1. [QS]याहवेह के प्रति आभार व्यक्त करो, उनको पुकारो; [QE][QS2]सभी जनताओं के सामने उनके द्वारा किए कार्यों की घोषणा करो. [QE]
2. [QS]उनकी प्रशंसा में गाओ, उनका गुणगान करो; [QE][QS2]उनके सभी अद्भुत कार्यों का वर्णन करो. [QE]
3. [QS]उनके पवित्र नाम पर गर्व करो; [QE][QS2]उनके हृदय, जो याहवेह के खोजी हैं, उल्लसित हों. [QE]
4. [QS]याहवेह और उनकी सामर्थ्य की खोज करो; [QE][QS2]उनकी उपस्थिति के सतत खोजी बने रहो. [QE][PBR]
5. [QS]उनके द्वारा किए अद्भुत कार्य स्मरण रखो [QE][QS2]तथा उनके द्वारा हुईं अद्भुत बातें एवं निर्णय भी, [QE]
6. [QS]उनके सेवक अब्राहाम के वंश, [QE][QS2]उनके द्वारा चुने हुए याकोब की संतान. [QE]
7. [QS]वह याहवेह हैं, हमारे परमेश्वर; [QE][QS2]समस्त पृथ्वी पर उनके द्वारा किया गया न्याय स्पष्ट है. [QE][PBR]
8. [QS]उन्हें अपनी वाचा सदैव स्मरण रहती है, [QE][QS2]वह आदेश जो उन्होंने हजार पीढ़ियों को दिया, [QE]
9. [QS]वह वाचा, जो उन्होंने अब्राहाम के साथ स्थापित की, [QE][QS2]प्रतिज्ञा की वह शपथ, जो उन्होंने यित्सहाक से खाई थी, [QE]
10. [QS]जिसकी पुष्टि उन्होंने याकोब से अधिनियम स्वरूप की, [QE][QS2]अर्थात् इस्राएल से स्थापित अमर यह वाचा: [QE]
11. [QS]“कनान देश तुम्हें मैं प्रदान करूंगा. [QE][QS2]यह वह भूखण्ड है, जो तुम निज भाग में प्राप्त करोगे.” [QE][PBR]
12. [QS]जब परमेश्वर की प्रजा की संख्या अल्प ही थी, जब उनकी संख्या बहुत ही कम थी, [QE][QS2]और वे उस देश में परदेशी थे, [QE]
13. [QS]जब वे एक देश से दूसरे देश में भटकते फिर रहे थे, [QE][QS2]वे एक राज्य में से होकर दूसरे में यात्रा कर रहे थे, [QE]
14. [QS]परमेश्वर ने किसी भी राष्ट्र को उन्हें दुःखित न करने दिया; [QE][QS2]उनकी ओर से स्वयं परमेश्वर उन राजाओं को डांटते रहे: [QE]
15. [QS]“मेरे अभिषिक्तों का स्पर्श तक न करना; [QE][QS2]मेरे भविष्यवक्ताओं को कोई हानि न पहुंचे!” [QE][PBR]
16. [QS]तब परमेश्वर ने उस देश में अकाल की स्थिति उत्पन्न कर दी. [QE][QS2]उन्होंने ही समस्त आहार तृप्ति नष्ट कर दी; [QE]
17. [QS]तब परमेश्वर ने एक पुरुष, योसेफ़ को, [QE][QS2]जिनको दास बनाकर उस देश में पहले भेज दिया. [QE]
18. [QS]उन्होंने योसेफ़ के पैरों में बेड़ियां डालकर उन पैरों को ज़ख्मी किया था, [QE][QS2]उनकी गर्दन में भी बेड़ियां डाल दी गई थीं. [QE]
19. [QS]तब योसेफ़ की पूर्वोक्ति सत्य प्रमाणित हुई, उनके विषय में, [QE][QS2]याहवेह के वक्तव्य ने उन्हें सत्य प्रमाणित कर दिया. [QE]
20. [QS]राजा ने उन्हें मुक्त करने के आदेश दिए, [QE][QS2]प्रजा के शासक ने उन्हें मुक्त कर दिया. [QE]
21. [QS]उसने उन्हें अपने भवन का प्रधान [QE][QS2]तथा संपूर्ण संपत्ति का प्रशासक बना दिया, [QE]
22. [QS]कि वह उनके प्रधानों को अपनी इच्छापूर्ति के निमित्त आदेश दे सकें [QE][QS2]और उनके मंत्रियों को सुबुद्धि सिखा सकें. [QE][PBR]
23. [QS]तब इस्राएल ने मिस्र में पदार्पण किया; [QE][QS2]तब हाम की धरती पर याकोब एक प्रवासी होकर रहने लगे. [QE]
24. [QS]याहवेह ने अपने चुने हुओं को अत्यंत समृद्ध कर दिया; [QE][QS2]यहां तक कि उन्हें उनके शत्रुओं से अधिक प्रबल बना दिया, [QE]
25. [QS]जिनके हृदय में स्वयं परमेश्वर ने अपनी प्रजा के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी, [QE][QS2]वे परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचने लगे. [QE]
26. [QS]तब परमेश्वर ने अपने चुने हुए सेवक मोशेह को उनके पास भेजा, [QE][QS2]और अहरोन को भी. [QE]
27. [QS]उन्होंने परमेश्वर की ओर से उनके सामने आश्चर्य कार्य प्रदर्शित किए, [QE][QS2]हाम की धरती पर उन्होंने अद्भुत कार्य प्रदर्शित किए. [QE]
28. [QS]उनके आदेश ने सारे देश को अंधकारमय कर दिया; [QE][QS2]क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों की अवहेलना की. [QE]
29. [QS]परमेश्वर ही के आदेश से देश का समस्त जल रक्त में बदल गया, [QE][QS2]परिणामस्वरूप समस्त मछलियां मर गईं. [QE]
30. [QS]उनके समस्त देश में असंख्य मेंढक उत्पन्न हो गए, [QE][QS2]यहां तक कि उनके न्यायियों के शयनकक्ष में भी पहुंच गए. [QE]
31. [QS]परमेश्वर ने आदेश दिया और मक्खियों के समूह देश पर छा गए, [QE][QS2]इसके साथ ही समस्त देश में मच्छर भी समा गए. [QE]
32. [QS]उनके आदेश से वर्षा ने ओलों का रूप ले लिया, [QE][QS2]समस्त देश में आग्नेय विद्युज्ज्वाला बरसने लगी. [QE]
33. [QS]तब परमेश्वर ने उनकी द्राक्षालताओं तथा अंजीर के वृक्षों पर भी आक्रमण किया, [QE][QS2]और तब उन्होंने उनके देश के वृक्षों का अंत कर दिया. [QE]
34. [QS]उनके आदेश से अरबेह टिड्डियों ने आक्रमण कर दिया, [QE][QS2]ये यालेक टिड्डियां असंख्य थीं; [QE]
35. [QS]उन्होंने देश की समस्त वनस्पति को निगल लिया, [QE][QS2]भूमि की समस्त उपज समाप्त हो गई. [QE]
36. [QS]तब परमेश्वर ने उनके देश के हर एक पहलौठे की हत्या की, [QE][QS2]उन समस्त पहिलौठों का, जो उनके पौरुष का प्रमाण थे. [QE]
37. [QS]परमेश्वर ने स्वर्ण और चांदी के बड़े धन के साथ इस्राएल को मिस्र देश से बचाया, [QE][QS2]उसके समस्त गोत्रों में से कोई भी कुल नहीं लड़खड़ाया. [QE]
38. [QS]मिस्र निवासी प्रसन्न ही थे, जब इस्राएली देश छोड़कर जा रहे थे, [QE][QS2]क्योंकि उन पर इस्राएल का आतंक छा गया था. [QE][PBR]
39. [QS]उन पर आच्छादन के निमित्त परमेश्वर ने एक मेघ निर्धारित कर दिया था, [QE][QS2]और रात्रि में प्रकाश के लिए अग्नि भी. [QE]
40. [QS]उन्होंने प्रार्थना की और परमेश्वर ने उनके निमित्त आहार के लिए बटेरें भेज दीं; [QE][QS2]और उन्हें स्वर्गिक आहार से भी तृप्त किया. [QE]
41. [QS]उन्होंने चट्टान को ऐसे खोल दिया, कि उसमें से उनके निमित्त जल बहने लगा; [QE][QS2]यह जल वन में नदी जैसे बहने लगा. [QE][PBR]
42. [QS]क्योंकि उन्हें अपने सेवक अब्राहाम से [QE][QS2]की गई अपनी पवित्र प्रतिज्ञा स्मरण की. [QE]
43. [QS]आनंद के साथ उनकी प्रजा वहां से बाहर लाई गई, [QE][QS2]उनके चुने हर्षनाद कर रहे थे; [QE]
44. [QS]परमेश्वर ने उनके लिए अनेक राष्ट्रों की भूमि दे दी, [QE][QS2]वे उस संपत्ति के अधिकारी हो गए जिसके लिए किसी अन्य ने परिश्रम किया था. [QE]
45. [QS]कि वे परमेश्वर के अधिनियमों का पालन कर सकें [QE][QS2]और उनके नियमों को पूरा कर सकें. [QE][PBR] [QS]याहवेह का स्तवन हो. [QE]