पवित्र बाइबिल

समकालीन संस्करण खोलें (OCV)
अय्यूब
1. {#1मित्रों से अय्योब की निराशा }
2. [PS]यह सुन अय्योब ने यह कहा: [PE][QS]“कैसा होता यदि मेरी पीड़ा मापी जा सकती, [QE][QS2]इसे तराजू में रखा जाता! [QE]
3. [QS]तब तो इसका माप सागर तट की बालू से अधिक होता. [QE][QS2]इसलिये मेरे शब्द मूर्खता भरे लगते हैं. [QE]
4. [QS]क्योंकि सर्वशक्तिमान के बाण मुझे बेधे हुए हैं, [QE][QS2]उनका विष रिसकर मेरी आत्मा में पहुंच रहा है. [QE][QS2]परमेश्वर का आतंक आक्रमण के लिए मेरे विरुद्ध खड़ा है! [QE]
5. [QS]क्या जंगली गधा घास के सामने आकर रेंकता है? [QE][QS2]क्या बछड़ा अपना चारा देख रम्भाता है? [QE]
6. [QS]क्या किसी स्वादरहित वस्तु का सेवन नमक के बिना संभव है? [QE][QS2]क्या अंडे की सफेदी में कोई भी स्वाद होता है? [QE]
7. [QS]मैं उनका स्पर्श ही नहीं चाहता; [QE][QS2]मेरे लिए ये घृणित भोजन-समान हैं. [QE][PBR]
8. [QS]“कैसा होता यदि मेरा अनुरोध पूर्ण हो जाता [QE][QS2]तथा परमेश्वर मेरी लालसा को पूर्ण कर देते, [QE]
9. [QS]तब ऐसा हो जाता कि परमेश्वर मुझे कुचलने के लिए तत्पर हो जाते, [QE][QS2]कि वह हाथ बढ़ाकर मेरा नाश कर देते! [QE]
10. [QS]किंतु तब भी मुझे तो संतोष है, [QE][QS2]मैं असह्य दर्द में भी आनंदित होता हूं, [QE][QS2]क्योंकि मैंने पवित्र वचनों के आदेशों का विरोध नहीं किया है. [QE][PBR]
11. [QS]“क्या है मेरी शक्ति, जो मैं आशा करूं? [QE][QS2]क्या है मेरी नियति, जो मैं धैर्य रखूं? [QE]
12. [QS]क्या मेरा बल वह है, जो चट्टानों का होता है? [QE][QS2]अथवा क्या मेरी देह की रचना कांस्य से हुई है? [QE]
13. [QS]क्या मेरी सहायता का मूल मेरे अंतर में निहित नहीं, [QE][QS2]क्या मेरी विमुक्ति मुझसे दूर हो चुकी? [QE][PBR]
14. [QS]“जो अपने दुःखी मित्र पर करुणा नहीं दिखाता, [QE][QS2]वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति श्रद्धा छोड़ देता है. [QE]
15. [QS]मेरे भाई तो जलधाराओं समान विश्वासघाती ही प्रमाणित हुए, [QE][QS2]वे जलधाराएं, जो विलीन हो जाती हैं, [QE]
16. [QS]जिनमें हिम पिघल कर जल बनता है [QE][QS2]और उनका जल छिप जाता है. [QE]
17. [QS]वे जलहीन शांत एवं सूनी हो जाती हैं, [QE][QS2]वे ग्रीष्मऋतु में अपने स्थान से विलीन हो जाती हैं. [QE]
18. [QS]वे अपने रास्ते से भटक जाते हैं; [QE][QS2]उसके बाद वे मरुभूमि में विलीन हो जाती हैं. [QE]
19. [QS]तेमा के यात्री दल उन्हें खोजते रहे, [QE][QS2]शीबा के यात्रियों ने उन पर आशा रखी थी. [QE]
20. [QS]उन पर भरोसा कर उन्हें पछतावा हुआ; [QE][QS2]वे वहां पहुंचे और निराश हो गए. [QE]
21. [QS]अब स्थिति यह है, कि तुम इन्हीं जलधाराओं के समान हो चुके हो; [QE][QS2]तुम आतंक को देखकर डर जाते हो. [QE]
22. [QS]क्या मैंने कभी यह आग्रह किया है, ‘कुछ तो दे दो मुझे, अथवा, [QE][QS2]अपनी संपत्ति में से कुछ देकर मुझे मुक्त करा लो, [QE]
23. [QS]अथवा, शत्रु के बंधन से मुझे मुक्त करा लो, [QE][QS2]इस उपद्रव करनेवाले व्यक्ति के अधिकार से मुझे छुड़ा लो?’ [QE][PBR]
24. [QS]“मुझे शिक्षा दीजिए, मैं चुप रहूंगा; [QE][QS2]मेरी त्रुटियां मुझ पर प्रकट कर दीजिए. [QE]
25. [QS]सच्चाई में कहे गए उद्गार कितने सुखदायक होते हैं! [QE][QS2]किंतु आपके विवाद से क्या प्रकट होता है? [QE]
26. [QS]क्या तुम्हारा अभिप्राय मेरे कहने की निंदा करना है, [QE][QS2]निराश व्यक्ति के उद्गार तो निरर्थक ही होते हैं? [QE]
27. [QS]तुम तो पितृहीनों के लिए चिट्ठी डालोगे [QE][QS2]तथा अपने मित्र को ही बेच दोगे. [QE][PBR]
28. [QS]“अब कृपा करो और मेरी ओर देखो. [QE][QS2]फिर देखना कि क्या मैं तुम्हारे मुख पर झूठ बोल सकूंगा? [QE]
29. [QS]अब कोई अन्याय न होने पाए; [QE][QS2]छोड़ दो यह सब, मैं अब भी सत्यनिष्ठ हूं. [QE]
30. [QS]क्या मेरी जीभ अन्यायपूर्ण है? [QE][QS2]क्या मुझमें बुराई और अच्छाई का बोध न रहा? [QE][PBR]
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मित्रों से अय्योब की निराशा 1 2 यह सुन अय्योब ने यह कहा: “कैसा होता यदि मेरी पीड़ा मापी जा सकती, इसे तराजू में रखा जाता! 3 तब तो इसका माप सागर तट की बालू से अधिक होता. इसलिये मेरे शब्द मूर्खता भरे लगते हैं. 4 क्योंकि सर्वशक्तिमान के बाण मुझे बेधे हुए हैं, उनका विष रिसकर मेरी आत्मा में पहुंच रहा है. परमेश्वर का आतंक आक्रमण के लिए मेरे विरुद्ध खड़ा है! 5 क्या जंगली गधा घास के सामने आकर रेंकता है? क्या बछड़ा अपना चारा देख रम्भाता है? 6 क्या किसी स्वादरहित वस्तु का सेवन नमक के बिना संभव है? क्या अंडे की सफेदी में कोई भी स्वाद होता है? 7 मैं उनका स्पर्श ही नहीं चाहता; मेरे लिए ये घृणित भोजन-समान हैं. 8 “कैसा होता यदि मेरा अनुरोध पूर्ण हो जाता तथा परमेश्वर मेरी लालसा को पूर्ण कर देते, 9 तब ऐसा हो जाता कि परमेश्वर मुझे कुचलने के लिए तत्पर हो जाते, कि वह हाथ बढ़ाकर मेरा नाश कर देते! 10 किंतु तब भी मुझे तो संतोष है, मैं असह्य दर्द में भी आनंदित होता हूं, क्योंकि मैंने पवित्र वचनों के आदेशों का विरोध नहीं किया है. 11 “क्या है मेरी शक्ति, जो मैं आशा करूं? क्या है मेरी नियति, जो मैं धैर्य रखूं? 12 क्या मेरा बल वह है, जो चट्टानों का होता है? अथवा क्या मेरी देह की रचना कांस्य से हुई है? 13 क्या मेरी सहायता का मूल मेरे अंतर में निहित नहीं, क्या मेरी विमुक्ति मुझसे दूर हो चुकी? 14 “जो अपने दुःखी मित्र पर करुणा नहीं दिखाता, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति श्रद्धा छोड़ देता है. 15 मेरे भाई तो जलधाराओं समान विश्वासघाती ही प्रमाणित हुए, वे जलधाराएं, जो विलीन हो जाती हैं, 16 जिनमें हिम पिघल कर जल बनता है और उनका जल छिप जाता है. 17 वे जलहीन शांत एवं सूनी हो जाती हैं, वे ग्रीष्मऋतु में अपने स्थान से विलीन हो जाती हैं. 18 वे अपने रास्ते से भटक जाते हैं; उसके बाद वे मरुभूमि में विलीन हो जाती हैं. 19 तेमा के यात्री दल उन्हें खोजते रहे, शीबा के यात्रियों ने उन पर आशा रखी थी. 20 उन पर भरोसा कर उन्हें पछतावा हुआ; वे वहां पहुंचे और निराश हो गए. 21 अब स्थिति यह है, कि तुम इन्हीं जलधाराओं के समान हो चुके हो; तुम आतंक को देखकर डर जाते हो. 22 क्या मैंने कभी यह आग्रह किया है, ‘कुछ तो दे दो मुझे, अथवा, अपनी संपत्ति में से कुछ देकर मुझे मुक्त करा लो, 23 अथवा, शत्रु के बंधन से मुझे मुक्त करा लो, इस उपद्रव करनेवाले व्यक्ति के अधिकार से मुझे छुड़ा लो?’ 24 “मुझे शिक्षा दीजिए, मैं चुप रहूंगा; मेरी त्रुटियां मुझ पर प्रकट कर दीजिए. 25 सच्चाई में कहे गए उद्गार कितने सुखदायक होते हैं! किंतु आपके विवाद से क्या प्रकट होता है? 26 क्या तुम्हारा अभिप्राय मेरे कहने की निंदा करना है, निराश व्यक्ति के उद्गार तो निरर्थक ही होते हैं? 27 तुम तो पितृहीनों के लिए चिट्ठी डालोगे तथा अपने मित्र को ही बेच दोगे. 28 “अब कृपा करो और मेरी ओर देखो. फिर देखना कि क्या मैं तुम्हारे मुख पर झूठ बोल सकूंगा? 29 अब कोई अन्याय न होने पाए; छोड़ दो यह सब, मैं अब भी सत्यनिष्ठ हूं. 30 क्या मेरी जीभ अन्यायपूर्ण है? क्या मुझमें बुराई और अच्छाई का बोध न रहा?
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