1. {#1बपतिस्मा देनेवाले योहन का उपदेश } [PS]परमेश्वर के पुत्र[* कुछ हस्तलेखों में परमेश्वर के पुत्र शब्द नहीं पाए जाते. मला 3:1 ] येशु मसीह के सुसमाचार का आरंभ:
2. भविष्यवक्ता यशायाह के अभिलेख के अनुसार, [PE][QS]“तुम्हारे पूर्व मैं अपना एक दूत भेज रहा हूं, [QE][QS2]जो तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा”[† मला 3:1 ]; [QE]
3. [QS]“बंजर भूमि में पुकारनेवाले की आवाज है, [QE][QS]‘प्रभु का रास्ता सीधा करो, उनका मार्ग सरल बनाओ.’ ” [QE]
4. [MS] बपतिस्मा[‡ बपतिस्मा जल-संस्कार एक व्यक्ति को पानी में डुबोने की धार्मिक विधि ] देनेवाले योहन बंजर भूमि में पाप क्षमा के लिए पश्चाताप के बपतिस्मा का प्रचार करते हुए आए.
5. यहूदिया प्रदेश के क्षेत्रों से सारी भीड़ तथा येरूशलेम नगर के सभी लोग उनसे भेंट करने जाने लगे. ये सब पाप स्वीकार करते हुए यरदन नदी में योहन से बपतिस्मा ले रहे थे.
6. योहन का परिधान, ऊंट के रोम से निर्मित वस्त्र और उसके ऊपर चमड़े का कमरबंध था[§ 2 राजा 1:8 देखें ] और उनका भोजन था टिड्डियां तथा जंगलीमधु.
7. वह प्रचार कर कहते थे, “मेरे बाद एक ऐसा व्यक्ति आएगा, जो मुझसे अधिक शक्तिमान हैं—मैं तो इस योग्य भी नहीं हूं कि उनके सामने झुककर उनकी जूतियों के बंध खोलनेवाला एक गुलाम बन सकूं.
8. मैं बपतिस्मा जल में देता हूं; वह तुम्हें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देंगे.” [ME]
9. {#1मसीह येशु का बपतिस्मा } [PS]उसी समय मसीह येशु गलील प्रदेश के नाज़रेथ नगर से आए और उन्हें योहन द्वारा यरदन नदी में बपतिस्मा दिया गया.
10. जब मसीह येशु जल से बाहर आ रहे थे, उसी क्षण उन्होंने आकाश को खुलते तथा आत्मा को, जो कबूतर के समान था, अपने ऊपर उतरते हुए देखा
11. और स्वर्ग से निकला एक शब्द भी सुनाई दिया: “तुम मेरे पुत्र हो—मेरे प्रिय—तुमसे मैं अतिप्रसन्न हूं.” [PE]
12. [PS]उसी समय पवित्र आत्मा ने उन्हें बंजर भूमि में भेज दिया.
13. बंजर भूमि में वह चालीस दिन शैतान के द्वारा परखे जाते रहे. वह वहां जंगली पशुओं के साथ रहे और स्वर्गदूतों ने उनकी सेवा की. [PE]
14. {#1प्रचार का प्रारंभ गलील प्रदेश से } [PS]योहन के बंदी बना लिए जाने के बाद येशु, परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते हुए गलील प्रदेश आए.
15. उनका संदेश था, “समय पूरा हो चुका है, परमेश्वर का राज्य पास आ गया है. मन फिराओ तथा सुसमाचार में विश्वास करो.” [PE]
16. {#1पहले चार शिष्यों का बुलाया जाना } [PS]गलील झील के पास से जाते हुए मसीह येशु ने शिमओन तथा उनके भाई आन्द्रेयास को देखा, जो झील में जाल डाल रहे थे. वे मछुआरे थे.
17. येशु ने उनसे कहा, “मेरा अनुसरण करो—मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुआरे बनाऊंगा.[* अर्थात् जो सुसमाचार का प्रचार करके बहुतों को येशु के अनुयायी बनानेवाले ]”
18. वे उसी क्षण अपने जाल छोड़कर येशु का अनुसरण करने लगे. [PE]
19. [PS]आगे जाने पर उन्होंने ज़ेबेदियॉस के पुत्र याकोब तथा उनके भाई योहन को देखा. वे भी नाव में थे और अपने जाल सुधार रहे थे.
20. उन्हें देखते ही मसीह येशु ने उनको बुलाया. वे अपने पिता ज़ेबेदियॉस को मज़दूरों के साथ नाव में ही छोड़कर उनके साथ चल दिए. [PE]
21. {#1मसीह येशु की अधिकार भरी शिक्षा } [PS]वे सब कफ़रनहूम नगर आए. शब्बाथ पर मसीह येशु स्थानीय यहूदी सभागृह में जाकर शिक्षा देने लगे.
22. लोग उनकी शिक्षा से आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह शास्त्रियों के समान नहीं परंतु इस प्रकार शिक्षा दे रहे थे कि उन्हें इसका अधिकार है.
23. उसी समय सभागृह में एक व्यक्ति, जो दुष्टात्मा से पीड़ित था, चिल्ला उठा,
24. “नाज़रेथवासी येशु! क्या चाहते हैं आप? क्या आप हमें नाश करने आए हैं? मैं जानता हूं कि आप कौन हैं; परमेश्वर के पवित्र जन!” [PE]
25. [PS]“चुप!” उसे फटकारते हुए मसीह येशु ने कहा, “बाहर निकल जा इसमें से!”
26. उस व्यक्ति को मरोड़ते हुए वह दुष्टात्मा ऊंचे शब्द में चिल्लाता हुआ उसमें से बाहर निकल गया. [PE]
27. [PS]सभी हैरान रह गए. वे आपस में विचार करने लगे, “यह सब क्या हो रहा है? यह अधिकारपूर्वक शिक्षा देते हैं और अशुद्ध आत्मा तक को आज्ञा देते है और वे उनका पालन भी करती हैं!”
28. तेजी से उनकी ख्याति गलील प्रदेश के आस-पास सब जगह फैल गई. [PE]
29. {#1पेतरॉस की सास को स्वास्थ्यदान } [PS]यहूदी सभागृह से निकलकर वे सीधे याकोब और योहन के साथ शिमओन तथा आन्द्रेयास के घर पर गए.
30. वहां शिमओन की सास बुखार में पड़ी हुई थी. उन्होंने बिना देर किए मसीह येशु को इसके विषय में बताया.
31. मसीह येशु उनके पास आए, उनका हाथ पकड़ उन्हें उठाया और उनका बुखार जाता रहा तथा वह उनकी सेवा टहल में जुट गईं. [PE]
32. [PS]संध्या समय सूर्यास्त के बाद[† सूर्यास्त के बाद वह शब्बाथ का दिन था जब कोई भी शारीरिक कार्य करना निषिद्ध था. सूर्यास्त होने पर शब्बाथ समाप्त होता है. लोगों को इसका इंतजार करना पड़ता था ] लोग अस्वस्थ तथा जिनमें दुष्टात्माऐं थी उन लोगों को येशु के पास लाने लगे.
33. सारा नगर ही द्वार पर इकट्ठा हो गया
34. मसीह येशु ने विभिन्न रोगों से पीड़ित अनेकों को स्वस्थ किया और अनेक दुष्टात्माओं को भी निकाला. वह दुष्टात्माओं को बोलने नहीं देते थे क्योंकि वे उन्हें पहचानती थी. [PE]
35. {#1समग्र गलील प्रदेश में मसीह येशु द्वारा प्रचार तथा स्वास्थ्यदान सेवा } [PS]भोर होने पर, जब अंधकार ही था, मसीह येशु उठे और एक सुनसान जगह को गए. वहां वह प्रार्थना करने लगे.
36. शिमओन तथा उनके अन्य साथी उन्हें खोज रहे थे.
37. उन्हें पाकर वे कहने लगे, “सभी आपको खोज रहे हैं.” [PE]
38. [PS]किंतु मसीह येशु ने उनसे कहा, “चलो, कहीं और चलें—यहां पास के नगरों में—जिससे कि मैं वहां भी प्रचार कर सकूं क्योंकि मेरे यहां आने का उद्देश्य यही है.”
39. वह सारे गलील प्रदेश में घूमते हुए यहूदी सभागृहों में जा-जाकर प्रचार करते रहे तथा लोगों में से दुष्टात्माओं को निकालते गए. [PE]
40. {#1कोढ़ रोगी की शुद्धि }
41. [PS]एक कोढ़ रोगी उनके पास आया. उसने मसीह येशु के सामने घुटने टेक उनसे विनती की, “आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.” [PE][PS]तरस खाकर मसीह येशु ने हाथ बढ़ाकर उसे स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूं. तुम शुद्ध हो जाओ!”
42. उसी समय उसका कोढ़ रोग जाता रहा और वह शुद्ध हो गया. [PE]
43. [PS]मसीह येशु ने उसे उसी समय इस चेतावनी के साथ विदा किया,
44. “सुनो! इस विषय में किसी से कुछ न कहना. हां, जाकर स्वयं को पुरोहित के सामने प्रस्तुत करो तथा अपनी शुद्धि के प्रमाण के लिए मोशेह द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार शुद्धि संबंधी भेंट चढ़ाओ.[‡ लेवी 14:2-32 देखें ]”
45. किंतु उस व्यक्ति ने जाकर खुलेआम इसकी घोषणा की तथा यह समाचार इतना फैला दिया कि मसीह येशु इसके बाद खुल्लम-खुल्ला किसी नगर में न जा सके और उन्हें नगर के बाहर सुनसान स्थानों में रहना पड़ा. फिर भी सब स्थानों से लोग उनके पास आते रहे. [PE]