1. [QS]“क्या तुम लिवयाथान[* लिवयाथान यह बड़ा मगरमच्छ हो सकता है ] को मछली पकड़ने की अंकुड़ी से खींच सकोगे? [QE][QS2]अथवा क्या तुम उसकी जीभ को किसी डोर से बांध सको? [QE]
2. [QS]क्या उसकी नाक में रस्सी बांधना तुम्हारे लिए संभव है, [QE][QS2]अथवा क्या तुम अंकुड़ी के लिए उसके जबड़े में छेद कर सकते हो? [QE]
3. [QS]क्या वह तुमसे कृपा की याचना करेगा? [QE][QS2]क्या वह तुमसे शालीनतापूर्वक विनय करेगा? [QE]
4. [QS]क्या वह तुमसे वाचा स्थापित करेगा? [QE][QS2]क्या तुम उसे जीवन भर अपना दास बनाने का प्रयास करोगे? [QE]
5. [QS]क्या तुम उसके साथ उसी रीति से खेल सकोगे जैसे किसी पक्षी से? [QE][QS2]अथवा उसे अपनी युवतियों के लिए बांधकर रख सकोगे? [QE]
6. [QS]क्या व्यापारी उसके लिए विनिमय करना चाहेंगे? [QE][QS2]क्या व्यापारी अपने लिए परस्पर उसका विभाजन कर सकेंगे? [QE]
7. [QS]क्या तुम उसकी खाल को बर्छी से बेध सकते हो [QE][QS2]अथवा उसके सिर को भाले से नष्ट कर सकते हो? [QE]
8. [QS]बस, एक ही बार उस पर अपना हाथ रखकर देखो, दूसरी बार तुम्हें यह करने का साहस न होगा. [QE][QS2]उसके साथ का संघर्ष तुम्हारे लिए अविस्मरणीय रहेगा. [QE]
9. [QS]व्यर्थ है तुम्हारी यह अपेक्षा, कि तुम उसे अपने अधिकार में कर लोगे; [QE][QS2]तुम तो उसके सामने आते ही गिर जाओगे. [QE]
10. [QS]कोई भी उसे उकसाने का ढाढस नहीं कर सकता. [QE][QS2]तब कौन करेगा उसका सामना? [QE]
11. [QS]उस पर आक्रमण करने के बाद कौन सुरक्षित रह सकता है? [QE][QS2]आकाश के नीचे की हर एक वस्तु मेरी ही है. [QE][PBR]
12. [QS]“उसके अंगों का वर्णन न करने के विषय में मैं चुप रहूंगा, [QE][QS2]न ही उसकी बड़ी शक्ति तथा उसके सुंदर देह का. [QE]
13. [QS]कौन उसके बाह्य आवरण को उतार सकता है? [QE][QS2]कौन इसके लिए साहस करेगा कि उसमें बागडोर डाल सके? [QE]
14. [QS]कौन उसके मुख के द्वार खोलने में समर्थ होगा, [QE][QS2]जो उसके भयावह दांतों से घिरा है? [QE]
15. [QS]उसकी पीठ पर ढालें पंक्तिबद्ध रूप से बिछी हुई हैं [QE][QS2]और ये अत्यंत दृढतापूर्वक वहां लगी हुई हैं; [QE]
16. [QS]वे इस रीति से एक दूसरे से सटी हुई हैं, [QE][QS2]कि इनमें से वायु तक नहीं निकल सकती. [QE]
17. [QS]वे सभी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं उन्होंने एक दूसरे को ऐसा जकड़ रखा है; [QE][QS2]कि इन्हें तोड़ा नहीं जा सकता. [QE]
18. [QS]उसकी छींक तो आग की लपटें प्रक्षेपित कर देती है; [QE][QS2]तथा उसके नेत्र उषाकिरण समान दिखते हैं. [QE]
19. [QS]उसके मुख से ज्वलंत मशालें प्रकट रहती; [QE][QS2]तथा इनके साथ चिंगारियां भी झड़ती रहती हैं. [QE]
20. [QS]उसके नाक से धुआं उठता रहता है, मानो किसी उबलते पात्र से, [QE][QS2]जो जलते हुए सरकंडों के ऊपर रखा हुआ है. [QE]
21. [QS]उसकी श्वास कोयलों को प्रज्वलित कर देती, [QE][QS2]उसके मुख से अग्निशिखा निकलती रहती है. [QE]
22. [QS]उसके गर्दन में शक्ति का निवास है, [QE][QS2]तो उसके आगे-आगे निराशा बढ़ती जाती है. [QE]
23. [QS]उसकी मांसपेशियां [QE][QS2]उसकी देह पर अचल एवं दृढ़, [QE]
24. [QS]और उसका हृदय तो पत्थर समान कठोर है! [QE][QS2]हां! चक्की के निचले पाट के पत्थर समान! [QE]
25. [QS]जब-जब वह उठकर खड़ा होता है, शूरवीर भयभीत हो जाते हैं. [QE][QS2]उसके प्रहार के भय से वे पीछे हट जाते हैं. [QE]
26. [QS]उस पर जिस किसी तलवार से प्रहार किया जाता है, वह प्रभावहीन रह जाती है, [QE][QS2]वैसे ही उस पर बर्छी, भाले तथा बाण भी. [QE]
27. [QS]उसके सामने लौह भूसा समान होता है, [QE][QS2]तथा कांसा सड़ रहे लकड़ी के समान. [QE]
28. [QS]बाण का भय उसे भगा नहीं सकता. [QE][QS2]गोफन प्रक्षेपित पत्थर तो उसके सामने काटी उपज के ठूंठ प्रहार समान होता है. [QE]
29. [QS]लाठी का प्रहार भी ठूंठ के प्रहार समान होता है, [QE][QS2]वह तो बर्छी की ध्वनि सुन हंसने लगता है. [QE]
30. [QS]उसके पेट पर जो झुरिया हैं, वे मिट्टी के टूटे ठीकरे समान हैं. [QE][QS2]कीचड़ पर चलते हुए वह ऐसा लगता है, मानो वह अनाज कुटने का पट्टा समान चिन्ह छोड़ रहा है. [QE]
31. [QS]उसके प्रभाव से महासागर जल, ऐसा दिखता है मानो हांड़ी में उफान आ गया हो. [QE][QS2]तब सागर ऐसा हो जाता, मानो वह मरहम का पात्र हो. [QE]
32. [QS]वह अपने पीछे एक चमकीली लकीर छोड़ता जाता है यह दृश्य ऐसा हो जाता है, [QE][QS2]मानो यह किसी वृद्ध का सिर है. [QE]
33. [QS]पृथ्वी पर उसके जैसा कुछ भी नहीं है; [QE][QS2]एकमात्र निर्भीक रचना! [QE]
34. [QS]उसके आंकलन में सर्वोच्च रचनाएं भी नगण्य हैं; [QE][QS2]वह समस्त अहंकारियों का राजा है.” [QE]