पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
मत्ती
1. {दान का गुप्‍त होना ज़रूरी है }
2. [PS]“ध्यान रहे कि तुम लोगों की प्रशंसा पाने के उद्देश्य से धर्म के काम न करो अन्यथा तुम्हें तुम्हारे स्वर्गीय पिता से कोई भी प्रतिफल प्राप्‍त न होगा. [PE][PS]“जब तुम दान दो तब इसका ढिंढोरा न पीटो, जैसा पाखंडी यहूदी सभागृहों तथा सड़कों पर किया करते हैं कि वे मनुष्यों द्वारा सम्मानित किए जाएं. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके;
3. किंतु तुम जब ज़रूरतमंदों को दान दो तो तुम्हारे बायें हाथ को यह मालूम न हो सके कि तुम्हारा दायां हाथ क्या कर रहा है
4. कि तुम्हारी दान प्रक्रिया पूरी तरह गुप्‍त रहे. तब तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. [PE]
5. {प्रार्थना का गुप्‍त होना ज़रूरी है } [PS]“प्रार्थना करते हुए तुम्हारी मुद्रा दिखावा करनेवाले लोगों के समान न हो क्योंकि उनकी रुचि यहूदी सभागृहों में तथा नुक्कड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करने में होती है कि उन पर लोगों की दृष्टि पड़ती रहे. मैं तुम पर यह सच प्रकाशित कर रहा हूं कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके.
6. इसके विपरीत जब तुम प्रार्थना करो, तुम अपनी कोठरी में चले जाओ, द्वार बंद कर लो और अपने पिता से, जो अदृश्य हैं, प्रार्थना करो और तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. [PE]
7. [PS]“अपनी प्रार्थना में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा गैर-यहूदी करते हैं क्योंकि उनका विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी प्रार्थना सुनी जाएगी.
8. इसलिये उनके जैसे न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीय पिता को विनती करने से पहले ही तुम्हारी ज़रूरत का अहसास रहता है. [PE]
9. [PS]“तुम प्रार्थना इस प्रकार किया करो: [PE][QS]“हमारे स्वर्गिक पिता, आपका नाम पवित्र माना जाए. [QE]
10. [QS]आपका राज्य हर जगह हो. [QE][QS]आपकी इच्छा पूरी हो, [QE][QS2]जिस प्रकार स्वर्ग में उसी प्रकार पृथ्वी पर भी. [QE]
11. [QS]आज हमें हमारा दैनिक आहार प्रदान कीजिए. [QE]
12. [QS]आप हमारे अपराधों की क्षमा कीजिए जैसे हमने उन्हें क्षमा किया है, [QE][QS2]जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किए थे. [QE]
13. [QS]हमें परीक्षा से बचाकर उस दुष्ट से हमारी रक्षा कीजिए क्योंकि राज्य, [QE][QS]सामर्थ्य तथा प्रताप सदा-सर्वदा आप ही का है, आमेन. [QE]
14. [MS] यदि तुम दूसरों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे.
15. किंतु यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा नहीं करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेंगे. [ME]
16. {उपवास का गुप्‍त होना ज़रूरी है } [PS]“जब कभी तुम उपवास रखो तब पाखंडियों के समान अपना मुंह मुरझाया हुआ न बना लो. वे अपना रूप ऐसा इसलिये बना लेते हैं कि लोगों की दृष्टि उन पर अवश्य पड़े. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके.
17. किंतु जब तुम उपवास करो तो अपने बाल संवारो और अपना मुंह धो लो
18. कि तुम्हारे उपवास के विषय में सिवाय तुम्हारे स्वर्गीय पिता के—जो अदृश्य हैं—किसी को भी मालूम न हो. तब तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. [PE]
19. {#1वास्तविक धन } [PS]“पृथ्वी पर अपने लिए धन इकट्ठा न करो, जहां कीट-पतंगे तथा जंग उसे नाश करते तथा चोर सेंध लगाकर चुराते हैं
20. परंतु धन स्वर्ग में जमा करो, जहां न तो कीट-पतंगे या जंग नाश करते और न ही चोर सेंध लगाकर चुराते हैं
21. क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी होगा. [PE]
22. [PS]“शरीर का दीपक आंख है. इसलिये यदि तुम्हारी आंख निरोगी है, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा.
23. यदि तुम्हारी आंख रोगी है, तुम्हारा सारा शरीर अंधकारमय हो जाएगा. वह उजियाला, जो तुममें है, यदि वह अंधकार है तो कितना गहन होगा वह अंधकार! [PE]
24.
25. [PS]“कोई भी व्यक्ति दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह एक को तुच्छ मानकर दूसरे के प्रति समर्पित रहेगा या एक का सम्मान करते हुए दूसरे को तुच्छ जानेगा. तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा कर ही नहीं सकते. [PE]{#1परमेश्वर का प्रबंध ही विश्वासयोग्य है } [PS]“यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूं कि अपने जीवन के विषय में चिंता न करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पिओगे; और न ही शरीर के विषय में कि क्या पहनोगे. क्या जीवन आहार से और शरीर वस्त्रों से अधिक कीमती नहीं?
26. पक्षियों की ओर ध्यान दो: वे न तो बीज बोते हैं, और न ही खलिहान में उपज इकट्ठा करते हैं. फिर भी तुम्हारे स्वर्गीय पिता उनका भरण-पोषण करते हैं. क्या तुम उनसे कहीं ज्यादा मूल्यवान नहीं?
27. और तुममें ऐसा कौन है, जो चिंता के द्वारा अपनी आयु में एक क्षण की भी वृद्धि कर सकता है? [PE]
28. [PS]“और वस्त्र तुम्हारी चिंता का विषय क्यों? मैदान के फूलों का ध्यान तो करो कि वे कैसे खिलते हैं. वे न तो परिश्रम करते हैं और न ही वस्त्र निर्माण.
29. फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि शलोमोन की वेशभूषा का ऐश्वर्य किसी भी दृष्टि से इनके तुल्य नहीं था.
30. यदि परमेश्वर घास का श्रृंगार इस सीमा तक करते हैं, जिसका जीवन थोड़े समय का है और जो कल आग में झोंक दिया जाएगा, तो क्या वह तुमको कहीं अधिक सुशोभित न करेंगे? कैसा कमजोर है तुम्हारा विश्वास!
31. इसलिए इस विषय में चिंता न करो, ‘हम क्या खाएंगे या क्या पिएंगे’ या ‘हमारे वस्त्रों का प्रबंध कैसे होगा?’
32. गैर-यहूदी ही इन वस्तुओं के लिए कोशिश करते रहते हैं. तुम्हारे स्वर्गीय पिता को यह मालूम है कि तुम्हें इन सब की ज़रूरत है.
33. सबसे पहले परमेश्वर के राज्य की और उनकी धार्मिकता की खोज करो, और ये सभी वस्तुएं तुम्हें दी जाएंगी.
34. इसलिये कल की चिंता न करो—कल अपनी चिंता स्वयं करेगा क्योंकि हर एक दिन अपने साथ अपना ही पर्याप्‍त दुःख लिए हुए आता है. [PE]
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1 {दान का गुप्‍त होना ज़रूरी है } 2 “ध्यान रहे कि तुम लोगों की प्रशंसा पाने के उद्देश्य से धर्म के काम न करो अन्यथा तुम्हें तुम्हारे स्वर्गीय पिता से कोई भी प्रतिफल प्राप्‍त न होगा. “जब तुम दान दो तब इसका ढिंढोरा न पीटो, जैसा पाखंडी यहूदी सभागृहों तथा सड़कों पर किया करते हैं कि वे मनुष्यों द्वारा सम्मानित किए जाएं. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके; 3 किंतु तुम जब ज़रूरतमंदों को दान दो तो तुम्हारे बायें हाथ को यह मालूम न हो सके कि तुम्हारा दायां हाथ क्या कर रहा है 4 कि तुम्हारी दान प्रक्रिया पूरी तरह गुप्‍त रहे. तब तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. 5 {प्रार्थना का गुप्‍त होना ज़रूरी है } “प्रार्थना करते हुए तुम्हारी मुद्रा दिखावा करनेवाले लोगों के समान न हो क्योंकि उनकी रुचि यहूदी सभागृहों में तथा नुक्कड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करने में होती है कि उन पर लोगों की दृष्टि पड़ती रहे. मैं तुम पर यह सच प्रकाशित कर रहा हूं कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके. 6 इसके विपरीत जब तुम प्रार्थना करो, तुम अपनी कोठरी में चले जाओ, द्वार बंद कर लो और अपने पिता से, जो अदृश्य हैं, प्रार्थना करो और तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. 7 “अपनी प्रार्थना में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा गैर-यहूदी करते हैं क्योंकि उनका विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी प्रार्थना सुनी जाएगी. 8 इसलिये उनके जैसे न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीय पिता को विनती करने से पहले ही तुम्हारी ज़रूरत का अहसास रहता है. 9 “तुम प्रार्थना इस प्रकार किया करो: “हमारे स्वर्गिक पिता, आपका नाम पवित्र माना जाए. 10 आपका राज्य हर जगह हो. आपकी इच्छा पूरी हो, जिस प्रकार स्वर्ग में उसी प्रकार पृथ्वी पर भी. 11 आज हमें हमारा दैनिक आहार प्रदान कीजिए. 12 आप हमारे अपराधों की क्षमा कीजिए जैसे हमने उन्हें क्षमा किया है, जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किए थे. 13 हमें परीक्षा से बचाकर उस दुष्ट से हमारी रक्षा कीजिए क्योंकि राज्य, सामर्थ्य तथा प्रताप सदा-सर्वदा आप ही का है, आमेन. 14 यदि तुम दूसरों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे. 15 किंतु यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा नहीं करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेंगे. 16 {उपवास का गुप्‍त होना ज़रूरी है } “जब कभी तुम उपवास रखो तब पाखंडियों के समान अपना मुंह मुरझाया हुआ न बना लो. वे अपना रूप ऐसा इसलिये बना लेते हैं कि लोगों की दृष्टि उन पर अवश्य पड़े. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्‍त कर चुके. 17 किंतु जब तुम उपवास करो तो अपने बाल संवारो और अपना मुंह धो लो 18 कि तुम्हारे उपवास के विषय में सिवाय तुम्हारे स्वर्गीय पिता के—जो अदृश्य हैं—किसी को भी मालूम न हो. तब तुम्हारे पिता, जो अंतर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे. वास्तविक धन 19 “पृथ्वी पर अपने लिए धन इकट्ठा न करो, जहां कीट-पतंगे तथा जंग उसे नाश करते तथा चोर सेंध लगाकर चुराते हैं 20 परंतु धन स्वर्ग में जमा करो, जहां न तो कीट-पतंगे या जंग नाश करते और न ही चोर सेंध लगाकर चुराते हैं 21 क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी होगा. 22 “शरीर का दीपक आंख है. इसलिये यदि तुम्हारी आंख निरोगी है, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा. 23 यदि तुम्हारी आंख रोगी है, तुम्हारा सारा शरीर अंधकारमय हो जाएगा. वह उजियाला, जो तुममें है, यदि वह अंधकार है तो कितना गहन होगा वह अंधकार! 24 25 “कोई भी व्यक्ति दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह एक को तुच्छ मानकर दूसरे के प्रति समर्पित रहेगा या एक का सम्मान करते हुए दूसरे को तुच्छ जानेगा. तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा कर ही नहीं सकते. परमेश्वर का प्रबंध ही विश्वासयोग्य है “यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूं कि अपने जीवन के विषय में चिंता न करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पिओगे; और न ही शरीर के विषय में कि क्या पहनोगे. क्या जीवन आहार से और शरीर वस्त्रों से अधिक कीमती नहीं? 26 पक्षियों की ओर ध्यान दो: वे न तो बीज बोते हैं, और न ही खलिहान में उपज इकट्ठा करते हैं. फिर भी तुम्हारे स्वर्गीय पिता उनका भरण-पोषण करते हैं. क्या तुम उनसे कहीं ज्यादा मूल्यवान नहीं? 27 और तुममें ऐसा कौन है, जो चिंता के द्वारा अपनी आयु में एक क्षण की भी वृद्धि कर सकता है? 28 “और वस्त्र तुम्हारी चिंता का विषय क्यों? मैदान के फूलों का ध्यान तो करो कि वे कैसे खिलते हैं. वे न तो परिश्रम करते हैं और न ही वस्त्र निर्माण. 29 फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि शलोमोन की वेशभूषा का ऐश्वर्य किसी भी दृष्टि से इनके तुल्य नहीं था. 30 यदि परमेश्वर घास का श्रृंगार इस सीमा तक करते हैं, जिसका जीवन थोड़े समय का है और जो कल आग में झोंक दिया जाएगा, तो क्या वह तुमको कहीं अधिक सुशोभित न करेंगे? कैसा कमजोर है तुम्हारा विश्वास! 31 इसलिए इस विषय में चिंता न करो, ‘हम क्या खाएंगे या क्या पिएंगे’ या ‘हमारे वस्त्रों का प्रबंध कैसे होगा?’ 32 गैर-यहूदी ही इन वस्तुओं के लिए कोशिश करते रहते हैं. तुम्हारे स्वर्गीय पिता को यह मालूम है कि तुम्हें इन सब की ज़रूरत है. 33 सबसे पहले परमेश्वर के राज्य की और उनकी धार्मिकता की खोज करो, और ये सभी वस्तुएं तुम्हें दी जाएंगी. 34 इसलिये कल की चिंता न करो—कल अपनी चिंता स्वयं करेगा क्योंकि हर एक दिन अपने साथ अपना ही पर्याप्‍त दुःख लिए हुए आता है.
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