पवित्र बाइबिल

समकालीन संस्करण खोलें (OCV)
नीतिवचन
1. [QS]वह, जिसे बार-बार डांट पड़ती रहती है, फिर भी अपना हठ नहीं छोड़ता, [QE][QS2]उस पर विनाश अचानक रूप से टूट पड़ेगा और वह पुनः उठ न सकेगा. [QE][PBR]
2. [QS]जब खरे की संख्या में वृद्धि होती है, लोगों में हर्ष की लहर दौड़ जाती है; [QE][QS2]किंतु जब दुष्ट शासन करने लगते हैं, तब प्रजा कराहने लगती है. [QE][PBR]
3. [QS]बुद्धि से प्रेम करनेवाला पुत्र अपने पिता के हर्ष का विषय होता है, [QE][QS2]किंतु जो वेश्याओं में संलिप्‍त रहता है वह अपनी संपत्ति उड़ाता जाता है. [QE][PBR]
4. [QS]न्याय्यता पर ही राजा अपने राष्ट्र का निर्माण करता है, [QE][QS2]किंतु वह, जो जनता को करो के बोझ से दबा देता है, राष्ट्र के विनाश को आमंत्रित करता है. [QE][PBR]
5. [QS]जो अपने पड़ोसियों की चापलूसी करता है, [QE][QS2]वह अपने पड़ोसी के पैरों के लिए जाल बिछा रहा होता है. [QE][PBR]
6. [QS]दुष्ट अपने ही अपराधों में उलझा रहता है, [QE][QS2]किंतु धर्मी सदैव उल्‍लसित हो गीत गाता रहता है. [QE][PBR]
7. [QS]धर्मी को सदैव निर्धन के अधिकारों का बोध रहता है, [QE][QS2]किंतु दुष्ट को इस विषय का ज्ञान ही नहीं होता. [QE][PBR]
8. [QS]ठट्ठा करनेवाले नगर को अग्नि लगाते हैं, [QE][QS2]किंतु बुद्धिमान ही कोप को शांत करते हैं. [QE][PBR]
9. [QS]यदि बुद्धिमान व्यक्ति किसी मूर्ख को न्यायालय ले जाता है, [QE][QS2]तो विवाद न तो शीघ्र क्रोधी होने से सुलझता है न ही हंसी में उड़ा देने से. [QE][PBR]
10. [QS]खून के प्यासे हिंसक व्यक्ति खराई से घृणा करते हैं, [QE][QS2]वे धर्मी के प्राणों के प्यासे हो जाते हैं. [QE][PBR]
11. [QS]क्रोध में मूर्ख व्यक्ति अनियंत्रित हो जाता है, [QE][QS2]किंतु बुद्धिमान संयमपूर्वक शांत बना रहता है. [QE][PBR]
12. [QS]यदि शासक असत्य को सुनने लगता है, [QE][QS2]उसके सभी मंत्री कुटिल बन जाते हैं. [QE][PBR]
13. [QS]अत्याचारी और निर्धन व्यक्ति में एक साम्य अवश्य है: [QE][QS2]दोनों ही को याहवेह ने दृष्टि प्रदान की है. [QE][PBR]
14. [QS]यदि राजा पूर्ण खराई में निर्धन का न्याय करता है, [QE][QS2]उसका सिंहासन स्थायी रहता है. [QE][PBR]
15. [QS]ज्ञानोदय के साधन हैं डांट और छड़ी, [QE][QS2]किंतु जिस बालक पर ये प्रयुक्त न हुए हों, वह माता की लज्जा का कारण हो जाता है. [QE][PBR]
16. [QS]दुष्टों की संख्या में वृद्धि अपराध दर में वृद्धि करती है, [QE][QS2]किंतु धर्मी उनके पतन के दर्शक होते हैं. [QE][PBR]
17. [QS]अपने पुत्र को अनुशासन में रखो कि तुम्हारा भविष्य सुखद हो; [QE][QS2]वही तुम्हारे हृदय को आनंदित रखेगा. [QE][PBR]
18. [QS]भविष्य के दर्शन के अभाव में लोग प्रतिबन्ध तोड़ फेंकते हैं; [QE][QS2]किंतु धन्य होता है वह, जो नियमों का पालन करता है. [QE][PBR]
19. [QS]सेवकों के अनुशासन के लिए मात्र शब्द निर्देश पर्याप्‍त नहीं होता; [QE][QS2]वे इसे समझ अवश्य लेंगे, किंतु इसका पालन नहीं करेंगे. [QE][PBR]
20. [QS]एक मूर्ख व्यक्ति से उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आशा की जा सकती है, [QE][QS2]जो बिना विचार अपना मत दे देता है. [QE][PBR]
21. [QS]यदि सेवक को बाल्यकाल से ही जो भी चाहे दिया जाए, [QE][QS2]तो अंततः वह घमंडी हो जाएगा. [QE][PBR]
22. [QS]शीघ्र क्रोधी व्यक्ति कलह करनेवाला होता है, [QE][QS2]और अनियंत्रित क्रोध का दास अनेक अपराध कर बैठता है. [QE][PBR]
23. [QS]अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण होता है, [QE][QS2]किंतु वह, जो आत्मा में विनम्र है, सम्मानित किया जाता है. [QE][PBR]
24. [QS]जो चोर का साथ देता है, वह अपने ही प्राणों का शत्रु होता है; [QE][QS2]वह न्यायालय में सबके द्वारा शापित किया जाता है, किंतु फिर भी सत्य प्रकट नहीं कर सकता. [QE][PBR]
25. [QS]लोगों से भयभीत होना उलझन प्रमाणित होता है, [QE][QS2]किंतु जो कोई याहवेह पर भरोसा रखता है, सुरक्षित रहता है. [QE][PBR]
26. [QS]शासक के प्रिय पात्र सभी बनना चाहते हैं, [QE][QS2]किंतु वास्तविक न्याय याहवेह के द्वारा निष्पन्‍न होता है. [QE][PBR]
27. [QS]अन्यायी खरे के लिए तुच्छ होते हैं; [QE][QS2]किंतु वह, जिसका चालचलन खरा है, दुष्टों के लिए तुच्छ होता है. [QE]
Total 31 अध्याय, Selected अध्याय 29 / 31
1 वह, जिसे बार-बार डांट पड़ती रहती है, फिर भी अपना हठ नहीं छोड़ता, उस पर विनाश अचानक रूप से टूट पड़ेगा और वह पुनः उठ न सकेगा. 2 जब खरे की संख्या में वृद्धि होती है, लोगों में हर्ष की लहर दौड़ जाती है; किंतु जब दुष्ट शासन करने लगते हैं, तब प्रजा कराहने लगती है. 3 बुद्धि से प्रेम करनेवाला पुत्र अपने पिता के हर्ष का विषय होता है, किंतु जो वेश्याओं में संलिप्‍त रहता है वह अपनी संपत्ति उड़ाता जाता है. 4 न्याय्यता पर ही राजा अपने राष्ट्र का निर्माण करता है, किंतु वह, जो जनता को करो के बोझ से दबा देता है, राष्ट्र के विनाश को आमंत्रित करता है. 5 जो अपने पड़ोसियों की चापलूसी करता है, वह अपने पड़ोसी के पैरों के लिए जाल बिछा रहा होता है. 6 दुष्ट अपने ही अपराधों में उलझा रहता है, किंतु धर्मी सदैव उल्‍लसित हो गीत गाता रहता है. 7 धर्मी को सदैव निर्धन के अधिकारों का बोध रहता है, किंतु दुष्ट को इस विषय का ज्ञान ही नहीं होता. 8 ठट्ठा करनेवाले नगर को अग्नि लगाते हैं, किंतु बुद्धिमान ही कोप को शांत करते हैं. 9 यदि बुद्धिमान व्यक्ति किसी मूर्ख को न्यायालय ले जाता है, तो विवाद न तो शीघ्र क्रोधी होने से सुलझता है न ही हंसी में उड़ा देने से. 10 खून के प्यासे हिंसक व्यक्ति खराई से घृणा करते हैं, वे धर्मी के प्राणों के प्यासे हो जाते हैं. 11 क्रोध में मूर्ख व्यक्ति अनियंत्रित हो जाता है, किंतु बुद्धिमान संयमपूर्वक शांत बना रहता है. 12 यदि शासक असत्य को सुनने लगता है, उसके सभी मंत्री कुटिल बन जाते हैं. 13 अत्याचारी और निर्धन व्यक्ति में एक साम्य अवश्य है: दोनों ही को याहवेह ने दृष्टि प्रदान की है. 14 यदि राजा पूर्ण खराई में निर्धन का न्याय करता है, उसका सिंहासन स्थायी रहता है. 15 ज्ञानोदय के साधन हैं डांट और छड़ी, किंतु जिस बालक पर ये प्रयुक्त न हुए हों, वह माता की लज्जा का कारण हो जाता है. 16 दुष्टों की संख्या में वृद्धि अपराध दर में वृद्धि करती है, किंतु धर्मी उनके पतन के दर्शक होते हैं. 17 अपने पुत्र को अनुशासन में रखो कि तुम्हारा भविष्य सुखद हो; वही तुम्हारे हृदय को आनंदित रखेगा. 18 भविष्य के दर्शन के अभाव में लोग प्रतिबन्ध तोड़ फेंकते हैं; किंतु धन्य होता है वह, जो नियमों का पालन करता है. 19 सेवकों के अनुशासन के लिए मात्र शब्द निर्देश पर्याप्‍त नहीं होता; वे इसे समझ अवश्य लेंगे, किंतु इसका पालन नहीं करेंगे. 20 एक मूर्ख व्यक्ति से उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आशा की जा सकती है, जो बिना विचार अपना मत दे देता है. 21 यदि सेवक को बाल्यकाल से ही जो भी चाहे दिया जाए, तो अंततः वह घमंडी हो जाएगा. 22 शीघ्र क्रोधी व्यक्ति कलह करनेवाला होता है, और अनियंत्रित क्रोध का दास अनेक अपराध कर बैठता है. 23 अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण होता है, किंतु वह, जो आत्मा में विनम्र है, सम्मानित किया जाता है. 24 जो चोर का साथ देता है, वह अपने ही प्राणों का शत्रु होता है; वह न्यायालय में सबके द्वारा शापित किया जाता है, किंतु फिर भी सत्य प्रकट नहीं कर सकता. 25 लोगों से भयभीत होना उलझन प्रमाणित होता है, किंतु जो कोई याहवेह पर भरोसा रखता है, सुरक्षित रहता है. 26 शासक के प्रिय पात्र सभी बनना चाहते हैं, किंतु वास्तविक न्याय याहवेह के द्वारा निष्पन्‍न होता है. 27 अन्यायी खरे के लिए तुच्छ होते हैं; किंतु वह, जिसका चालचलन खरा है, दुष्टों के लिए तुच्छ होता है.
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