1. [QS]स्तुत्य हैं याहवेह, जो मेरी चट्टान हैं, [QE][QS2]जो मेरी भुजाओं को युद्ध के लिए, [QE][QS2]तथा मेरी उंगलियों को लड़ने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. [QE]
2. [QS]वह मेरे प्रेमी परमेश्वर, मेरे किला हैं, [QE][QS2]वह मेरे लिए दृढ़ गढ़ तथा आश्रय हैं, वह मेरे उद्धारक हैं, [QE][QS]वह ऐसी ढाल है जहां मैं आश्रय के लिए जा छिपता हूं, [QE][QS2]वह प्रजा को मेरे अधीन बनाए रखते हैं. [QE][PBR]
3. [QS]याहवेह, मनुष्य है ही क्या, जो आप उसकी ओर ध्यान दें? [QE][QS2]क्या है मनुष्य की सन्तति, कि आप उसकी हितचिंता करें? [QE]
4. [QS]मनुष्य श्वास समान है; [QE][QS2]उसकी आयु विलीन होती छाया-समान है. [QE][PBR]
5. [QS]याहवेह, स्वर्ग को खोलकर आप नीचे आ जाइए; [QE][QS2]पर्वतों का स्पर्श कीजिए कि उनमें से धुआं उठने लगे. [QE]
6. [QS]विद्युज्ज्वाला भेजकर मेरे शत्रुओं को बिखरा दीजिए; [QE][QS2]अपने बाण चला कर उनका आगे बढ़ना रोक दीजिए. [QE]
7. [QS]अपने उच्चासन से अपना हाथ बढ़ाइए; [QE][QS2]ढेर जल राशि में से मुझे [QE][QS]बचाकर मेरा उद्धार कीजिए, [QE][QS2]उनसे जो विदेशी और प्रवासी हैं. [QE]
8. [QS]उनके मुख से झूठ बातें ही निकलती हैं, [QE][QS2]जिनका दायां हाथ धोखे के काम करनेवाला दायां हाथ है. [QE][PBR]
9. [QS]परमेश्वर, मैं आपके लिए मैं एक नया गीत गाऊंगा; [QE][QS2]मैं दस तार वाली वीणा पर आपके लिए स्तवन संगीत बनाऊंगा. [QE]
10. [QS]राजाओं की जय आपके द्वारा प्राप्त होती है, [QE][QS2]आप ही अपने सेवक दावीद को सुरक्षा प्रदान करते हैं, [QE][PBR] [QS]तलवार के क्रूर प्रहार से
11. मुझे छुड़ाइए; [QE][QS2]विदेशियों के हाथों से मुझे छुड़ा लीजिए. [QE][QS]उनके ओंठ झूठ बातें ही करते हैं, [QE][QS2]जिनका दायां हाथ झूठी बातें करने का दायां हाथ है. [QE][PBR]
12. [QS]हमारे पुत्र अपनी युवावस्था में [QE][QS2]परिपक्व पौधों के समान हों, [QE][QS]और हमारी पुत्रियां कोने के उन स्तंभों के समान, [QE][QS2]जो राजमहल की सुंदरता के लिए सजाये गए हैं. [QE]
13. [QS]हमारे अन्नभण्डार परिपूर्ण बने रहें, [QE][QS2]उनसे सब प्रकार की तृप्ति होती रहे. [QE][QS]हमारी भेड़ें हजारों मेमने उत्पन्न करें, [QE][QS2]हमारे मैदान दस हजारों से भर जाएं; [QE]
2. [QS2]सशक्त बने रहें हमारे पशु; [QE][QS]उनके साथ कोई दुर्घटना न हो, [QE][QS2]वे प्रजनन में कभी विफल न हों, [QE][QS2]हमारी गलियों में वेदना की कराहट कभी न सुनी जाए. [QE]
15. [QS]धन्य है वह प्रजा, जिन पर कृपादृष्टि की ऐसी वृष्टि होती है; [QE][QS2]धन्य हैं वे लोग, जिनके परमेश्वर याहवेह हैं. [QE]