पवित्र बाइबिल

समकालीन संस्करण खोलें (OCV)
लूका
1. {#1ज़क्ख़ाइयॉस परिवार में उद्धार का आगमन } [PS]प्रभु येशु ने येरीख़ो नगर में प्रवेश किया.
2. वहां ज़क्ख़ाइयॉस नामक एक व्यक्ति था, जो प्रधान चुंगी लेनेवाला और धनी व्यक्ति था.
3. वह यह देखने का प्रयत्न कर रहा था कि प्रभु येशु कौन हैं. भीड़ में वह प्रभु येशु को देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह नाटा था.
4. इसलिये प्रभु येशु को देखने के लिए वह दौड़कर आगे बढ़ा और गूलर के एक पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि प्रभु येशु उसी मार्ग से जाने को थे. [PE]
5. [PS]जब प्रभु येशु वहां पहुंचे, उन्होंने ऊपर देखते हुए उससे कहा, “ज़क्ख़ाइयॉस, तुरंत नीचे आ जाओ. ज़रूरी है कि आज मैं तुम्हारे घर में ठहरूं.”
6. वह तुरंत नीचे उतरा और खुशी से उन्हें अपने घर ले गया. [PE]
7.
8. [PS]यह देख सभी बड़बड़ाने लगे, “वह तो एक ऐसे व्यक्ति के घर गया है, जो अपराधी है.” [PE]
9. [PS]किंतु ज़क्ख़ाइयॉस ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “प्रभुवर! मैं अपनी आधी संपत्ति निर्धनों में दान कर दूंगा और यदि मैंने किसी से गलत ढंग से कुछ भी लिया है तो मैं उसे चौगुनी राशि लौटा दूंगा.” [PE][PS]प्रभु येशु ने उससे कहा, “आज इस परिवार में उद्धार का आगमन हुआ है—यह व्यक्ति भी अब्राहाम की संतान है.
10. मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को खोजने तथा उन्हें उद्धार देने आया है.” [PE]
11. {#1दस सेवक तथा सराहनीय निवेश का दृष्टांत } [PS]जब वे इन बातों को सुन रहे थे, प्रभु येशु ने एक दृष्टांत प्रस्तुत किया क्योंकि अब वे येरूशलेम नगर के पास पहुंच रहे थे और लोगों की आशा थी कि परमेश्वर का राज्य तुरंत ही प्रकट होने पर है.
12. प्रभु येशु ने कहना प्रारंभ किया: “एक कुलीन व्यक्ति राजपद प्राप्‍त करने के लिए दूर देश की यात्रा पर निकला.
13. यात्रा के पहले उसने अपने दस दासों को बुलाकर उन्हें दस सोने के सिक्‍के[* मूल में मिन्ना. एक मिन्ना करीब 100 दिनों की मजदूरी थी. ] देते हुए कहा, ‘मेरे लौटने तक इस राशि से व्यापार करना.’ [PE]
14.
15. [PS]“लोग उससे घृणा करते थे इसलिये उन्होंने उसके पीछे एक सेवकों की टुकड़ी को इस संदेश के साथ भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर शासन करे.’ [PE]
16. [PS]“इस पर भी उसे राजा बना दिया गया. लौटने पर उसने उन दासों को बुलवाया कि वह यह मालूम करे कि उन्होंने उस राशि से व्यापार कर कितना लाभ कमाया है. [PE]
17. [PS]“पहले दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने दस सिक्‍के और कमाए हैं.’ [PE]
18. [PS]“ ‘शाबाश, मेरे योग्य दास!’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘इसलिये कि तुम बहुत छोटी ज़िम्मेदारी में भी विश्वासयोग्य पाए गए, तुम दस नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’ [PE]
19. [PS]“दूसरे दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने पांच और कमाए हैं.’ [PE]
20. [PS]“स्वामी ने उत्तर दिया, ‘तुम पांच नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’ [PE][PS]“तब एक अन्य दास आया और स्वामी से कहने लगा, ‘स्वामी, यह है आपका दिया हुआ सोने का सिक्का, जिसे मैंने बड़ी ही सावधानी से कपड़े में लपेट, संभाल कर रखा है.
21. मुझे आपसे भय था क्योंकि आप कठोर व्यक्ति हैं. आपने जिसका निवेश भी नहीं किया, वह आप ले लेते हैं, जो आपने बोया ही नहीं, उसे काटते हैं.’ [PE]
22. [PS]“स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट! तेरा न्याय तो मैं तेरे ही शब्दों के आधार पर करूंगा. जब तू जानता है कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूं; मैं वह ले लेता हूं जिसका मैंने निवेश ही नहीं किया और वह काटता हूं, जो मैंने बोया ही नहीं, तो
23. तूने मेरा धन साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिया कि मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित प्राप्‍त कर सकता?’ [PE]
24.
25. [PS]“तब उसने अपने पास खड़े दासों को आज्ञा दी, ‘इसकी स्वर्ण मुद्रा लेकर उसे दे दो, जिसके पास अब दस मुद्राएं हैं.’ [PE]
26. [PS]“उन्होंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘स्वामी, उसके पास तो पहले ही दस हैं!’ [PE][PS]“स्वामी ने उत्तर दिया, ‘सच्चाई यह है: हर एक, जिसके पास है, उसे और भी दिया जाएगा किंतु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है.
27. मेरे इन शत्रुओं को, जिन्हें मेरा उन पर शासन करना अच्छा नहीं लग रहा, यहां मेरे सामने लाकर प्राण-दंड दो.’ ” [PE]
28. {#1विजयोल्लास में येरूशलेम प्रवेश } [PS]इसके बाद प्रभु येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशलेम नगर की ओर बढ़ गए.
29. जब प्रभु येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गांव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुंचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया,
30. “सामने उस गांव में जाओ. वहां प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है; उसे खोलकर यहां ले आओ.
31. यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’ ” [PE]
32. [PS]जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था.
33. जब वे गधी के उस बच्‍चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?” [PE]
34.
35. [PS]उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.” [PE][PS]वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डालकर प्रभु येशु को उस पर बैठा दिया.
36. जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए. [PE]
37.
38. [PS]जब वे उस स्थान पर पहुंचे, जहां ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारंभ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊंचे शब्द में आनंदपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी: [PE][QS]“स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!”[† स्तोत्र 118:26 ] [QE][PBR] [QS]“स्वर्ग में शांति और सर्वोच्च में महिमा हो!” [QE]
39.
40. [PS]भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए प्रभु येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!” [PE]
41. [PS]“मैं आपको यह बताना चाहता हूं,” प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शांत हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.” [PE][PS]जब वह येरूशलेम नगर के पास आए तो नगर को देख वह यह कहते हुए रो पड़े,
42. “यदि तुम, हां तुम, आज इतना ही समझ लेते कि शांति का मतलब क्या है! किंतु यह तुमसे छिपाकर रखा गया है.
43. वे दिन आ रहे हैं जब शत्रु सेना तुम्हारे चारों ओर घेराबंदी करके तुम्हारे निकलने का रास्ता बंद कर देगी.
44. वे तुम्हें तथा तुम्हारी संतानों को धूल में मिला देंगे. वे तुम्हारे घरों का एक भी पत्थर दूसरे पत्थर पर न छोड़ेंगे क्योंकि तुमने तुम्हें दिए गए सुअवसर को नहीं पहचाना.” [PE]
45. {#1दूसरी बार प्रभु येशु द्वारा मंदिर की शुद्धि } [PS]मंदिर में प्रवेश करने पर प्रभु येशु ने सभी बेचने वालों को यह कहते हुए वहां से बाहर करना प्रारंभ कर दिया,
46. “लिखा है: मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, किंतु तुमने तो इसे डाकुओं की गुफ़ा बना रखी है!”[‡ यशा 56:7; येरे 7:11 ] [PE]
47. [PS]प्रभु येशु हर रोज़ मंदिर में शिक्षा दिया करते थे. प्रधान पुरोहित, शास्त्री तथा जनसाधारण में से प्रधान नागरिक उनकी हत्या की योजना कर रहे थे,
48. किंतु उनकी कोई भी योजना सफल नहीं हो रही थी क्योंकि लोग प्रभु येशु के प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित थे. [PE]
Total 24 अध्याय, Selected अध्याय 19 / 24
ज़क्ख़ाइयॉस परिवार में उद्धार का आगमन 1 प्रभु येशु ने येरीख़ो नगर में प्रवेश किया. 2 वहां ज़क्ख़ाइयॉस नामक एक व्यक्ति था, जो प्रधान चुंगी लेनेवाला और धनी व्यक्ति था. 3 वह यह देखने का प्रयत्न कर रहा था कि प्रभु येशु कौन हैं. भीड़ में वह प्रभु येशु को देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह नाटा था. 4 इसलिये प्रभु येशु को देखने के लिए वह दौड़कर आगे बढ़ा और गूलर के एक पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि प्रभु येशु उसी मार्ग से जाने को थे. 5 जब प्रभु येशु वहां पहुंचे, उन्होंने ऊपर देखते हुए उससे कहा, “ज़क्ख़ाइयॉस, तुरंत नीचे आ जाओ. ज़रूरी है कि आज मैं तुम्हारे घर में ठहरूं.” 6 वह तुरंत नीचे उतरा और खुशी से उन्हें अपने घर ले गया. 7 8 यह देख सभी बड़बड़ाने लगे, “वह तो एक ऐसे व्यक्ति के घर गया है, जो अपराधी है.” 9 किंतु ज़क्ख़ाइयॉस ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “प्रभुवर! मैं अपनी आधी संपत्ति निर्धनों में दान कर दूंगा और यदि मैंने किसी से गलत ढंग से कुछ भी लिया है तो मैं उसे चौगुनी राशि लौटा दूंगा.” प्रभु येशु ने उससे कहा, “आज इस परिवार में उद्धार का आगमन हुआ है—यह व्यक्ति भी अब्राहाम की संतान है. 10 मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को खोजने तथा उन्हें उद्धार देने आया है.” दस सेवक तथा सराहनीय निवेश का दृष्टांत 11 जब वे इन बातों को सुन रहे थे, प्रभु येशु ने एक दृष्टांत प्रस्तुत किया क्योंकि अब वे येरूशलेम नगर के पास पहुंच रहे थे और लोगों की आशा थी कि परमेश्वर का राज्य तुरंत ही प्रकट होने पर है. 12 प्रभु येशु ने कहना प्रारंभ किया: “एक कुलीन व्यक्ति राजपद प्राप्‍त करने के लिए दूर देश की यात्रा पर निकला. 13 यात्रा के पहले उसने अपने दस दासों को बुलाकर उन्हें दस सोने के सिक्‍के* मूल में मिन्ना. एक मिन्ना करीब 100 दिनों की मजदूरी थी. देते हुए कहा, ‘मेरे लौटने तक इस राशि से व्यापार करना.’ 14 15 “लोग उससे घृणा करते थे इसलिये उन्होंने उसके पीछे एक सेवकों की टुकड़ी को इस संदेश के साथ भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर शासन करे.’ 16 “इस पर भी उसे राजा बना दिया गया. लौटने पर उसने उन दासों को बुलवाया कि वह यह मालूम करे कि उन्होंने उस राशि से व्यापार कर कितना लाभ कमाया है. 17 “पहले दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने दस सिक्‍के और कमाए हैं.’ 18 “ ‘शाबाश, मेरे योग्य दास!’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘इसलिये कि तुम बहुत छोटी ज़िम्मेदारी में भी विश्वासयोग्य पाए गए, तुम दस नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’ 19 “दूसरे दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने पांच और कमाए हैं.’ 20 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘तुम पांच नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’ “तब एक अन्य दास आया और स्वामी से कहने लगा, ‘स्वामी, यह है आपका दिया हुआ सोने का सिक्का, जिसे मैंने बड़ी ही सावधानी से कपड़े में लपेट, संभाल कर रखा है. 21 मुझे आपसे भय था क्योंकि आप कठोर व्यक्ति हैं. आपने जिसका निवेश भी नहीं किया, वह आप ले लेते हैं, जो आपने बोया ही नहीं, उसे काटते हैं.’ 22 “स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट! तेरा न्याय तो मैं तेरे ही शब्दों के आधार पर करूंगा. जब तू जानता है कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूं; मैं वह ले लेता हूं जिसका मैंने निवेश ही नहीं किया और वह काटता हूं, जो मैंने बोया ही नहीं, तो 23 तूने मेरा धन साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिया कि मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित प्राप्‍त कर सकता?’ 24 25 “तब उसने अपने पास खड़े दासों को आज्ञा दी, ‘इसकी स्वर्ण मुद्रा लेकर उसे दे दो, जिसके पास अब दस मुद्राएं हैं.’ 26 “उन्होंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘स्वामी, उसके पास तो पहले ही दस हैं!’ “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘सच्चाई यह है: हर एक, जिसके पास है, उसे और भी दिया जाएगा किंतु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 27 मेरे इन शत्रुओं को, जिन्हें मेरा उन पर शासन करना अच्छा नहीं लग रहा, यहां मेरे सामने लाकर प्राण-दंड दो.’ ” विजयोल्लास में येरूशलेम प्रवेश 28 इसके बाद प्रभु येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशलेम नगर की ओर बढ़ गए. 29 जब प्रभु येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गांव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुंचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया, 30 “सामने उस गांव में जाओ. वहां प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है; उसे खोलकर यहां ले आओ. 31 यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’ ” 32 जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था. 33 जब वे गधी के उस बच्‍चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?” 34 35 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.” वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डालकर प्रभु येशु को उस पर बैठा दिया. 36 जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए. 37 38 जब वे उस स्थान पर पहुंचे, जहां ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारंभ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊंचे शब्द में आनंदपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी: “स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!” स्तोत्र 118:26 “स्वर्ग में शांति और सर्वोच्च में महिमा हो!” 39 40 भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए प्रभु येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!” 41 “मैं आपको यह बताना चाहता हूं,” प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शांत हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.” जब वह येरूशलेम नगर के पास आए तो नगर को देख वह यह कहते हुए रो पड़े, 42 “यदि तुम, हां तुम, आज इतना ही समझ लेते कि शांति का मतलब क्या है! किंतु यह तुमसे छिपाकर रखा गया है. 43 वे दिन आ रहे हैं जब शत्रु सेना तुम्हारे चारों ओर घेराबंदी करके तुम्हारे निकलने का रास्ता बंद कर देगी. 44 वे तुम्हें तथा तुम्हारी संतानों को धूल में मिला देंगे. वे तुम्हारे घरों का एक भी पत्थर दूसरे पत्थर पर न छोड़ेंगे क्योंकि तुमने तुम्हें दिए गए सुअवसर को नहीं पहचाना.” दूसरी बार प्रभु येशु द्वारा मंदिर की शुद्धि 45 मंदिर में प्रवेश करने पर प्रभु येशु ने सभी बेचने वालों को यह कहते हुए वहां से बाहर करना प्रारंभ कर दिया, 46 “लिखा है: मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, किंतु तुमने तो इसे डाकुओं की गुफ़ा बना रखी है!” यशा 56:7; येरे 7:11 47 प्रभु येशु हर रोज़ मंदिर में शिक्षा दिया करते थे. प्रधान पुरोहित, शास्त्री तथा जनसाधारण में से प्रधान नागरिक उनकी हत्या की योजना कर रहे थे, 48 किंतु उनकी कोई भी योजना सफल नहीं हो रही थी क्योंकि लोग प्रभु येशु के प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित थे.
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