1. {#1बपतिस्मा देनेवाले योहन की शंका का समाधान }
2. [PS]जब येशु अपने बारह शिष्यों को निर्देश दे चुके, वह शिक्षा देने और प्रचार के लिए वहां से उनके नगरों में चले गए. [PE][PS]बंदीगृह में जब योहन ने मसीह के कामों के विषय में सुना उन्होंने अपने शिष्यों को येशु से यह पूछने भेजा,
3. “क्या आप वही है, जिसकी प्रतिज्ञा तथा प्रतीक्षा की गई हैं, या हम किसी अन्य का इंतजार करें?” [PE]
4. [PS]येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जो कुछ तुम देख और सुन रहे हो उसकी सूचना योहन को दे दो:
5. अंधे देख पा रहे हैं, लंगड़े चल रहे हैं, कोढ़ के रोगियों को शुद्ध किया जा रहा है, बहिरे सुनने लगे हैं, मरे हुए दोबारा जीवित किए जा रहे हैं तथा कंगालों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है.[* यशा 35:5-6; 42:18; 61:1 ]
6. धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता.” [PE]
7. [PS]जब योहन के शिष्य वहां से जा ही रहे थे, प्रभु येशु ने भीड़ से योहन के विषय में कहना प्रारंभ किया, “तुम्हारी आशा बंजर भूमि में क्या देखने की थी? हवा में हिलते हुए सरकंडे को?
8. यदि यह नहीं तो फिर क्या देखने गए थे? कीमती वस्त्र धारण किए हुए किसी व्यक्ति को? जो ऐसे वस्त्र धारण करते हैं उनका निवास तो राजमहलों में होता है.
9. तुम क्यों गए थे? किसी भविष्यवक्ता से भेंट करने? हां! मैं तुम्हें बता रहा हूं कि यह वह हैं, जो भविष्यवक्ता से भी बढ़कर हैं
10. यह वह हैं जिनके विषय में लिखा गया है: [PE][QS]“ ‘मैं अपना दूत तुम्हारे आगे भेज रहा हूं, [QE][QS2]जो तुम्हारे आगे-आगे जाकर तुम्हारे लिए मार्ग तैयार करेगा.’[† मला 3:1 ] [QE]
11. [MS] सच तो यह है कि आज तक जितने भी मनुष्य हुए हैं उनमें से एक भी बपतिस्मा देनेवाले योहन से बढ़कर नहीं. फिर भी स्वर्ग-राज्य में छोटे से छोटा भी योहन से बढ़कर है.
12. बपतिस्मा देनेवाले योहन के समय से लेकर अब तक स्वर्ग-राज्य प्रबलतापूर्वक फैल रहा है और आकांक्षी-उत्साही व्यक्ति इस पर अधिकार कर रहे हैं.
13. भविष्यद्वक्ताओं तथा व्यवस्था की भविष्यवाणी योहन तक ही थी.
14. यदि तुम इस सच में विश्वास कर सको तो सुनो: योहन ही वह एलियाह हैं जिनका दोबारा आगमन होना था.
15. जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले. [ME]
16.
17. [PS]“इस पीढ़ी की तुलना मैं किससे करूं? यह बाजारों में बैठे हुए उन बालकों के समान है, जो पुकारते हुए अन्यों से कह रहे हैं: [PE][QS]“ ‘जब हमने तुम्हारे लिए बांसुरी बजाई, [QE][QS2]तुम न नाचे; [QE][QS]हमने शोक गीत भी गाए, [QE][QS2]फिर भी तुम न रोए.’ [QE]
18. [MS] योहन रोटी नहीं खाते, और दाखरस नहीं पीते थे. इसलिये लोगों ने घोषणा की, ‘उसमें दुष्टात्मा है.’
19. मनुष्य का पुत्र खाते-पीते आया, और उन्होंने घोषित कर दिया, ‘अरे, वह तो पेटू और पियक्कड़ है; वह तो चुंगी लेनेवालों और अपराधी व्यक्तियों का मित्र है!’ बुद्धि अपने कामों से सही साबित होती है[‡ मूल में “बुद्धि अपनी संतान द्वारा साबित हुई है.” दानि 7:13-14 ].” [ME]
20. {#1झील तट के नगरों पर विलाप } [PS]येशु ने अधिकांश अद्भुत काम इन्हीं नगरों में किए थे; फिर भी इन नगरों ने पश्चाताप नहीं किया था, इसलिये येशु इन नगरों को धिक्कारने लगे.
21. “धिक्कार है तुझ पर कोराज़ीन! धिक्कार है तुझ पर बैथसैदा! ये ही अद्भुत काम, जो तुझमें किए गए हैं यदि सोर और सीदोन नगरों में किए जाते तो वे विलाप-वस्त्र पहन, सिर पर राख डाल कब के पश्चाताप कर चुके होते!
22. फिर भी मैं कहता हूं, सुनो: न्याय-दिवस पर सोर और सीदोन नगरों का दंड तेरे दंड से अधिक सहने योग्य होगा.
23. और कफ़रनहूम, तू! क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा किए जाने की आशा कर रहा है? अरे! तुझे तो पाताल में उतार दिया जाएगा क्योंकि जो अद्भुत काम तुझमें किए गए, यदि वे ही सोदोम नगर में किए गए होते तो वह आज भी बना होता.
24. फिर भी आज जो मैं कह रहा हूं उसे याद रख: न्याय-दिवस पर सोदोम नगर का दंड तेरे दंड से अधिक सहने योग्य होगा.” [PE]
25. {#1सरल हृदय लोगों पर ईश्वरीय सुसमाचार का प्रकाशन } [PS]यह वह अवसर था जब येशु ने इस प्रकार कहा: “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के स्वामी, मैं आपकी स्तुति करता हूं कि आपने ये सभी सच बुद्धिमानों और ज्ञानियों से छुपा रखे और नन्हे बालकों पर प्रकट कर दिए क्योंकि पिता, आपकी दृष्टि में यही अच्छा था.
26. सच है, पिता, क्योंकि इसी में आपको परम संतोष था. [PE]
27.
28. [PS]“मेरे पिता द्वारा सब कुछ मुझे सौंप दिया गया है. पिता के अलावा कोई पुत्र को नहीं जानता और न ही कोई पिता को जानता है, सिवाय पुत्र के तथा वे, जिन पर वह प्रकट करना चाहें. [PE][PS]“तुम सभी, जो थके हुए तथा भारी बोझ से दबे हो, मेरे पास आओ, तुम्हें विश्राम मैं दूंगा.
29. मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझसे सीखो क्योंकि मैं दीन और हृदय से नम्र हूं और तुम्हें मन में विश्राम प्राप्त होगा
30. क्योंकि सहज है मेरा जूआ और हल्का है मेरा बोझ.” [PE]