पड़ी है. 8 इस मार्ग पर निश्चिंत, हृष्ट-पुष्ट पशु कभी नहीं चले हैं, और न हिंसक सिंह इस मार्ग से कभी गया है. 9 मनुष्य चकमक के पत्थर को स्पर्श करता है, पर्वतों को तो वह आधार से ही पलटा देता है. 10 वह चट्टानों में से मार्ग निकाल लेते हैं तथा उनकी दृष्टि वहीं पड़ती है, जहां कुछ अमूल्य होता है; 11 जल प्रवाह रोक कर वह बांध खड़े कर देते हैं तथा वह जो अदृश्य था, उसे प्रकाशित कर देते हैं. 12 प्रश्न यही उठता है कि कहां मिल सकती है बुद्धि? कहां है वह स्थान जहां समझ की जड़ है? 13 मनुष्य इसका मूल्य नहीं जानता वस्तुतः जीवितों के लोक में यह पाई ही नहीं जाती. 14 सागर की गहराई की घोषणा है, “मुझमें नहीं है यह”; महासागर स्पष्ट करता है, “मैंने इसे नहीं छिपाया.” 15 स्वर्ण से इसको मोल नहीं लिया जा सकता, वैसे ही चांदी माप कर इसका मूल्य निर्धारण संभव नहीं है. 16 ओफीर का स्वर्ण भी इसे खरीद नहीं सकता, न ही गोमेद अथवा नीलमणि इसके लिए पर्याप्‍त होंगे. 17 स्वर्ण एवं स्फटिक इसके स्तर पर नहीं पहुंच सकते, और वैसे ही कुन्दन के आभूषण से इसका विनिमय संभव नहीं है. 18 मूंगा तथा स्फटिक मणियों का यहां उल्लेख करना व्यर्थ है; ज्ञान की उपलब्धि मोतियों से कहीं अधिक ऊपर है. 19 कूश देश का पुखराज इसके बराबर नहीं हो सकता; कुन्दन से इसका मूल्यांकन संभव नहीं है. 20 तब, कहां है विवेक का उद्गम? कहां है समझ का निवास? 21 तब यह स्पष्ट है कि यह मनुष्यों की दृष्टि से छिपी है, हां, पक्षियों की दृष्टि से भी इसे नहीं देख पाते है. 22 नाश एवं मृत्यु स्पष्ट कहते हैं “अपने कानों से तो हमने बस, इसका उल्लेख सुना है.” 23 मात्र परमेश्वर को इस तक पहुंचने का मार्ग मालूम है, उन्हें ही मालूम है इसका स्थान. 24 क्योंकि वे पृथ्वी के छोर तक दृष्टि करते हैं तथा आकाश के नीचे की हर एक वस्तु उनकी दृष्टि में होती है. 25 जब उन्होंने वायु को बोझ प्रदान किया तथा जल को आयतन से मापा, 26 जब उन्होंने वृष्टि की सीमा तय कर दी तथा गर्जन और बिजली की दिशा निर्धारित कर दी, 27 तभी उन्होंने इसे देखा तथा इसकी घोषणा की उन्होंने इसे संस्थापित किया तथा इसे खोज भी निकाला. 28 तब उन्होंने मनुष्य पर यह प्रकाशित किया, “इसे समझ लो प्रभु के प्रति भय, यही है बुद्धि, तथा बुराइयों से दूरी बनाए रखना ही समझदारी है.”
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