1. {#3पांचवीं पुस्तक [BR]स्तोत्र 107–150 } [QS]याहवेह का धन्यवाद करो, वे भले हैं; [QE][QS2]उनकी करुणा सदा की है. [QE][PBR]
2. [QS]यह नारा उन सबका हो, जो याहवेह द्वारा उद्धारित हैं, [QE][QS2]जिन्हें उन्होंने विरोधियों से मुक्त किया है, [QE]
3. [QS]जिन्हें उन्होंने पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से, [QE][QS2]विभिन्न देशों से एकत्र कर एकजुट किया है. [QE][PBR]
4. [QS]कुछ निर्जन वन में भटक रहे थे, [QE][QS2]जिन्हें नगर की ओर जाता हुआ कोई मार्ग न मिल सका. [QE]
5. [QS]वे भूखे और प्यासे थे, [QE][QS2]वे दुर्बल होते जा रहे थे. [QE]
6. [QS]अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, [QE][QS2]याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. [QE]
7. [QS]उन्होंने उन्हें सीधे-समतल पथ से ऐसे नगर में पहुंचा दिया [QE][QS2]जहां वे जाकर बस सकते थे. [QE]
8. [QS]उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए [QE][QS2]तथा उनके द्वारा मनुष्यों के लिए किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें, [QE]
9. [QS]क्योंकि वह प्यासी आत्मा के प्यास को संतुष्ट करते [QE][QS2]तथा भूखे को उत्तम आहार से तृप्त करते हैं. [QE][PBR]
10. [QS]कुछ ऐसे थे, जो अंधकार में, [QE][QS2]गहनतम मृत्यु की छाया में बैठे हुए थे, वे बंदी लोहे की बेड़ियों में यातना सह रहे थे, [QE]
11. [QS]क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों के विरुद्ध विद्रोह किया था [QE][QS2]और सर्वोच्च परमेश्वर के निर्देशों को तुच्छ समझा था. [QE]
12. [QS]तब परमेश्वर ने उन्हें कठोर श्रम के कार्यों में लगा दिया; [QE][QS2]वे लड़खड़ा जाते थे किंतु कोई उनकी सहायता न करता था. [QE]
13. [QS]अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, [QE][QS2]याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. [QE]
14. [QS]परमेश्वर ने उन्हें अंधकार और मृत्यु-छाया से बाहर निकाल लिया, [QE][QS2]और उनकी बेड़ियों को तोड़ डाला. [QE]
15. [QS]उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए [QE][QS2]तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें, [QE]
16. [QS]क्योंकि वही कांस्य द्वारों को तोड़ देते [QE][QS2]तथा लोहे की छड़ों को काटकर विभक्त कर डालते हैं. [QE][PBR]
17. [QS]कुछ ऐसे भी थे, जो विद्रोह का मार्ग अपनाकर मूर्ख प्रमाणित हुए, [QE][QS2]जिसका परिणाम यह हुआ, कि उन्हें अपने अपराधों के कारण ही पीड़ा सहनी पड़ी. [QE]
18. [QS]उन्हें सभी प्रकार के भोजन से घृणा हो गई [QE][QS2]और वे मृत्यु-द्वार तक पहुंच गए. [QE]
19. [QS]अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, [QE][QS2]याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. [QE]
20. [QS]उन्होंने आदेश दिया और वे स्वस्थ हो गए [QE][QS2]और उन्होंने उन्हें उनके विनाश से बचा लिया. [QE]
21. [QS]उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम[* करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं ] के लिए [QE][QS2]तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें. [QE]
22. [QS]वे धन्यवाद बलि अर्पित करें [QE][QS2]और हर्षगीतों के माध्यम से उनके कार्यों का वर्णन करें. [QE][PBR]
23. [QS]कुछ वे थे, जो जलयानों में समुद्री यात्रा पर चले गए; [QE][QS2]वे महासागर पार जाकर व्यापार करते थे. [QE]
24. [QS]उन्होंने याहवेह के महाकार्य देखे, [QE][QS2]वे अद्भुत कार्य, जो समुद्र में किए गए थे. [QE]
25. [QS]याहवेह आदेश देते थे और बवंडर उठ जाता था, [QE][QS2]जिसके कारण समुद्र पर ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगती थीं. [QE]
26. [QS]वे जलयान आकाश तक ऊंचे उठकर गहराइयों तक पहुंच जाते थे; [QE][QS2]जोखिम की इस बुराई की स्थिति में उनका साहस जाता रहा. [QE]
27. [QS]वे मतवालों के समान लुढ़कते और लड़खड़ा जाते थे; [QE][QS2]उनकी मति भ्रष्ट हो चुकी थी. [QE]
28. [QS]अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, [QE][QS2]याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. [QE]
29. [QS]याहवेह ने बवंडर को शांत किया [QE][QS2]और समुद्र की लहरें स्तब्ध हो गईं. [QE]
30. [QS]लहरों के शांत होने पर उनमें हर्ष की लहर दौड़ गई, [QE][QS2]याहवेह ने उन्हें उनके मनचाहे बंदरगाह तक पहुंचा दिया. [QE]
31. [QS]उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए [QE][QS2]तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें. [QE]
32. [QS]वे जनसमूह के सामने याहवेह का भजन करें, [QE][QS2]वे अगुओं की सभा में उनकी महिमा करें. [QE][PBR]
33. [QS]परमेश्वर ने नदियां मरुभूमि में बदल दीं, [QE][QS2]परमेश्वर ने झरनों के प्रवाह को रोका. [QE]
34. [QS]वहां के निवासियों की दुष्टता के कारण याहवेह नदियों को वन में, [QE][QS2]नदी को शुष्क भूमि में और उर्वर भूमि को निर्जन भूमि में बदल देते हैं. [QE]
35. [QS]याहवेह ही वन को जलाशय में बदल देते हैं [QE][QS2]और शुष्क भूमि को झरनों में; [QE]
36. [QS]वहां वह भूखों को बसने देते हैं, [QE][QS2]कि वे वहां बसने के लिये एक नगर स्थापित कर दें, [QE]
37. [QS]कि वे वहां कृषि करें, द्राक्षावाटिका का रोपण करें [QE][QS2]तथा इनसे उन्हें बड़ा उपज प्राप्त हो. [QE]
38. [QS]याहवेह ही की कृपादृष्टि में उनकी संख्या में बहुत वृद्धि होने लगती है, [QE][QS2]याहवेह उनके पशु धन की हानि नहीं होने देते. [QE][PBR]
39. [QS]जब उनकी संख्या घटने लगती है और पीछे, [QE][QS2]क्लेश और शोक के कारण उनका मनोबल घटता और दब जाता है, [QE]
40. [QS]परमेश्वर उन अधिकारियों पर निंदा-वृष्टि करते हैं, [QE][QS2]वे मार्ग रहित वन में भटकाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. [QE]
41. [QS]किंतु याहवेह दुःखी को पीड़ा से बचाकर [QE][QS2]उनके परिवारों को भेड़ों के झुंड समान वृद्धि करते हैं. [QE]
42. [QS]यह सब देख सीधे लोग उल्लसित होते हैं, [QE][QS2]और दुष्टों को चुप रह जाना पड़ता है. [QE][PBR]
43. [QS]जो कोई बुद्धिमान है, इन बातों का ध्यान रखे [QE][QS2]और याहवेह के करुणा-प्रेम पर विचार करता रहे. [QE]